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 कुंवर नारायण (कविता के बहाने) 

लेखक- कुंवर नारायण।(kuvar Narayan)
कविता -कविता के बहाने(kavita ke bahane)

लेखक का परिचय-
{ Introduction-कविता के बहाने(kavita ke bahane)}

जन्म -19 सितंबर ,सन 1927 (उत्तर प्रदेश )
प्रमुख पुरस्कार- साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुमार आसन पुरस्कार,व्यास सम्मान आदि ।

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कवि के बारे में -"कविता के बहाने " यह एक यात्रा है । जो फूल, चूड़ियां से लेकर बच्चे तक की है। एक और प्रकृति है। दूसरी और भविष्य की और  बढ़ाता बच्चा। कहने की आवश्यकता नहीं है, कि चिड़िया की उड़ान की सीमा है । फूल के खिलने की सीमा है। परंतु बच्चे की सपने की कोई सीमा नहीं है। दूसरे कविता "बात सीधी थी पर " जो कोई दूसरा नहीं संग्रह में संकलित है। कवि कहते हैं कि हर बात के लिए कुछ खास दूसरा शब्द मौजूद होती है । ठीक उसी प्रकार हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है ।

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कविता के बहाने

(kavita ke bahane)

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प्रसंग- दिया गया पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक"आरोह भाग- 2" से लिया गया है । कविता का नाम "कविता के बहाने" हैं । इसके कवि कुंवर नारायण है। इस पंक्ति में कवि बताते हैं, कि बच्चे की सपने की कोई सीमा नहीं होती। जैसे चिड़िया की उड़ान की सीमा होती है ।

व्याख्या- कवि इस "कविता के बहाने(kavita ke bahane)" मै कहते हैं ,कि चिड़ियों की भांति विचारों व कल्याण की उड़ान होती है । लेकिन चिड़ियों की एक सीमा होती है । वह अपनी सामर्थ्य के अनुरूप ही उड़ सकती है। परंतु कल्याण की कोई सीमा नहीं होती है। इस प्रकार कि  तेज़  विचार को चिड़िया समझ नहीं सकती है। कल्याण की कोई सीमा नहीं होती है। अतः इस सीमा से उस सीमा तक कल्याण की उड़ान को चिड़िया  नहीं समझ सकती हैं।

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प्रसंग- इस पंक्ति में कवि ने विचारों की खेलने की तुलना फूलों से की है परंतु फूल एक सीमा के बाद वह मुरझाने लगते हैं । लेकिन बालक के खेलने-खिलने की कोई सीमा नहीं होती।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि कल्पना फूलों की तरह खिलते हैं । परंतु वह कुछ समय के पश्चात मुरझा जाते हैं। यह हमेशा के खिले  हुए रहती है । संसार को महकाती रहती है।

अर्थात दिशा प्रदान करती है। उसकी इस महक को समाज की विचारधारा को एक नई मोड देने वाली शक्ति को फूल नहीं समझ सकती। फुल सौंदर्य का प्रतीक है। सौंदर्य की सीमा होती है।

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परंतु कल्याण की कोई सीमा नहीं होती है। कविता  एक खेल है । जिस प्रकार बालक अलग-अलग खेलो  के माध्यम से अपना मनोरंजन करता है । ठीक वैसे ही कविता {कविता के बहाने(kavita ke bahane)}बालकों के भोले-भाले खेलों की तरह होती है । 



इस मै {कविता के बहाने(kavita ke bahane)}कुंवर नारायण जी हमे लोक कल्याण की बात एक बालक की रूप मै हमे बताते हैं।


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"Baat shidhi thi par"

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