class 12 |baat shidhi thi per| kuwar narayan| आरोह काव्य खंड-2|Hindi core
लेखक- कुंवर नारायण।(kuvar Narayan)
कविता -कविता के बहाने(kavita ke bahane)
लेखक का परिचय-{ Introduction-कविता के बहाने(kavita ke bahane)}
जन्म -19 सितंबर ,सन 1927(उत्तर प्रदेश)
प्रमुख पुरस्कार- साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुमार आसन पुरस्कार,व्यास सम्मान आदि ।
प्रसंग- "बात सीधी थी पर " कहानी हमारी पाठ्य पुस्तक "आरोह भाग-2" से लिया गया है। इसके रचयिता "श्री कुंवर नारायण " है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने साहित्यकारों पर व्यंग करते हुए पंडित्वा प्रदर्शन के लिए साहित्य को इतना कठिन बना देते हैं। उनकी सामान्य व्यक्ति से वह कटता जाता है। कवि ने इस पर अपनी बात रखी है ।
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व्याख्या -"बात सीधी थी पर" कविता मै कवि कहते है,कि आजकल के साहित्यकार सहज बात को इतनी कठिन रूप से बताते हैं ,कि वह अपना मूल अर्थ ही खो देते हैं। इस कविता से "कुंवर नारायण " कहते हैं कि एक बार में एक बात कहना चाहता था ।
परंतु भाषा के फेर में वह कठिन हो गया। उसका सही अर्थ प्राप्त करने के प्रयास में वह बात और भी मुश्किल हो गई। अंत में वह बात कवि को समझ में नहीं आई ।
प्रसंग- इस पंक्ति में कवि कहते हैं कि वह भाषा के जाल में गिर जाते हैं,और वह तमाशा बन जाते हैं । कभी भाषा को भाव से आजाद करना चाहते हैं ।
व्याख्या- "बात सीधी थी पर" कविता मै कवि कहते है कि वह जितना भी भाषा को सुलझाना चाहता हूं । वह उतना ही उलझता जाते हैं। वह भाषा से अर्थ स्वतंत्र करना चाहते हैं। कवि को लगता है कि पेंच के लिए निश्चित कांचे में यदि पेज सही ढंग से प्रवेश ना करें, तो उसमें उसे जबरदस्ती नहीं डालना चाहिए।
परंतु फिर भी वह प्रयास कर रहा है। उसकी इस घटनाक्रम को दर्शक देख रहे हैं ,और उसे इस प्रकार तन्यता से जुड़ा हुआ देखकर समझते हैं, कि कोई जानकार व्यक्ति है। दर्शक बिना सच्चाई जाने बस बाहर से देख कर ही उसकी तारीफ कर रहे हैं,और अंत में कवि ज्यादा जबरदस्ती के कारण उसकी चूड़ियां ही खत्म कर देता है।
प्रसंग - बात सीधी थी पर कविता के माध्यम से कवि कहते हैं,कि जब भाषा भाव पर हावी हो जाती है। तो किस प्रकार अपना महत्व को बैठती है।
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व्याख्या -"बात सीधी थी पर" कविता मै कवि कहते है कि जब भाषा से सही अर्थ ना निकला तो उसने उसे कील की भांति उसी स्थान पर थोड़े से ठोक दिया । यहां पर हथोड़ा बल का प्रभाव है। भाषा की चूड़ियां पेंच की चूड़ी की तरह समाप्त हो चुकी थी।
इसलिए कसाव व बल को खो चुकी थी ,तथा कवि ने जब भाषा के अर्थ को खोज लिया तो उसने अपना वास्तविक अर्थ खो बैठा। कवि द्वारा निकाला गया अर्थ कवि के सामने एक बच्चे की भाती उससे खेलता है और कहता है कि यदि भाषा का प्रयोग शहजादा से किया जाए तो अर्थ भी सहज ही प्राप्त किया जा सकता है।
निष्कर्ष-"बात सीधी थी पर" कविता मै कवि कहते है कि साहित्यिक में आए बदलाव से एक बात का अर्थ निकालना बहुत कठिन हो गया है। उसका सही अर्थ निकालने के प्रयास मै वे उलझ जाते है! जिसका विवारण कविता में किया गया हैं।
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