Class 12 bhakti shufi | भक्ति सूफी परंपराओं महत्वपूर्ण सवाल-जवाब!- 2022

 भक्ति सूफी परंपराओं महत्वपूर्ण सवाल-जवाब! 

1.सूफी और भक्ति समुदायों के विचारों में क्या समानताएं थी ? संक्षेप में वर्णन कीजिए ।

भक्ति सूफी परंपराओं महत्वपूर्ण सवाल-जवाब!
सूफी और भक्ति संप्रदायों के विचारों में समानताएं -
सुफी और भक्ति संप्रदाय दोनों धार्मिक और शुद्धता पर बल देते थे । दोनों संप्रदायों ने धार्मिक आडंबर और रूढ़ियों अंधविश्वासों की निंदा की है। दोनों आदर्श पवित्र और नैतिक जीवन बिताने पर बल देते हैं । जाती पाती का खंडन करके मनुष्य की समानता पर बल देते हैं।मूर्ति पूजा का विरोध दोनों ही संप्रदाय करते हैं। दोनों ही संप्रदाय यह मानते हैं कि ईश्वर एक है और उसे सच्चे प्रेम एवं भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है। गुरुओं की आवश्यकता पर दोनों ही संप्रदाय बल देते हैं ।

सूफी संतों के शिष्यों में हिंदू-मुसलमान दोनों शामिल थे। उनके सरल उद्देश्यों और इस वर्ष की एकता भाईचारा और समानता के विचारों ने हिंदू संतो को भी प्रभावित किया। उन्होंने सूफी आंदोलन की तरह भक्ति आंदोलन का प्रचार प्रसार किया ।आरंभ में हिंदू मुस्लिम दोनों एक दूसरे को शत्रु समझते थे। मुसलमानों ने हिंदुओं पर बड़े अत्याचार के लेकिन साथ साथ रहने से धीरे-धीरे विरोध कम होता गया। सूफी वा हिंदू संतो ने इनमें एकता एवं समानता तथा सहयोग की भावना का निर्माण करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।

2.शरिया क्या है ?

भक्ति सूफी परंपराओं महत्वपूर्ण सवाल-जवाब!
शरिया मुसलमान समुदाय को निर्देशित करने वाला कानून है । यह कुरान शरीफ और हदीस पर आधारित है। हदीस का अर्थ है -पैगंबर साहब से जुड़ी परंपराएं जिनके अंतर्गत उनके स्मृत शब्द और क्रियाकलाप भी आते हैं।

3.सूफी मत के विकास पर एक टिप्पणी लिखिए ।

भक्ति सूफी परंपराओं महत्वपूर्ण सवाल-जवाब!
सूफी मत का विकास इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में धार्मिक और राजनीतिक संस्था के रूप में खिलाफत की बढ़ती विषयशक्ति के विरुद्ध कुछ आध्यात्मिक लोगों का रहस्यवाद और वैराग्य की ओर झुकाव बड़ा । इन्हें सूफी कहा जाने लगा। इन लोगों ने रूढ़िवादी  परिभाषाओं तथा धर्मचारों द्वारा की गई कुरान और सुनना पैगंबर के व्यवहार की बौद्धिक व्याख्या की। आलोचना की इसके विपरीत उन्होंने मुक्ति के प्राप्ति के लिए इंसान-ए-कामिल बताते हुए उनका अनुसरण करने की सीख दी। सूफियों ने कुरान की व्याख्या कर अपने निजी अनुभवों के आधार पर की।

4.चिश्ती उपासना पर एक लेख लिखिए

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चिश्ती उपासना- चिश्ती उपासना मुख्य रूप से जियारत और कव्वाली द्वारा होती थी। सूफी संतों की दरगाह पर की गई जियारत सारे इस्लामी संसार में प्रचलित है । इस अवसर पर संत के अध्यात्मिक आशीर्वाद यानी बरकत की कामना की जाती है । पिछले 100 सालों से अलग-अलग संप्रदाय वर्गों और समुदाय के लोग पांच महान चिश्ती संतों की दरगाह पर अपनी आस्था प्रकट करते रहे हैं । इनमें सबसे अधिक पूजनीय दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन की है, जिन्हें "गरीब नवाज "का जाता है। ख्वाजा मोइनुद्दीन की दरगाह का सबसे पहला किताबी जिक्र चौदहवीं शताब्दी का किया है। यह दरगाह शेख की सदा चरिता और धर्म निष्ठा तथा उनके आध्यात्मिक वारिसों की महानता और राजसी मेहमानों द्वारा किए गए प्रश्नय के कारण लोकप्रिय थी। मोहम्मद बिन तुगलक पहला सुल्तान था जो इस दरगाह पर आया था । किंतु शेख की मजार पर सबसे पहली इमारत मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने 15वी शताब्दी के उत्तरार्ध में बनवाई । यह दरगाह दिल्ली और गुजरात को जोड़ने वाले व्यापारिक मार्ग पर थी तथा अनेक यात्री यहां आते थे।

5.भक्ति आंदोलन की विशेषताओं को लिखिए।

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भक्ति आंदोलन के विशेषताएं- भक्ति की धारणा का अर्थ ईश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा है। भक्ति भक्तों की आराधना का उद्देश भक्ति के लिए ईश्वर की कृपा प्राप्त करना है। भक्ति पंत ने उपासना की विधियों के रूप में कर्मकांड तथा यज्ञ का परित्याग किया तथा ईश्वर की अनुभूति के सरल मार्ग के रूप में हृदय और मन की पवित्रता के स्थान पर मानववाद तथा निष्ठा पर बल दिया। भक्ति आंदोलन मुख्यता एकेश्वरवाद और भक्तगण एक ही ईश्वर की उपासना करते थे। उत्तर और दक्षिण भारत के भक्ति संत ज्ञान को भक्ति का एक तत्व मानते थे। भक्ति आंदोलन में गुरु से वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने पर अत्यधिक जोड़ दिया। भक्ति आंदोलन ने पुरोहित वर्ग के प्रभुत्व तथा कर्मकांडओं की निंदा की । भक्ति स्रोतों के अनुसार भक्ति व्यक्ति निष्ठा और व्यक्तिगत प्रयास से ईश्वर की अनुभूति कर सकता है। अतः भक्ति आंदोलनों में तथा दैनिक कर्मकांड के लिए कोई स्थान नहीं था। भक्ति संतों ने जनसाधारण की सामान्य भाषा में उपदेश दिया और इसलिए आधुनिक भारतीय भाषाओं जैसे- हिंदी ,मराठी ,बंगाली और गुजराती के विकास में अत्यधिक योगदान दिया।

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