ncert class 12 history book in hindi haryak वंश ka इतिहास और सम्मरी

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Intro -

नमस्कार दोस्तो! आज हम इस ब्लॉग पोस्ट में class 12 history book in hindi हर्यक वंश का इतिहास के बारे में जानेंगे । हर्यक वंश क्या है तथा उसका इतिहास , उनके वंशज आदि को अच्छे तरीके से जानेंगे। हर्यक वंश के विभिन्न राजाओं के बारे में आज हम read करेंगे तो बने रहिए इस ब्लॉग पोस्ट में। 


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class 12 history book in hindi

हर्यक वंश का उदय ( class 12 history book in hindi) 

दोस्तों हम जब मगध साम्राज्य का उत्कर्ष पढ़ते हैं तो सबसे पहले हर्यक वंश के राजाओं का नाम सर्वप्रथम आता है।
कई विद्वानों ने अपनाया राय दिया है कि इस हर्यक वंश से भी पहले एक राज वंश हुआ करता था। 

जिसका नाम वृहवंश था। इस वंश का  राजा जरासंघ था ।  हर्यक वंश को हम इसलिए याद रखते हैं क्योंकि राजा जरासंघ ने अपने साम्राज्य (मगध) की उतनी विस्तार नहीं किया । जितनी कि हर्यक वंश के राजा ने किया था । इसी कारण हम हर्यक वंश को सर्वप्रथम वंश मगध का मानते हैं ।


हर्यक वंश का संस्थापक तथा राजवंश(Ncert class 12 history) 

हम जानते हैं कि हर्यक वंश का संस्थापक बिंबिसार है । जिसका उपनाम शोणिक है ।  जिसे सैनिक भी कहा जाता है। लेकिन इनके पिताजी के नाम को लेकर इतिहास के विद्वानों में थोड़ा दुविधा रहती थी ।

तो आइए इस दुविधा को समझते हैं-

कई विद्वानों के अध्ययन के अनुसार कुछ साहित्य हैं ।
जैसे- बौद्ध साहित्य ।
बौद्ध साहित्य में दो ग्रंथ है । दुपवंश तथा महावंश । इन दोनों वंश को सिंहिनी कहा जाता है। क्योंकि इनका निर्माण श्रीलंका में हुआ था । 

कहते हैं कि दुपवंश में इनके पिता जी का नाम बोदीश है तथा मत्स्य पुराण में इनके पिताजी का नाम क्षेत्रोजस है । जैन ग्रंथों में बिंबिसार के पिता को लिच्छवी गणराज्य का सेनापति कहा गया है ।


बिंबिसार का वंश तथा साम्राज्य

बिंबिसार के तीन पत्नियां का उल्लेख कई विद्वानों ने किया है। जिनमें प्रथम पत्नी का नाम चेलना था । यह लिच्छवी के राजा चेटक  की पुत्री थी।

दूसरी का नाम महाकौशल था। ये कौशल नरेश की पुत्री थी।
तथा तीसरी रानी का नाम खेमा था ।

नोट -चेलना के पिता चेटक थे । चेटक के एक बहन है जिनका नाम त्रिशला था । जिनका विवाह महावीर स्वामी के पिता से हुआ था ।

बिंबिसार की नीतियां एवं षड्यंत्र (ncert history book class 12 part 2) 

बिंबिसार एक प्रतापी राजा थे। यह अपना वर्चस्व अपना संपूर्ण साम्राज्य में बना कर रखते थे । जिसका उदाहरण के तौर पर हम उनका राजधानी को ले सकते हैं । 

मगध की राजधानी राजगृह को माना जाता है । लेकिन बिंबिसार के प्रभाव के कारण हम इन्हें बिंबिसारपूरी के नाम से भी जानते हैं ।

 बिंबिसार ने हर्यक वंश तथा मगध के विजय और साम्राज्य विस्तार के लिए राजनीतिक युद्ध  का सहारा लिया। जिसमें सबसे पहले इन्होंने अंग पर आक्रमण किया। 

इस आक्रमण से मगध साम्राज्य का विस्तार आरंभ हो गया और यह जाकर अशोक के कलिंग युद्ध में समाप्त हुआ ।


नोट -इस समय अंक राजा ब्रह्म दत्त था।
बिंबिसार ने अंग पर आक्रमण इसीलिए किया था। क्योंकि अंग तथा मगध का राजनीतिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी। अंग की विजय के बाद बिंबिसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को अंग की राजधानी चंपा का युवराज बना दिया । 


चंपा मालिनी नदी के तट पर स्थित थी । कहा जाता है कि बिंबिसार पहले राजा हैं जो राजनीतिक युद्धों के साथ-साथ वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए ।


मगध विजय हेतु बिंबिसार का विवाहित षड्यंत्र(class 12 history book in hindi) 

अवंती तथा कौशल का अधिकार काशी पर था।


 इस प्रकार यदि बिंबिसार अपने समीप स्थित काशी पर आक्रमण करते तो उनके अवंती के साथ कौशल का भी सामना करना पड़ता। और उस समय कौशल मगध के बाद सबसे शक्तिशाली था। 


इसलिए बिंबिसार ने यह तय किया कि कौशल के राजा प्रसेनजीत की पुत्री महाकौशलआ से विवाह कर लिया जाए। जिसके कारण काशी  बिंबिसार को दहेज के रूप में मिल गया। इसके बाद बिंबिसार ने वज्जि संघ के तरफ अपना रुख किया। लेकिन वज्जि एक संघ था। 


जिसमें 8 संघ के राजा का मिलाओ था। इस कारण राजा बिंबिसार ने यहां पर फिर विवाहित संबंध का इस्तेमाल किया। इस वज्जि संघ में एक लिच्छवी राज्य था । जिसका राजा चेटक था । 


लिच्छवी गणराज्य के राजा चेटक की पुत्री चेलना थी। जिसके साथ बिंबिसार ने विवाह कर लिया। इसके कारण अब वज्जि संघ से भी बिंबिसार का एक अच्छा रिश्ता बन गया। विवाहित संबंधों से बिंबिसार के बच्चे भी हुए महाकौशल से अजातशत्रु तथा चेलना से हल और बेहल हुआ । 


अभय बिंबिसार के पत्नी अम्रपाली का पुत्र था । कहा जाता है कि अम्रपाली एक वैश्य थी । इस प्रकार अभय एक वैश्य पुत्र था । तथा बोधी कुमार भी बिंबिसार का  पुत्र था । विनय पिटक से यह पता चलता है कि बिंबिसार 7 दिनों के लिए वैशाली के एक सुंदर गायिका आम्रपाली के घर रुका था। अभय इसी अम्रपाली का संतान था। 


अभय ने एक राजवेद को पाला था। जिसका नाम जीवक था । जीवक एक अनाथ था । जीवक को अभय ने गलियों से उठाया था। जीवक भी एक वैश्य पुत्र था । ऐसा विनय पिटक में उल्लेख किया गया है।
Note - लोक साहित्य ग्रंथ भी कभी-कभी सही नहीं होती है।

 इसमें भी काफी काल्पनिक बातें लिखे गए होते हैं ।

 
बिंबिसार ने एक और विवाह मद्र राजकुमार जो पंजाब में स्थित है । उनके साथ किया था। मद्र राजकुमारी का नाम खेमा था । मद्रा राजकुमारी से विवाह करने का कारण यह था कि गंधार के राजा पुष्करसरीन मद्र से होते हुए अवंति का मदद करता था । जिसके कारण बिंबिसार ने मद्र से अपना विवाहित संबंध बनाया। 


बिंबिसार ने अवंती को जीतने के लिए राजनीतिक षड्यंत्र के साथ-साथ अपना दिमाग भी चलाया। कहा जाता है कि एक समय अवंती के राजा चंडप्रद्योत को पीलिया (पांडुरोग ) हो गया । इस समय बिंबिसार अपने एक मित्र के भाती बिना राजा से पूछे ही अवंती में एक वैध भेज दिया।


 जिसके बाद चंडप्रद्योत का स्वास्थ्य ठीक हो गया। इस घटना से राजा चंड प्रद्योत काफी खुश हो गए । जिससे अब मगध तथा अवंती के संबंध काफी अच्छे हो गए ।


मगध की मजबूत अर्थव्यवस्था(Ncert class 12 history) 

बिंबिसार ने ही मगध को एक स्थाई सेना का स्थापना किया। एक राज्य को स्थाई हम तब कह सकते हैं जब उसका अर्थव्यवस्था अच्छा हो ,अच्छी सेना हो ,राजनीतिक संरचना हो, और मुद्रा व्यवस्था अच्छी हो तभी हम उस राज्य को स्थाई सेना कह सकते हैं।


 मगध के स्थाई होने का कारण उसका मजबूत अर्थव्यवस्था थी । इसके पास मजबूत लोहे का भंडार भी था । यह चारों ओर पहाड़ियों थी। जब मगध में हर्यक वंश नहीं थी तब सेना का गठन आस्थाई होती थी। इसका मतलब जब युद्ध होता था। तब सेना का गठन हुआ करता था । लेकिन हर्यक वंश के आने पर सेना का गठन स्थाई हो गया। 


इस अस्थाई सेना को मिलीसिया कहते हैं । मगध के स्थाई होने के बाद बिंबिसार ने इसका नेतृत्व करने के लिए एक व्यक्ति को नियुक्त किया। जिसका नाम महापात्र था ।  विशेष तौर पर एक पद थी । बिंबिसार ने दूसरा पद की नियुक्ति की जिसमें न्यायधीश थी। इसे व्यवहारिक महापात्र के नाम से जाना जाता है । 


इन्होंने तरपन कर को भी माफ किया था। ये विशेष तौर पर नदी के उतराई कर के रूप में लिया जाता था । बिंबिसार  के मंत्रियों को कोलिए कहा जाता था ।
अजातशत्रु का राज्य लालच एवं प्रथम पितृहंता
बिंबिसार एक प्रतापी राजा थे। परंतु उनके घर एक पितृहंता का विकास हो रहा था । 


जिन्हें अजातशत्रु कहते हैं। सत्ता की लालच में अजातशत्रु ने काफी खराब काम कर दिए। अजातशत्रु अपने मित्र देवदत्त की सलाह से इन्होंने अपने पिता और माता( महाकौशल और बिंबिसार ) को जेल में डाल दिया। बाद में इसी जेल में  महाकौशल और बिंबिसार  की मृत्यु हो गई । यह कहानी हमें विनय पिटक से मालूम चलती है । इसी कारण अजातशत्रु को प्रथम पितृहंता के नाम से जाना जाता है।


देवदत्त

देवदत्त अजातशत्रु का मित्र था । देवदत्त को बौद्ध धर्म से घृणा थी। इसी कारण यह गौतम बुद्ध को मारने की कोशिश भी किया करते थे ।  इन्होंने पत्थर तथा हाथियों से गौतम बुद्ध को मारने की कोशिश की है ।

दूसरी कहानी जो जैन ग्रंथों से पता चलती है -

बिंबिसार 16 लड़ियों वाला मोती का हार अपने गले में सदैव पहनते थे। जो आजातशत्रु को काफी अच्छी लगती थी तथा एक हाथी था जिसका नाम सेयनाक था। उसे भी अजातशत्रु काफी पसंद करता था। परंतु चेलना से उत्पन्न हुए पुत्र हल बेहल वे अपने नानी के घर लिच्छवी  जाने लगे तभी बिंबिसार ने उन्हें यह 16 लड़ियों वाला हार दे दिया तथा हाथी पर बैठकर वे  लिच्छवी चले गए।

 
जब वह घर वापस आए तो उन्हें अजातशत्रु ने देख लिया। जिससे वह काफी क्रोधित हुए क्योंकि इन्होंने उनके प्रिय हाथी तथा उस माला का प्रयोग कर लिया था। जो अजातशत्रु को काफी पसंद था । जिसके कारण अजातशत्रु ने अपने पिता तथा माता को ही जेल में डाल दिया।



अजातशत्रु तथा उनका साम्राज्य(Ncert class 12 history) 

अजातशत्रु का दूसरा नाम कोणिक था। बिंबिसार के मृत्यु के बाद कई राजा अजातशत्रु से युद्ध के लिए खड़े हो गए जिसमें कौशला तथा लिच्छवी सबसे आगे थे। कौशल नरेश प्रसनजीत ने काशी को मगध से अलग करवा दिया । जो बिंबिसार को दहेज के रूप में मिला था। जिसके कारण अजातशत्रु ने कौशल पर हमला बोल दिया ।

 
प्रथम युद्ध में अजातशत्रु की हार हो गई । परंतु दूसरे युद्ध में अजातशत्रु जीत गया । जीतने पर उन्होंने कौशल नरेश की पुत्री से विवाह कर लिया। जिनका नाम बाजीरा था। इस प्रकार काशी पुनः अजातशत्रु यानी मगध को मिल गया। अब कौशल तथा मगध के रिश्ते फिर से अच्छे हो गए ।


दूसरा शत्रु जो अजातशत्रु का था 

लिच्छवी-  लिच्छवी का  साथ वज्जि संघ दे रहा था । अजातशत्रु ने यह कसम खाई थी कि वह वज्जि संघ को हराकर ही दम लेंगे परंतु वज्जि संघ को हराना काफी कठिन था । वे  वज्जि संघ को हराना इसलिए चाहते थे क्योंकि हल और बेहल ने इनका प्रिय हाथी सैयनक तथा मोती ले लिया था। 


दूसरा कारण हमें सुमंगनविलासिनी जो बुध घोष की रचना है । उसमें दूसरा कारण यह कहा गया है कि गंगा नदी जो दोनों क्षेत्रों से बहती थी। जिन पर अजातशत्रु अपना कब्जा करना चाहता था क्योंकि यह गंगा नदी के पहाड़ियों-गुफाओं में हीरे का खान पाया गया था। जिस पर अजातशत्रु अपना कब्जा करना चाहता था।


तीसरा कारण जैन ग्रंथों में मिलता है इसमें कहा जाता है कि अजातशत्रु की पत्नी पद्मावती द्वारा उन्हें उकसाया गया तथा लिच्छवी पर हमला करने के लिए कहा गया ।

 
इस प्रकार अजातशत्रु ने लिच्छवी पर आक्रमण कर दिया । इस युद्ध में अजातशत्रु ने दो प्रैसेपास्त्र  का प्रयोग किया था।
नोट -प्रैसेपास्त्र हुआ करते थे जिन्हें फेंक कर मारा जाता था। दो प्रसिद्ध प्रैसेपास्त्र जो थे । 


पहला रयुराल तथा महाशिलांगकंटक था । यह दोनों अस्त्र का प्रयोग अजातशत्रु ने लिच्छवी या वजी संघ पर किया था। परंतु तब अजातशत्रु जीत नहीं पाया था ।

अजातशत्रु का वज्जि संघ पर विजय(class 12 history book in hindi) 

अवंती के डर से अजातशत्रु ने पोलीब्रोधा गांव का ध्रुवीकरण कर दिया। इस  ध्रुवीकरण के उद्घाटन के लिए अजातशत्रु ने बुद्ध को बुलाया। यह कहा जाता है कि बुद्ध ने ही वज्जि को जीतने के लिए अजातशत्रु को मूल मंत्र दिया। 


इसमें बुद्ध ने कहा कि यदि वज्जि को जीतना है तो तुम्हें वज्जि संघ में विघटन उत्पन्न करना पड़ेगा । किसी षड्यंत्र को सफल करने के लिए अजातशत्रु ने अपने मंत्री वास्सकार को वजी संघ भेजा। 

इस मंत्री ने वज्जि को विघटन कर दिया। इसी समय अजातशत्रु ने वज्जि संघ को जीत लिया तथा वज्जि को अपने अधीन कर लिया ।

उदायीन तथा मगध साम्राज्य का पतन

उदायीन का मगध साम्राज्य के विस्तार में कुछ खास सफलता नहीं मानी जाती है । उदायीन ने अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र कर दिया था। उदयन बाद में जैन धर्म को अपनाया लिया । 


जिसके बाद वे राजकाज छोड़ दिए तथा एक जैन भिझु  बन गए । इसी समय का मौका पाकर अवंती के राजा पालक ने एक राजकुमार के द्वारा इसकी हत्या करवा दी। जिसके बाद हर्यक वंश का पतन आरंभ हो गया ।


 इसके बाद ऐसा कोई राजा नहीं आया जो जिन्होंने कुछ खास प्रभाव हमारे इतिहास में छोड़ा हो। उनमें से राजा थे - अनिरुद्ध ,मुंडक तथा नागदशक, को हर्यक वंश का अंतिम राजा कहा जाता है । इसी नाग दशक को शिशुनाग के द्वारा हराया गया तथा नए वंश का उदय हुआ । जो आगे के ब्लॉक में हम जानेंगे।


निष्कर्ष (class 12 history book in hindi) 

दोस्तों इस ब्लॉग में  class 12 history book in hindi हमने हर्यक वंश के साम्राज्य ,सम्राट तथा इनका विस्तार को समझा। हर्यक वंश किस प्रकार हमारे  इतिहास के लिए महत्वपूर्ण है ।


 उसके बारे में हमने इस ब्लॉग में चर्चा की। इस प्रकार की इंटरेस्टिंग एवं इनफॉर्मैटिक नॉलेज के लिए हमारे ब्लॉक पर बने रहें। इसके लिए आप हमारे नोटिफिकेशन बैल को ऑन कर ले।(class 12 history book in hindi) 

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