cbsc class 12 मौर्य काल का इतिहास सम्मारी in hindi

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मगध साम्राज्य 

मौर्य वंश  

प्राचीन मौर्य काल की राजधानी पाटलिपुत्र थी । इसे कुसुमपुर के नाम से भी जानते हैं । मौर्य वंश के राजचिन्ह मयूर है । यह जानकारी हमें अशोक के स्तंभ लेख ।  लॉरियनंदगढ़ से पता चलता है। इस अभिलेख पर मयूर के चित्र बनी हुई है और यह चित्र की चिंतन  ग्रुनवेडेल करता है ।


चंद्रगुप्त मौर्य की उपाधि 

 चंद्रगुप्त मौर्य को हम मौर्य वंश के संस्थापक के रूप में जानते हैं । इन्हें भारत के मुक्तिदाता भी कहते हैं क्योंकि उन्होंने सिकंदर के कब्जा किए गए भूमि को पुनः जीत लिया था। इसलिए इन्हें प्रथम प्राचीन स्वतंत्रता सेनानी कहते हैं। इन्हें पाली बोधक भी कहा गया है क्योंकि इन्होंने पाटलिपुत्र का काफी विस्तार किया था । 


विद्वानों द्वारा दिया गया नाम 

चंद्रगुप्त को जस्टिन ,एरियम ,मेगास्थनीज ,स्ट्रोबो ने सेंट्रोकोटा कहां है। 

प्लूटार्क ने इन्हें एंड्रो कोटस कहां है । 

फिलाकर्ष ने इन्हें सैंड्रोकोप्टस् कहा है। 

यह सभी नामों की जानकारी हमें विलियम जोंस ने दिया है। 


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मौर्य वंश के जानकारी के स्रोत 

मौर्य वंश की जानकारी के लिए हम पुरातात्विक स्रोत की सहायता ले सकते हैं जैसे अभिलेख ,मुद्रा ,मुद्रभांड, स्मारक चित्रकला आदि । 

अभिलेखों में हमें चंद्रगुप्त मौर्य के अभिलेख तथा अशोक के अभिलेख  हैं। अशोक के 40 प्रमुख अभिलेख हैं। चंद्रगुप्त मौर्य के जूनागढ़ अभिलेख ,महस्यन अभिलेख ,सौहगोरा अभिलेख प्रमुख है । 

मौर्य वंश के जानकारी के स्रोत में साहित्यिक स्रोतों का भी काफी योगदान है । इसमें कौटिल्य के अर्थशास्त्र ,मुद्राराक्षस के विशाखदत्त । इसमें टीका डूडी राज के द्वारा किया गया है ।


विष्णु पुराण इसका टीकाकरण श्रीधर स्वामी , पतंजलि के महाभाष्य तथा दो ग्रंथ दक्षिण के है 

अनानुक और  परवार । 

इसके अलावा बौद्ध साहित्य के दो ग्रंथ दिव्यवादन, सिलिमन्य  के दो महा वंश और दीपवंश वंश है और एक मिलिंदपन्हो। 

जैन धर्म के कल्पजून तथा परीशिष्टपवर्न। 

विदेशी यात्रियों से मेगस्थनीज की इंडिका से मौर्य वंश की जानकारी मिलती है। इस प्रकार सभी साहित्यिक से हमें मौर्य वंश की जानकारी मिलती है । 


चंद्रगुप्त मौर्य का कुल -

 मौर्य के संस्थापक चंद्रगुप्त को स्पू्नर महोदय ने पारसी कहां है। इतिहास में इनके कुल को लेकर काफी दुविधा प्रकट की गई है ।  इन्हें विष्णु पुराण में शूद्र कहा गया है । क्योंकि शिशुनाग वंश के बाद सभी शुद्र थे । ऐसा विष्णु पुराण में बताया गया है ।

परंतु यह पूर्णता सर्च नहीं था। इन्हें धुंडीराज मुरा कन्या का पुत्र बताते हैं । जैन साहित्य में इन्हें क्षत्रिय बताया है । 


चाणक्य तथा उसके  अखंड भारत की कहानी 

अखंड भारत की कहानी में चाणक्य जो तक्षशिला विश्वविद्यालय के प्रमुख बुद्धिमान आचार्य थे। उनका योगदान को हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे। 


प्राचीन काल में जब सिकंदर विश्व विजय के लिए निकल पड़ा था । तब उसने भारत के तरफ भी रुख किया था । सिकंदर ने जब ईरान पर अपना कब्जा कर लिया था। तब तक्षशिला में काफी हलचल मच गई थी। 


सिकंदर की इस विजय रथ को तक्षशिला के आचार्य समझ चुके थे। वे जानते थे कि सिकंदर भारत पर भी हमला कर सकता है। इसी कारण आचार्य चाणक्य ने एक सभा का आयोजन करवाया । उस सभा में सबसे ज्यादा बुद्धिमान चाणक्य था। 


इस समस्या से निकलने के लिए चाणक्य ने सभा में एक योजना बताएं। उन्होंने कहा कि यदि भारत को इस विपदा से निकलना है। तो उसे अखंड होना होगा। 

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जो इस समय की मगध साम्राज्य के ही द्वारा हो सकता था। इसलिए सभी  विद्वानों ने चाणक्य को ही मगध के राजा घनानंद से बात करने के लिए कहा।

 चाणक्य मगध के राजा से बात करने के लिए तैयार हो गए । परंतु मगध के इस समय जो राजा था। वह काफी  घमंडी था । 


चाणक्य को घनानंद से मिलने के लिए 2 दिन का इंतजार करना पड़ा। 

तब जाकर उन्हें घनानंद से मिलने दे दिया गया। चाणक्य ने सिकंदर के बारे मै बताइए तथा उन्होंने एक नक्शा देकर दिखाकर यह बताया कि आप सभी जनपदों को एकजुट कर लें। 

परंतु उन्होंने नक्शे के दो टुकड़े कर दिए और कहा इसे जोड़ कर दिखाओ तब मैं सभी जनपदों को एक कर दूंगा। 


चाणक्य का भरी सभा में अपमान किया गया। इसी समय चाणक्य ने अपनी शिखा(बाल) को बांधकर या कसम खाई कि तुम्हारे इस घमंड को मैं तोड़ कर ही रहूंगा।

 तभी मैं अपने शिखा को खोलूंगा। उसी समय चाणक्य वहां से निकल जाते हैं। 


चाणक्य का रास्ते में एक बच्चे के समूह से मुलाकात होती हैं। जो दास है उनमें एक ऐसा बालक मिलता है जो उनके साथ खेल रहे बालकों से अलग बालक लग रहा था। सभी बालक राज धर्म के खेल- खेल रहे थे। 

जिसमें एक अलग राजा बना हुआ था और इस खेल में जो बालक राजा बना हुआ था वह एक राजा की भांति ही निर्णय ले रहा था।

जिसके कारण आचार्य चाणक्य समझ गए थे कि यह बालक किसी दास का पुत्र नहीं है। बल्कि क्षत्रिय कुल का है । इससे हमें या भी पता चलता है की मौर्य वंशी क्षत्रिय कुल के थे। 


तक्षशिला विश्वविद्यालय का महत्व 

तक्षशिला विश्वविद्यालय राजा दक्ष के द्वारा स्थित किया गया था । तक्षशिला विश्वविद्यालय इस समय काफी प्रसिद्ध था। इसमें ब्राह्मण तथा क्षत्रिय को ही ज्ञान अर्जित करने की आज्ञा थी। इस विश्वविद्यालय से पाणिनि, चाणक्य ,पसनजीत चंद्रगुप्त मौर्य ,चरक, जीवक आदि ने ज्ञान प्राप्त किया है। 


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