पंडित गोविंद बल्लभ पंत का जीवन परिचय |govind ballabh pant biography in hindi summarizes
पंडित गोविंद बल्लभ पंत पर लिखे लेख
पंत जी पर्वत पुत्र हैं और पर्वतों की भाती ही शांत और अविचल है ।
---------पंडित जवाहरलाल नेहरू
स्वतंत्रता से पूर्व स्वतंत्रता सेनानी के रूप में तथा बाद में राष्ट्रीय निर्माता के रूप में पंत जी ने राष्ट्र की जो सफाई की उनके कारण भारत के इतिहास में उनका नाम सुरक्षित और अमिट है।
----डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन
पंडित गोविंद बल्लभ पंत का जीवन परिचय और इतिहास इन हिंदी
पंत जी की जीवन यात्रा बड़े सामान्य ढंग से आरंभ हुई । राम से कांग्रेस के भाषण प्रतिस्पर्धा में से वह सबसे आगे रहते थे। तत्पश्चात कानून का अध्ययन पूरा करने के बाद वे वकील बने। इसी अवधि में वे समाज सेवा की और अग्रसर हुए और कुमाऊं परिषद की स्थापना की । इसके बाद वे उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए । अब 1937 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी । तो कांग्रेस के नेताओं को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए उनसे बेहतर व्यक्ति नहीं मिला। बाद में पुणे में 1946 से 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे इसके बाद मृत्यु उपरांत वे भारत सरकार के गृह मंत्री रहे।
सरदार वल्लभभाई पटेल read
पंत जी की जीवन यात्रा की एक झलक
पंत जी की जीवन यात्रा की एक झलक -- 10 सितंबर 1837 जन्म गांव खूँट जिला अल्मोड़ा उत्तर प्रदेश में श्री मोना रथ पंथ के यहां हुआ। इनकी माता जी का नाम श्रीमती गोविंदी था।
- सन् 1930 राम से कॉलेज जिला अल्मोड़ा से हाई स्कूल परीक्षा मे सफल।
- दिसंबर 1905 (उन्नीस सौ पांच ) अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बनारस अधिवेशन में पहली बार भाग लिया।
- सन् 1916 कुमाऊं परिषद की स्थापना एवं कांग्रेस अधिवेशन में कुमाऊं परिषद का प्रतिनिधित्व।
- सन् 1923 प्रांतीय विधान परिषद में निर्वाचित ।
- 30 नवंबर 1928 लखनऊ में साइमन कमीशन विरोधी प्रदर्शन में क्षत-विक्षत ।
- 16 मई 1930 नमक कानून भंग करने के कारण 6 महीने की सजा ।
- 10 अगस्त 1931 भुवाली उत्तर प्रदेश में पुत्र श्री कृष्ण चंद्र पंत का जन्म ।
- 18 फरवरी 1932 असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार
- 17 जुलाई 1937 उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने
- 9 अगस्त 1942 भारत छोड़ो आंदोलन में मुंबई में गिरफ्तार
- सन 1946 पुणे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर निर्वाचित
- 10 जनवरी 1955 केंद्रीय गृह मंत्री के पद पर नियुक्ति
- 26 जनवरी 1957 भारत रत्न से सम्मानित
- 7 मई 1961 स्वर्ग रोहन
कानून की शिक्षा पूरी करने के बाद में पंडित गोविंद बल्लभ पंत
कानून की शिक्षा पूरी करने के बाद में पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने अपना वकीली जीवन का आरंभ प्रख्यात अधिवक्ता पंडित मोतीलाल नेहरू के सहायक के रूप में किया। पंडित मोतीलाल नेहरू द्वारा इस युवा अधिवक्ता की विलक्षणता तर्कशक्ति होता भाषण शैली से अत्यधिक प्रभावित हुए थे । उन्होंने पंत को काकोरी षड्यंत्र मामले में क्रांतिकारियों का वकील बनाया। जिस कुशलता सुन कर क्रांतिकारियों की वकालत की ।उसकी प्रशंसा तेज बहादुर सप्रू तथा मोतीलाल नेहरू जैसे दिग्गज अधिवक्ताओं ने मुक्त कंठ से की । एक प्रतिभाशाली अधिवक्ता के रूप में उन्होंने अपने आगमन का संकेत दिया । 30 नवंबर 1928 को साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन करते हुए पंत जी पर पुलिस ने बेरहमी से लाठी प्रहार किया था । इस कमीशन के विरोध में लखनऊ में एक विशाल जुलूस निकाला गया था ।
इसका नेतृत्व नेहरू जी और पंत जी ने किया था । पुलिस ने जुलूस को भंग करने के लिए इन दोनों पर लाठी प्रहार किया ऊंचे कद के पंत जी ने छोटे कद के नेहरू जी को बचाने के लिए अपने ऊपर लाठियों के प्रहार से नेहरू जी के शब्दों में मेरा शरीर लाठियों के पहाड़ के निशान और गांव से भरा पड़ा था । लेकिन मेरे साथियों का हाल मुझसे कई अधिक खराब था । 6 फीट से अधिक ऊंचाई वाले गोविंद बल्लभ पंत ने पुलिस के क्रूर लाठी ग्राहकों को बड़ी हिम्मत और निडरता के साथ सहन किया ।
परंतु इन प्रहारों के फल स्वरुप वह एक ऐसी ला-इलाज और कष्टदायक विधि के शिकार हो गए जिसने उनका पीछा आजीवन नहीं छोड़ा और सदैव गर्दन में कष्ट देता रहा । इस घटना के बाद पंत जी को अद्भुत साहस और प्रगाढ़ देशभक्ति का प्रतीक माना । उनकी ख्याति उत्तर प्रदेश की सीमाओं को लांघ कर सारे देश में फैल गई । बाद में जब केंद्रीय असेंबली के लिए चुने गए तो उन्हें कांग्रेस दल का उप प्रधान नियुक्त किया गया ।
मधुर एवं प्रभावी भाषण के स्वामी प्रभावशाली वक्ता | पंडित गोविंद बल्लभ पंत
मधुर एवं प्रभावी भाषण के स्वामी प्रभावशाली वक्ता जो अपने सहायता करना। प्रिय सहेली से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने में समर्थ थे । पंत जी ने शीघ्र ही एसेंबली में अपनी धाक जमा दी तीसरे दशक में हुआ सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली में कांग्रेस सरकार की दमनकारी नीतियों के बारे में सबसे अधिक बोले एक बार तो उन्होंने लगातार 5 घंटे तक बोल कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया । बात में बेजोड़ थे । उत्तर प्रदेश विधानसभा में तथा सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली में उनके समान असरदार ढंग से भी बात करने वाला दूसरा वक्त आना था । इस केंद्रीय विभाग सभा में पंत जी ने स्वयं को उच्च कोटि के विख्यात सांसदों के बीच पाया। वे संसदीय कार्य प्रणाली में निपुण थे । हाजिर जवाबी में तथा बयांग उत्तर देने में उनका जवाब नहीं था।ऐसे दिग्गज सांसदों के बीच में भी पंत जी ने अपनी अलग पहचान बनाई और एक अध्यक्ष सांसद के रूप में प्रसिद्ध दी हुई । राजनीतिज्ञों के साथ पंत जी संसद की कार्यवाही को अत्यंत सहज ही बनाए रखे थे। विशेष रूप से उस काल को जो प्रश्न उत्तर काल माना जाता है । पंत जी सभी संसदीय विषयों में निपुण थे। परंतु आर्थिक विषयों पर उनके भाषण दर्शाते थे कि उन विषयों की उनकी जानकारी कितनी व्यापक और गहरी थे । बजट के अवसर पर वह जो भाषण देते थे।
उसकी सहारा ना स्वयं सरकार भी करती थी । गंगा के साथ और सतत व प्रभावी जल का जो प्रभाव दर्शकों पर पड़ता है। पंत जी जो कहते थे उनका प्रभाव सरकार पर अवश्य पड़ता था । फलता सभी उन्हें वित्तीय विषयों के निर्विवाद विशेषज्ञ मानते थे।
विशेष रूप से सार्वजनिक अर्थव्यवस्था पर उनके मत को बड़े आदर के साथ सुना जाता था ।1936 के चुनावों में कांग्रेस दल ने भारी बहुमत से विजय प्राप्त की उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और पंत जी को राज्य का पहला प्रधानमंत्री बनने का असाधारण गौरव प्राप्त हुआ । जिन्न दूरदर्शी प्रशासकीय क्षमता से उन्होंने सरकारी प्रशासन का संचालन किया ।
उससे यह सिद्ध हो गया कि वह एक जन्मजात प्रशासक थे । सन् 1946 में जो चुनाव हुए उनमें कांग्रेस पार्टी पुनः बिजाई हुई और पंडित जी एक बार पुनः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने इसी विषय वर्ष उन्हें संविधान परिषद का सदस्य बनाया गया । उनकी गिनती प्रमुख संविधान निर्माताओं में होती है। इस प्रसंग में उनके द्वारा सुझाए गए तीन महत्वपूर्ण प्रस्तावों को संविधान में स्थान मिला और उनके इस विशिष्ट योगदान ने संविधान को एक निश्चित आकार और रूपरेखा प्रदान करने में सहायता की ।
कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार | पंडित गोविंद बल्लभ पंत
उत्तर प्रदेश में स्वाधीनता के बाद कृषि क्षेत्र में जो क्रांतिकारी सुधार हुए उसका आधार भी वह रिपोर्ट थी । जो पंत कमेटी रिपोर्ट के नाम से जानी जाती थी और जिसे उन्होंने 1931 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति को उसके अनुरोध पर प्रयुक्त किया था । समिति ने इन सुधारों की सिफारिश करने के लिए उनके नेतृत्व में कृषि सुधार समिति की स्थापना की थी । पंडित नेहरू सरदार पटेल के निधन के बाद से ही पटेल जैसी क्षमता और दरिद्रता वाला गृहमंत्री की खोज में थे । चारों ओर नजर दौड़ाने लेकिन इन्हें इस पद के लिए पंत जी से अच्छा व्यक्ति नहीं मिला।
गृहमंत्री के रूप में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का कठिन और दुष्कर पंत जी के कार्यकाल में ही संपन्न हुआ था। इस कार्य के दौरान उन्हें विभिन्न भागों के आवेगो और भावनाओं पैसों का जो परस्पर विरोधी थे। उनका भी सामना करना पड़ा था । मौजूदा इकाइयों के टूटने और नीतियों के बनने से अनेक ऐतिहासिक स्मृतियों को मिटने पर मजबूर होना पड़ा और यही अनेक राज्यों के बीच भावनात्मक संघर्ष का कारण बना। गृह मंत्री के रूप में राज्यों के पुनर्गठन के समान ही एक और विशिष्ट समस्या का सामना पंत जी को ही करना पड़ा था।
गैर हिंदू राज्यों से हिंदू को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकृत दिलाना
गैर हिंदू राज्यों से हिंदू को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकृत दिलाने में उन्होंने जिस उच्च कोटि की राजनीतिक नेता का परिचय दिया। वह सदा याद ही किया जाएगा या पंत जी की कूटनीतिक जीत का ही परिणाम था कि असम, पंजाब और केरल राज्य में लहराते राजनीतिक संकट जातीय दंगों तथा भाषा के दंगों पर पार पाकर उन्होंने एकीकरण की क्रियाओं को जारी रखा और उसे इन दंगों तथा संकटों से प्रभावित नहीं होने दिया ।
जब उन्होंने गृह मंत्री का कार्यभार संभाला था। तब मणिपुर ,नागालैंड राज्य में आशांति छाई हुई थी। लेकिन पंत जी ने आते ही दोनों राज्यों में स्थाई शांति स्थापित कर दी। उनके कुशल नेतृत्व जमीदारी प्रथा समाप्त हुई । ग्राम पंचायतों की स्थापना हुई । अश्लीलता को अवैध घोषित किया गया और जनकल्याण की अनेक विकास योजनाओं ने जन्म लिया।
केंद्रीय मंत्री बनने के बाद पंत जी के बाद पंत जी के कार्य-
केंद्रीय मंत्री बनने के बाद पंत जी ने उत्तर प्रदेश के अस्पताल उन्मूलन कानून के अनुरूप एक विधि संसद में भी प्रवेश किया। किसके पारित हो जाने के बाद अस्पृश्यता का पालन करने वाले को अपराध माना जाने लगा व्यस्त रहता के कट्टर विरोधी थे ।इस विधेयक पर बहस के दौरान ने कहा था । अस्पृश्यता मात्र हिंदू धर्म पर एक कलंक ही नहीं उसके कारण विघटनकारी शक्तियों को बल मिलता है और जातिवाद को बढ़ावा मिलता है। हमारी अनेक सामाजिक बुराइयों की जड़ में आज पता ही है ।
आजादी के बाद कांग्रेस के नेताओं को पद प्रदर्शन की आम भूमिका भी पंत जी को निभानी पड़ी। उनका कार्य इसलिए कठिन था कि उन्हें देश के जनता को ऐसे नए पथ पर अग्रसर करना पड़ रहा था। जिनकी जानकारी स्वयं उन्हें भी नहीं थी या बहुत कम थी पंत जी ने अपनी पथ प्रदर्शन की भूमिका को बड़ी जिम्मेदारी के साथ यशस्वी ढंग से निभाया और इस प्रकार देश के प्रगति मार्ग पर ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।