सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन परिचय | sardar vallabhbhai patel summarizes
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन परिचय | sardar vallabhbhai patel summry |
सरदार वल्लभभाई पटेल का परिचय और इतिहास
भारत के ताजा परिप्रेक्ष्य पर गौर किया जाए तो देश का लगभग आधा भाग संप्रदायिक एवं विघटनकारी राष्ट्रीय द्रोहियों की चपेट में फंसा दृष्टिगोचर होता है। ऐसे संकट की घड़ी में सरदार वल्लभभाई पटेल की स्मृति को उठना स्वभाविक है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने ज्वलंत प्रश्न था कि छोटी-बड़ी 562 रियासतों को भारतीय संघ में कैसे समाहित किया जाए । तब इस जटिल कार्य को जिस महापुरुष ने निहायत सादगी तथा सभी नेता से सुलझाया गए थे ।
सरदार वल्लभभाई पटेल का व्याख्या और जीवनी इन हिंदी
आधुनिक राष्ट्र निर्माता लोह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल। पटेल का भरा पूरा सुडौल शरीर उनकी उग्र प्रकृति का परिचायक था। पर वे अंदर से बर्फ के समान शांत व निर्मल थे। उनकी तेजस्वी आंखों में मनुष्य की आंत वृद्धि को पहचानने की अनुपम सकती थी। हास्य विनोदी प्रकृति के होते हुए भी वे स्पष्ट वक्ता थे । पर बोलते कम थे। उनका कार्य करने में विश्वास था । संयम ,सादगी ,सहिष्णुता ,सत्य ,साहस और दृढ़ता के प्रतिक पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 (अट्ठारह सौ पचहत्तर) को गुजरात में हुआ था।
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सरदार वल्लभभाई पटेल का प्रारंभिक शिक्षा
प्रारंभिक शिक्षा काल में ही उन्होंने एक ऐसे अध्यापक के विरुद्ध आंदोलन खड़ा कर । उन्हें सही मार्ग दिखाएं जो अपनी ही व्यापारिक संस्थान से पुस्तक क्रय करने के लिए छात्रों को बाध्य करते थे। मैट्रिक करने से पूर्व ही बड़ौदा स्कूल में ऐसे ही किसी प्रश्न पर एक शिक्षक से उनका झगड़ा हो गया। तो उन्हें स्कूल से बाहर निकाल दिया गया। ऐसी ही सरदारगिरी के कारण 22 वर्ष की उम्र में वे मैट्रिक परीक्षा पास कर गए और वकालत में जुड़ गए 1908 (उन्नीस सौ आठ ) में वे विलायत की आंतरिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर बैरिस्टर बन गए। फौजदारी वकालत में उन्होंने खूब यस और धाक जमाई।
गुजरात क्लब के आमंत्रण पर जब महात्मा गांधी व्याख्यान देने पधारे तो पटेल ने गांधी की उपेक्षा करते हुए टिप्पणी की थी। मुझे इन चंद पढ़े-लिखे राष्ट्र वादियों से सख्त नफरत है यह लोग महान शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य को यहां से उखाड़ फेंक देंगे इसमें मुझे बहुत संदेह है। यह व्याख्यान बकवास है । किंतु चंपारण जिले में सत्याग्रह की सफलता देख पटेल की आंखें खुल गई । गांधी की आंदोलन पद्धति के प्रशंसक वह भक्त बन गए । गुजरात के बोरसद तालुके मे देवर बंबा डाकू का खौफनाक आतंक था । पुलिस और प्रशासन निष्क्रिय हो चुके थे । तब पटेल द्वारा 200 स्वयंसेवकों को लेकर किया गया। सत्याग्रह देखते देवर बंबा नौ दो ग्यारह होना पड़ा ।
बोरसद में प्लेग का प्रकोप होने का प्लेग निवारण हेतु पटेल बोरसद में कई महीने डटे रहे। जन सेवा व त्याग भावना के बलबूते पर ही पटेल अहमदाबाद के चेयरमैन चुन लिए गए। बोरसाद सत्याग्रह नागपुर का झंडा सत्याग्रह बारडोली तालुका सत्याग्रह तथा गुजरात की बाढ़ के समय पटेल की अनुपम सेवाएं तथा रचनात्मक योगदान अविस्मरणीय है । उनकी ट्रेड यूनियन से संबंध सुधार एवं आंदोलन भी एक नई दिशा बोध के प्रतीक थे ।
1930 में 1933 तक के अनवरत आंदोलन में दक्षिण भारत
1930 में 1933 तक के अनवरत आंदोलन में दक्षिण भारत की कमांड पटेल के हाथ में ही रही । बारडोली सत्याग्रह के समय उन्होंने 75 गांव के प्रतिनिधि किसानों की सभा को संबोधित करते हुए कहा देखो भाई सरकार के पास निर्दई आदमी है खुले हुए वाले बंधु के हैं तोपे हैं वह संसार की एक बड़ी शक्ति है तुम्हारे पास केवल तुम्हारा ह्रदय अपनी छाती पर इन बहारों को सहने का साहस है तोहि आगे बढ़ने की बात सोचो ।
अपमानित होकर जीने की अपेक्षा सम्मान के साथ मर मिटने में अधिक शोभा है । इसी प्रकार वल्लभभाई अनपढ़ लोगों को वस्तु स्थिति का बोध कराते हुए उनकी हौसला अफजाई करते रहते थे ।
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बारडोली सत्याग्रह से पूर्व उन्होंने एक मार्मिक पत्र गवर्नर को भी लिखा था। जिसका कोई प्रत्युत्तर नहीं प्राप्त हुआ। अब सत्याग्रह के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं बचा। कांग्रेस केंद्रीय पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में सरदार पटेल ने ना केवल 8 प्रांतों के शासन पर सतर्क दृष्टि रखी । बल्कि उनकी सभी समस्याओं को सुलझाया भी। यह उनके कुशल प्रशासन होने का साक्ष्य था । द्वितीय महायुद्ध होने पर 16 अक्टूबर को वायसराय ने घोषणा की कि ब्रिटिश का उद्देश भारत को अपने वैश्विक स्वराज देना है युद्ध समाप्त होने पर 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में सभी संप्रदाय तथा निहित स्वार्थ ग्रस्तों के प्रवेश में वंचित संशोधन कर दिया जाएगा।
सरदार वल्लभभाई पटेल का धर्म पर विचार
इस पर सरदार पटेल की गंभीर प्रतिक्रिया रही हमसे पूछा जाता है कि क्या हम स्वतंत्रता के योग्य हैं । हमसे अभी कहा जाता है कि प्रथम हम मुसलमानों अर्थ मुस्लिम लीग के साथ अपने मतभेद समाप्त करें । किंतु हम जानते हैं कि उनके साथ मामला तय करते हैं। तो हमसे कहा जाएगा कि अब अपना मामला देसी राज्यों के साथ तय करो।उनके मुस्लिम लीगी मुसलमानों के प्रति संदेह और अविश्वास की शिकायत जब गांधी जी से की गई थी । तब गांधी जी ने वल्लभभाई के बारे में विचार प्रकट किए थे । सरदार सीधी बात बोलते बोलने वाले हैं। यह बोलते हैं तो कड़वी लगती है । पर दिल के साफ है। सरदार पटेल उद्देश्य के प्रति स्थिर लक्ष्य संगठन कार्य में अप्रतिम अपने आदर्शों के प्रति अटल थे। उनके चट्टाने व्यक्तित्व से प्रभावित होकर लोगों ने उन्हें लौह पुरुष कहा।
उनकी तुलना महान राजनीतिक मैकियावेली तथा बिस्मार्क से की जाती है । महात्मा गांधी ने जब पूरी शक्ति से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलाने का निश्चय किया तो पटेल ने अहमदाबाद में एक लाख जनसमूह के सामने लोकल बोर्ड के दो मैदान में आंदोलन की रूपरेखा समझाएं । उन्होंने पत्रकार परिषद में कहा ऐसा समय फिर नहीं आएगा ।
आप मन में भय ना रखें चौपाटी पर दिए भाषण पर कहा आपको यही समझ कर यह लड़ाई छोड़नी है कि महात्मा गांधी और नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाएगा। तो आप ना बोले कि आपके साथ भी ऐसे सकती है कि 24 घंटों में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जाएगा। इन दिनों गांधी, नेहरू, पटेल जैसे कांग्रेस के बड़े नेता गन कारावास में थे। उन्हीं दिनों बंगाल में भीषण अकाल पड़ा ।
जिसमें लाखों स्त्री, पुरुष , बच्चे कीड़े मकोड़े की तरह भूख से तड़प तड़प कर मर गए हैं । सरकार ने इसे छिपाने का प्रयास तो किया पर एक एंग्लो इंडियन समाचार पत्र द्वारा भांडा फूट गया । तो कांग्रेस ने इस मान्य कांड की तरफ कड़वी बात कही तथा सरकार को संसार के सामने लज्जित किया।
1946 में जब नेहरू जी की सरकार बनी | सरदार पटेल को गृह मंत्री नियुक्त
सितंबर 1946 में जब नेहरू जी की आस्थाई सरकार बनी तो सरकार सरदार पटेल को गृह मंत्री नियुक्त किया गया । अत्यधिक दूरदर्शी होने के कारण भारत के विभाजन के पक्ष में पटेल का स्पष्ट मत था कि जो जहर बाद फैलने से पूर्व गले सड़े अंग को ऑपरेशन करवा देना चाहिए ।नवंबर 1947 में विधान परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया । मैंने विभाजन को अंतिम उपाय के रूप में कब स्वीकार किया था । जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की संभावना हो गई थी । मैंने अभी शर्त रखी थी कि देसी राज्यों के संबंध में ब्रिटिश हस्तक्षेप नहीं करेगा । इस समस्या को हम सुलझाएंगे और निश्चय ही देशी राज की एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून खराबी के बड़ी खूबी से हल किया जाए।
देसी राज्यों में राजकोट जूनागढ़ बहाल बहावलपुर बड़ौदा कश्मीर हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करने में सरकार को कई गतिविधियों का सामना करना पड़ा हैदराबाद के निजाम ने राज्य की जनसंख्या में 85% हिंदुओं को तीन भाषाओं तेलुगु ,मराठी ,कन्नड़ में विभक्त कर के भेद नीति से पूरा लाभ उठा रखा था। हालांकि हैदराबाद उस समय तीसरा बड़ा शहर माना जाता था । परंतु निजाम ने राज्य की जागृति को निरस्त करने के लिए एसी कूटनीति अपना रखी थी कि दिल्ली, मद्रास तथा मुंबई ।
मद्रास के लिए रेल मार्ग निर्धारित किए जाने पर हैदराबाद को दूर ही रखा जिससे हैदराबाद में राष्ट्रीय आंदोलन की लहर ना प्रवेश कर जाए । महात्मा गांधी द्वारा लाख प्रयास करने पर भी केवल दो बार हैदराबाद जा सके जबकि वह नगर-नगर ,गांव-गांव जाकर बार-बार जनता को जागृत कर रहे थे ।
सरदार पटेल का भाषा के ओर विचार | सरदार पटेल
निजाम ने शिक्षा के प्रसार में भी उर्दू को महत्त्व बनाकर लड़ाई लड़ी। उसका स्पष्ट हैसियत है कि उर्दू ,देसी भाषा को प्राथमिकता देकर अंग्रेजी के बायकाट करने से उसे विशेष रहे तो प्राप्त होगा ही और दूसरे इन उर्दू के माध्यम होने से अल्पसंख्यक मुसलमान अधिक परिणाम में शिक्षित होंगे
भारत संघ में विलय ना होने के उद्देश्य से उसने चुपचाप हैदराबाद को ₹1000000 में पाकिस्तान को बेचने का दुष्चक्र रख लिया था । लेकिन इस साजिश की भनक पटेल को मिल गई । तब उन्होंने निजाम की दुर्गति की और हैदराबाद को भारत में मिला लिया जब चीनी प्रधानमंत्री चायू एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वह तिब्बत को चीन का मान ले अंग मान ले तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि तिब्बत को चीन का अंग मान ले तो पटेल नेहरू से आग्रह किया कि तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व करता ही ना स्वीकार यह नेता चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा ।
नेहरू नहीं माने बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन हमारी सीमा की 40000 वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया। सरदार पटेल की ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण गांधी स्मारक निधि की स्थापना ,कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा अधिकारी सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे ।
उनके मन में गोवा को भी भारत में विलय करने की इच्छा बलवती थी । उसका एक उदाहरण ही काफी है एक बार जब वह भारतीय युद्धपोत द्वारा मुंबई से बाहर यात्रा पर थे । तो गोवा के निकट पहुंचने पर उन्होंने कमांडिंग ऑफिसर से पूछा इस युद्धपोत पर तुम्हारे पास कितने सैनिक है । जब कप्तान ने उनकी संख्या 800 बताई तो पटेल ने फिर पूछा क्या यह गोवा पर अधिकार करने के लिए पर्याप्त है।
सकारात्मक उत्तर मिलने पर पटेल बोले अच्छा चलो जब तक हम यहां हैं गोवा पर अधिकार कर लो कप्तान ने उनसे लिखित आदेश देने की गिनती की तब पटेल चौके फिर कुछ सोचकर बोले ठीक है चलो हमें वापस लौटना होगा । जवाहरलाल इस पर आपत्ति करेंगे । सरदार पटेल और नेहरू के विचार में काफी मतभेद थे फिर भी गांधी से वचनबद्ध होने के कारण ने भी नेहरू को सदैव सहयोग देते रहे।
गंभीर बातों को भी विनोद से कह देते थे । कश्मीर की समस्या को लेकर उन्होंने कहा था सब जगह तो मेरा बस चल सकता है पर जवाहरलाल की ससुराल में मेरा बस नहीं चलेगा । उनका यह कथन भी कितना सटीक था। भारत में केवल एक ही व्यक्ति राष्ट्रीय मुसलमान है । जवाहरलाल नेहरू से सब संप्रदायिक मुसलमान है। यदि नेहरू को भारत की उत्कृष्ट प्रेरणा कहा जाए तो पटेल को उनका प्रबल विनय या अनुशासन कहा जा सकता है। हालांकि सरदार पटेल में भी कुछ त्रुटियां थी ।
सरदार वल्लभभाई पटेल का
किंतु उनकी रचनात्मक सफलता ने उन्हें इतिहास में अमर बना दिया । किसी मित्र के ऑडिशन में काम लाने आने के लिए वह अपने को रख वचनबद्ध मानते थे ।15 दिसंबर 1950 को 1937 पर इस महापुरुष का 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया। जिसकी क्षतिपूर्ति होना दुष्कर्म है यह भी सच है कि गांधी ने कांग्रेस में प्राणों का संचार किया ।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से उसको आचरण मिलता था और सरोजिनी नायडू ने कांग्रेस को आभा प्रदान की थी । लेकिन इसके सोच साथ जो शक्ति और संपूर्णता कांग्रेस को प्राप्त हुए व सरदार पटेल के कार्य क्षमता का ही परिणाम था । लोह पुरुष सरदार पटेल की राष्ट्र के प्रति की गई सेवाएं का भारतीय जनमानस पर अमिट प्रभाव है।