डॉ राधाकृष्णन के जीवनी का परिचय |dr sarvepalli radhakrishnan in hindi biography

डॉ राधाकृष्णन के जीवनी का परिचय |dr sarvepalli radhakrishnan in hindi biography

डॉ राधाकृष्णन के जीवनी का परिचय |dr sarvepalli radhakrishnan in hindi biography
डॉ राधाकृष्णन के जीवनी का परिचय |dr sarvepalli radhakrishnan in hindi biography

डॉ राधाकृष्णन के जीवनी का शारांश इन हिंदी

"ज्यों की त्यों धर दिन्ही चदरिया" कबीर के इस उक्ति को चरितार्थ करते थे। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जिस परम पवित्र रूप में हुआ । इस पृथ्वी पर आए थे । बिना किसी दाग धब्बे के उसी पावन रूप में उन्होंने इस वसुंधरा से विदाई ली । लंबे प्रत्येक दिल ने उनका अभिनंदन किया । भारत के राष्ट्रपति पद की गरिमा बनी । जैसे सादगी की ऊंची जिंदगी जीने वाले मेहमानों से सार्थक हुई । अपनी सौभाग्य था और संस्कारित आ के कारण व अजातशत्रु हो गए थे । वह उन राजनीतिक गांव से एक थे । जिन्हें अपनी संस्कृति एवं कला से अपार लगाव होता है। वह भारतीय समाजिक संस्कृति से ओतप्रोत आस्थावान हिंदू थे।

सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवनी इसे भी read करे! 

उसके साथ ही अन्य समस्त धर्म प्रेमियों के प्रति भी गहरा आदर भाव रखते थे । जो लोग उनसे वैचारिक मतभेद रखते थे । उनकी बात भी हो बड़े सम्मान एवं धैर्य के साथ सुनते थे । कभी-कभी उनकी विनम्रता को लोग उनकी कमजोरी समझने की भूल करते थे। परंतु उनकी या उदारता उनकी दृढ़ निष्ठा से पैदा हुई थी । उनका जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिल नाडु राज्य के तिरुताणी नामक गांव में हुआ था। जो मद्रास (वर्तमान में चेन्नई ) शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।


डॉक्टर राधाकृष्णन के परिवार का परिचय -

उनका परिवार अत्यंत धार्मिक था और उनके माता-पिता सगुन उपासक थे। उन्होंने प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा मिशन स्कूल तिरुपति तथा बेलोर कॉलेज  में प्राप्त की । सन् 1905 में उन्होंने मद्रास के क्रिस्चियन कॉलेज में प्रवेश लिया । बीए और एमए की उपाधि उन्होंने इसी कॉलेज से प्राप्त की । सन् 1909 में मद्रास के ही एक कॉलेज में दर्शन शास्त्र के अध्यापक नियुक्त हुए। इसके बाद व प्रगति के पथ पर लगातार आगे बढ़ते गए तथा मैसूर एवं कोलकाता विश्वविद्यालयों में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया ।

इसके बाद डॉ राधाकृष्णन ने आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर कार्य किया। लंबी उपाधि तक वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर रहे । काशी हिंदू विश्वविद्यालय में उन्होंने कुलपति के पद को भी सुशोभित किया सोवियत संघ में डॉक्टर राधाकृष्णन भारत के राजदूत भी रहे । उनके राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों तथा श्रेष्ठ मंडलों का उन्होंने नेतृत्व किया ।यूनेस्को के एग्जीक्यूटिव बोर्ड के अध्यक्ष बाद में उन्होंने 1948-49 में गौरव विद किया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर का यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण पद है ।1952-62 की अवधि में हुआ । भारत उपराष्ट्रपति तथा 1962 से 1967 तक राष्ट्रपति रहे ।1962 में भारत-चीन युद्ध 1965 में भारत-पाक युद्ध उन्हीं की राष्ट्रपति तत्काल में लड़ा गया था । अपने ओजस्वी भाषण से भारतीय सेनाओं के मनोबल को ऊंचा उठाने में उनका योगदान सराहनीय था। डॉ राधाकृष्णन भाषण कला के आचार्य थे। विश्व के विभिन्न देशों में भारतीय तथा पाश्चात्य दर्शन पर भाषण देने के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया । लोग तो उनके भाषणों से मन मुक्त ही रह जाते थे ।

डॉ राधाकृष्णन के विचारों वा भाषण का प्रभाव

डॉ राधाकृष्णन में विचारों कल्पना का भाषा द्वारा विचित्र ताना-बाना बुनने की अद्भुत क्षमता थी । उनके प्रवचनों की वास्तविक महत्व उनके अंतर में निवास करती थी। जिनकी व्याख्या नहीं की जा सकती है उनकी यही आध्यात्मिक शक्ति सबको प्रभावित करती थी । अपनी और आकर्षित करती थी और संकुचित क्षेत्र से उठाकर उन्मुक्त वातावरण में ले जाती थी । 

हाजिर जवाबी में तो डॉक्टर राधाकृष्णन गजब के थे। एक बार वह इंग्लैंड गए विश्व में उन्हें हिंदुत्व के परम विद्वान के रूप में जाना जाता था । तब देश  मे परातंत्र था। बड़ी संख्या में लोग उनका भाषण सुनने के लिए आए थे।


भोजन के दौरान एक दो अंग्रेज ने तो डॉक्टर राधाकृष्णन से पूछा क्या हिंदू नाम का कोई समाज है ? कोई संस्कृति है ? तुम कितने बिखरे हुए हो ? तुम्हारा एक रंग नहीं ? कोई गोरा ? कोई काला ? कोई बोना? कोई धोती पहनता है ? कोई लूंगी ? कोई कुर्ता ? तो कोई कमीज ! देखो हम अंग्रेज सब एक जैसे हैं सब गोरे-गोरे ,लाल-लाल इस पर डॉ राधाकृष्णन ने तपाक से उत्तर दिया थोड़े अलग-अलग रंग रूप के होते हैं ।  पर कंधे एक जैसे होते हैं। अलग-अलग रंग और विविधता विकास के लक्षण हैं ।

डॉक्टर राधाकृष्णन को भारत तथा विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों से दिये गये उपाधियाँ !

भारत तथा विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों ने डॉक्टर राधाकृष्णन को मानद उपाधियों से सम्मानित कर अपना गौरव बढ़ाया । 100 से अधिक विश्वविद्यालयों ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। इसमें हार्वर्ड विश्वविद्यालय तथा ओवर्लिन कॉलेज द्वारा प्रत्यंत डॉक्टर ऑफ लॉ की उपाधि प्रमुख है । उन्हें भारत सरकार ने 1954 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया ।

भारत रत्न से सम्मानित किए जाने वाले व भारत के प्रथम तीन गौरवशाली व्यक्तियों में से एक थे । विश्वप्रसिद्ध टेंपलटन पुरस्कार भी पुणे प्रदान किया गया। डॉक्टर राधाकृष्णन ने दर्शन एवं संस्कृति पर अनेक ग्रंथों की रचना की जिनमें अत्यधिक लोकप्रिय है। द फिलॉसफी ऑफ द उपनिषद ,भगवत गीता, ईस्ट एंड वेस्ट सम रिप्लिकेशन, ईस्टर्न रीजन एंड वेस्टर्न थॉट, इंडियन फिलासफी, एन आइडियलिस्ट व्यू ऑफ लाइफ, हिंदू व्यू ऑफ़ लाइफ , द एथिक्स ऑफ वेदांत एंड इंडस, प्रीपोजिशन, फिलॉसफी ऑफ रविंद्र नाथ टैगोर आदि।

डॉक्टर राधाकृष्णन के हिंदी में अनुवादित लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण पुस्तकें!

हिंदी में अनुवादित उनकी लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं-
भारतीय संस्कृति , सत्य की खोज एवं संस्कृति तथा समाज डॉ राधाकृष्णन के दर्शन पर सिप्लि द्वारा संपादित पुस्तक प्रसिद्ध है । यह एक अभिनंदन ग्रंथ है। जिसमें भारतीय दर्शन और डॉक्टर राधाकृष्णन पर अनेक विद्वान के खोजपूर्ण लेख हैं।

गीता में प्रतिपादित कर्मियों के सिद्धांतों के अनुसार वे निर्विवाद निष्काम कर्मयोगी थे । भारतीय संस्कृति के उपासक तथा राजनीतिक इन दोनों ही रूपों में उन्होंने या प्रयत्न किया कि वह संपूर्ण मानव समाज का प्रतिनिधित्व कर सकें और विश्व के नागरिक कहे जा सके। एक महान शिक्षाविद थे और शिक्षक होने का उन्हें गर्व था। उन्होंने अपने राष्ट्रपति  काल में अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा प्रकट की थी । तभी से 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

डॉ राधाकृष्णन गौतम का जीवन परिचय | Dr Sarvepalli Radhakrishnan biography

डॉ राधाकृष्णन गौतम बुद्ध की तरह ह्रदय में अपना करुणा लेकर आए थे। कठिन से कठिन परिस्थितियों में निष्काम एवं समर्पण भाव से कर्म करने के मार्ग को डॉक्टर राधाकृष्णन सदैव परमात्मा को समन स्मरण रखने का अर्थ ही विश्व सत्ता के साथ स्वयं को जोड़े रखना है। डॉ राधाकृष्णन  हिंदुस्तान के साधारण आदमी के विश्वास समझदारी, उदारता , ईमानदारी और स्वच्छता इन सब के साकार प्रतिबंध थे । उन्हें बड़े देश का नागरिक होने का बोध और अधिक विनम्र बनाता  था। उन्हें ऊंचे पद ने और अधिक सामान्य बनाया तथा राष्ट्र नीति राजनीति के हर एक दाव  ने और अधिक निश्चय बनाया ।


डॉक्टर राधाकृष्णन के विचार 

  • धर्म का लक्ष्य अंतिम सत्य का अनुभव है
  • र्शन का उद्देश्य जीवन की व्याख्या करना नहीं जीवन को बदलना है ।
  • रोटी के ब्रह्म को पहचानने के बाद ज्ञान के ब्रह्म से साक्षात्कार अधिक सरल हो जाता है
  • दर्शन का जन्म अनुभव के फल स्वरुप होता है ना कि सत्य की खोज के इतिहास के अध्ययन के फल स्वरुप
  • धर्म दर्शन शास्त्र एक रचनात्मक विद्या है
  • अंतर आत्मा का ज्ञान कभी नष्ट नहीं होता है
  • प्रत्येक व्यक्ति ही ईश्वर की प्रतिमा है
  • एक शताब्दी का दर्शन ही दूसरी शताब्दी का सामान्य ज्ञान होता है ।

दर्शन का अल्प ज्ञान मनुष्य को नास्तिकता की ओर झुका देता है । परंतु दर्शन एकता की गहनता प्रवेश करने पर मनुष्य का मन धर्म की ओर उन्मुख हो जाता है ।


धर्म और राजनीति का सामंजस्य संभव है एक सत्य की खोज करता है तो दूसरे को सत्य से कुछ लेना-देना नहीं
महान उद्देश्य शासित व्यक्ति को भाग्य नहीं रोक सकता
चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियां पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें मनुष्य की तरह जमीन पर चलने के लिए सीखना है


दर्शन में धैर्य की प्राप्ति का उतना महत्व नहीं है जितना कि उन वस्तुओं का जो हमें मार्ग में मिलती जाती है
समय मूल्यवान अवश्य है परंतु समय से ही मूल्यवान है सत्य
मानव का दानव बन जाना उसकी पराजय है मानव का महामानव होना उसका चमत्कार है और मानव का मानव होना उसकी विजय है।

Dreamers

I am a story writer. I can write very interesting and impressive story

Post a Comment

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

Previous Post Next Post