जयप्रकाश नारायण का जीवनकाल का परिचय |Jaiprakash narayan summary in Hindi

 जयप्रकाश नारायण का जीवनकाल का परिचय |Jaiprakash narayan summary in Hindi

जयप्रकाश नारायण का जीवनकाल का परिचय |Jaiprakash narayan summary in Hindi
जयप्रकाश नारायण का जीवनी


जयप्रकाश नारायण की जीवनी बताये | Jaiprakash narayan jiwani in hindi


जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर सन् 1902 ईशा को सिताब दियारा ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम हरसू दयाल तथा माता का नाम फुलरानी था। सिताब दियारा ग्राम में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात पटना के कॉलेजिएट स्कूल में अध्यान किया । वहां से सरस्वती भवन छात्रावास में रहते थे ।  बिहार के प्रसिद्ध जन सेवी श्री बृजकिशोर बाबू की सुपुत्री प्रभावती से उनका विवाह हुआ। 1921 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लिया तथा स्कूल छोड़ दिया । उसी समय डॉक्टर राजेंद्र बाबू के नेतृत्व में चल रहे बिहार विद्यापीठ से इंटरमीडिएट की परीक्षा  उत्तीर्ण  की तत्पश्चात पढ़ाई के लिए भी बनारस गए।

जयप्रकाश नारायण अमेरिका कब और क्यों गये?|  Jaiprakash narayan


1922 में वे एक छात्र विधि पर अध्ययन के लिए अमेरिका चले गए वहां । ओहियो विश्वविद्यालय में स्नान तक तथा स्नातकोत्तर( m.a. ) डिग्री प्राप्त की सोशल वेरिएशन पर शोध प्रपत्र लिखा । मां की बीमारी के कारण 1929 में भारत आ गए ।  इस कारण पीएचडी भी पूरा ना कर सके ।  जय प्रकाश जी की अमेरिका प्रवास के कारण समय प्रभावती जी साबरमती आश्रम में रहे । अमेरिका से लौटने पर कुछ समय के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रवक्ता रहे।


नौकरी छोड़कर अंग्रेज के साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय कार्यकर्ता बन गए ।1934 में कांग्रेस की नीतियों से असंतुष्ट नव युवकों ने अखिल भारतीय कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना की । जिसके आचार्य के नरेंद्र देव अध्यक्ष तथा जयप्रकाश नारायण मंत्री बनाए रखें गए ।
इस दल के अन्य प्रमुख नेता थे -
अशोक मेहता, अच्युत पटवर्धन ,राममोहन लोहिया ,एमआर मसानी, एनजी रंगा तथा युसूफ महरौली।


जयप्रकाश नारायण का 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन मे योगदान और जेल मे आवागमन बताये -


1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में  गिरफ्तार हो गए। लेकिन हजारीबाग केंद्रीय जेल से फरार हो गए पुनः गिरफ्तार होने के बाद। 1946 में उन्हें कारागार से मुक्त कर दिया गया। 1947 के पश्चात व राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे तथा 1954 तक समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे। उसके बाद 1957 में वे सर्वोदय आंदोलन से जुड़ गए । भूदान संपत्ति दान जीवन दान के लिए पूर्ण समर्पण से कार्य किया।


1970 में तत्कालीन सरकार की नीतियों का विरोध करना आरंभ किया 1974 में बिहार तथा गुजरात के छात्रों के आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार कर लिया । पटना में एक सभा को संबोधित करते हुए समग्र क्रांति की घोषणा की । 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल लागू किया गया। जिसका जेपी ने घोर विरोध किया। उन्हें जेल में डाल दिया गया । 1977 में जनता पार्टी बनाने के अथक प्रयास किए तथा चुनावों में जनता पार्टी को विजयश्री दिलाई ।  गुर्दे खराब होने के कारण 8 अक्टूबर 1979 में दिवंगत हो गए । जयप्रकाश नारायण ,जेपी तथा लोक नायक नाम से प्रसिद्ध है ।

 

उनकी प्रमुख रचनाएं हैं -

1.from socialism to to Sarvodaya(1959) 2.towards struggle(1946)
3.A picture of Sarvodaya social order 4.Sarvodaya and World peach
5.Swaraj for the people (1961)
6.why socialism (1936 )
7.A plea for the reconstruction of Indian Polity


1959 उनकी रचनाओं का संग्रह A Revolutionary quest 1980 के नाम से प्रकाशित है ।


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जयप्रकाश नारायण का समाजवादी विचारधारा के प्रति झुकाव | Jaiprakash narayan


विचारधारा अमेरिकी प्रवास के समय जेपी समाजवादी विचारधारा से प्रभावित हुए एमएन राय के लेखकों ने उनके विचारों को उद्धृत किया । एक समय ऐसा आया कि उन्हें गांधी के आंदोलन के तरीके अपूर्व ने लगने लगे और समाजवाद द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने का त्वरित मार्ग दिखाई दिया ।  भारत के समाजवादियों के कार्य कलाप तथा सोवियत संघ की कार्यप्रणाली ने जेपी का मुंह बंद कर दिया। और वह समाजवादी विचारधारा सर्वोदय की ओर उन्मुख हो गए ।

 
वे समय-समय पर भारतीय लोकतंत्र की समीक्षा भी करते रहें। इससे असंतुष्ट होकर समग्र क्रांति का सूत्रपात किया।


जयप्रकाश नारायण के विचारों का अध्यक्ष अध्ययन निम्नलिखित शिक्षकों में किया जा सकता है-
1.समाजवादी विचार ,
2.सर्वोदय विचार ,
3.लोकतंत्र संबंधी विचार ,
4.समग्र क्रांति ,


1.जयप्रकाश नारायण का समाजवादी विचार | Jaiprakash narayan  ka samajwadi vichar


जयप्रकाश नारायण भारत की समस्याओं का समाधान समाजवादी मानता थे। समाजवादी का अर्थ उनके लिए स्वतंत्रता , समानता तथा बंधुत्व की स्थापना था । अपनी पुस्तक "सोशलिज्म टू सर्वोदय" में लिखा है। क्रांति का मार्क्सवादी दर्शन गांधीजी के सविनय अवज्ञा और असहयोग पद्धति की अपेक्षा अधिक निश्चय तथा शीघ्र गामी मालूम हुआ । उसी समय मार्क्सवाद ने समता और बंधुत्व की एक और ज्योति मेरे लिए जगह दी। केवल स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी।


इसका अर्थ होना चाहिए सब की जो निम्नतम स्तर पर है। उनकी भी स्वतंत्रता हो। इस स्वतंत्रता में  शोषण से भुखमरी और दरिद्रता से मुक्ति भी सम्मिलित होनी चाहिए । जेपी ने समाजवाद लाने के हिंसक तरीके को भी अधिक महत्व प्रदान नहीं किया क्योंकि हिंसा के सहारे अल्प मत वाले लोग बहुमत का जबरन समर्थन प्राप्त कर लेते हैं। इस समर्थन में स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व का आभाव रहता है ।


साधन तथा साध्य में एक गहरा संबंध है। भारत में समाजवाद लाने के लिए भारतीय संस्कृति में मूल्य एवं नैतिकता को महत्व प्रदान करना पड़ेगा।


भारत में समाजवादी समाज की स्थापना के लिए जेपी (Jaiprakash narayan ) द्वारा दिये गये सुझाव-

भारत में समाजवादी समाज की स्थापना के लिए जेपी द्वारा कुछ सुझाव दिए गए हैं-
1.भूमि कर कम करना
2.उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना ।
3.गांवों को विकास की एक प्राथमिकी का इकाई मानना,
4.सहकारी एवं सामूहिक खेती का प्रावधान
5.आर्थिक एवं राजनीतिक विकेंद्रीकरण करना
6.आर्थिक समस्या का प्राथमिकता के आधार पर समाधान करना
7.संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों की रक्षा करना


जयप्रकाश नारायण के अनुसार समाजवाद एक जीवन पद्धति थी । जिसके मूल्यों को संस्थागत रूप से ग्रहण नहीं किया जा सकता । उन्हें व्यक्तिगत रूप से आत्मसात करना होगा । उन्होंने अनुभव किया कि किसी जिस समाजवाद को साधारण हम समझते हैं कि वह समाजवाद मानव जाति को स्वतंत्रता समानता शांति तथा बंधुत्व के उस लक्ष्य तक कभी नहीं ले जा सकता । उन्होंने कहा की  समाजवाद किसी भी प्रतिस्पर्धी समाजिक तत्व ज्ञान की अपेक्षा मानव जाति को उन लक्ष्यों के निकट ले जाने का आश्वासन देता है ।


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2.सर्वोदय विचार | जयप्रकाश नारायण का सर्वोदय विचार | Jaiprakash narayan


सर्वोदय विचार महात्मा गांधी ने प्रतिपादित किया तथा विनोबा भावे ने इसे आंदोलन में परिणित कर दिया। सर्वोदय का अर्थ है "सर्व-उदय"। भूदान, संपत्ति दान ,ग्रामदान आदि कार्यक्रम इस आंदोलन के अंग थे ।


 जयप्रकाश नारायण अपने राज्य दर्शन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सर्वोदय की ओर उन्मुख हुए सक्रिय राजनीति छोड़कर व भूदान ,संपत्ति दान, जीवन दान ,आंदोलनों को चलाने लगे । इन कार्यक्रमों में साधन तथा साध्य का अंतर नहीं हैं। हिंसा और दमन का प्रयोग नहीं था । 


 यह सामाजिक क्रांति का तथा बंधुत्व समानता स्वतंत्रता प्रदान करने की सर्वश्रेष्ठ पद्धति थी। वह किसानों से कहते भूमिवान अपनी भूमि का 20 वां भाग भूमिहीनों में बांटे , वरना  सत्य ग्रह का सहारा लेना पड़ेगा ।


वे नक्सलवादियों की के जोर जबरदस्ती वाले आंदोलन के विरुद्ध थे । उन्होंने भूदान के विषय में कहा भूदान यज्ञ में जितने जितना भूमिपतियों में आती है । उससे कहीं अधिकार जागरण भूमिहीनों में हो रहा है । यह पूंजीवाद के अंत का रास्ता है।


जेपी कैसे समाज की स्थापना करना चाहते थे जो सहकारिता आत्मानुशासन और उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण हो सभी वर्गों के स्त्री-पुरुष का समानता के आधार पर व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से उत्तरदायित्व अनुभव करें । उनका ग्राम स्वराज के और विशेष झुकाव था ।


3.जयप्रकाश नारायण के आधुनिक लोकतंत्र संबंधी विचार | Jaiprakash narayan


जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र विरोधी नहीं थे । लेकिन लोकतंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के आलोचक थे । वह लोकतंत्र की सफलता के लिए यह मानते थे कि लोगों को परस्पर इतना समीप लाए कि वह विभिन्नता होते हुए भी स्वशाषित विवेकपूर्ण एवं नियंत्रण में संबंध रखते हुए साथ साथ रह सके। उनके अनुसार लोकतंत्र के लिए संविधान में शासन प्रणाली और दलों और चुनाव इन सभी बातों का महत्व है। 


पर जब तक जनता में समुचित नैतिक एवं आध्यात्मिक गुणों का विकास नहीं हो जाता । तब तक संविधान तथा राजनीतिक प्रणालियां लोकतंत्र को सफल नहीं बना सकती।


लोकतंत्र के उद्देश्य पूर्ति के लिए निम्नलिखित गुणों का विकास करना आवश्यक है-

1.सत्य प्रियता
2.उत्तरदायित्व की भावना
3.कर्तव्य परायणता
4.हिंसा से घृणा व अहिंसा से प्रेम
5.स्वतंत्रता के प्रति पूरा प्रेम और लग्न तथा दमन का प्रतिरोध करने का साहस
6.सहयोग और शाह अस्तित्व की भावना
7.विचारों को सुनने समझने और सहन करने की क्षमता
8.मानव भ्रातृत्व और समानता की भावना में पूर्ण विश्वास
9.सीधा व सरल जीवन यापन करने में श्रद्धा


जयप्रकाश जी के अनुसार इन गुणों का विकास राज्य नहीं कर सकता । अपितु या स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा प्रशिक्षण एवं व्यवहार से विकसित करने होंगे। लोकतंत्र की सफलता के सर्वजनिक हित को सर्वोपरि समझते हुए व्यक्तिगत हितों का त्याग करना पड़ेगा । सत्ता का विकेंद्रीकरण करके ग्राम स्वराज की स्थापना करनी होगी।


 जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र को नष्ट करने में राजनीतिक दलों को सर्वाधिक दोषी मानते हैं। चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल अत्यधिक पैसा खर्च करते हैं। लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सभी प्रकार के तरीके अपनाते हैं । वैमनस्य फैलाते हैं तथा सत्ता में बने रहने के लिए हिंसक तरीके तक प्रयोग करते राजनीतिक दलों की इस प्रकार की भूमिका के कारण लोकतंत्र  दल तंत्र मैं परिवर्तित हो जाता है अर्थात लोकतंत्र जनता का नैतिक लोकतंत्र नरक राजनीतिक दलों का भ्रष्ट लोकतंत्र बन जाता है ।


 अतः जयप्रकाश नारायण के अनुसार लोकतंत्र में राजनीतिक दल नहीं होनी चाहिए ।


4.समग्र क्रांति | जयप्रकाश नारायण समग्र क्रांति का विचार | Total revolution by Jaiprakash narayan


जीवन के लंबे समय में लोकतंत्र की कमियों की आलोचना करते करते थक गए। सरकार की नीतियों में  कोई विशेष परिवर्तन भी नहीं आया। अपितु भ्रष्टाचार, बेरोजगारी सामाजिक वैमनस्यता, गरीबी तथा केंद्रीकरण की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ती चली गई । जयप्रकाश जी ने जीवन के अंतिम दशक में अनुभव किया कि भारत की समस्या अब विकराल रूप धारण कर चुकी है। जिसका समाधान  पृथक सुधारों से संभव नहीं है । पटना में 5 जून 1974 को एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने या विचार रखें तथा समग्र क्रांति(Total revolution) का उद्घोष किया।


इस समय क्रांति में निम्नलिखित साथ क्रांतियां सम्मिलित थी-

1.सामाजिक क्रांति - समाज में समानता एवं बंधुत्व की स्थापना करना ।

2.आर्थिक क्रांति -आर्थिक विकेंद्रीकरण करना तथा ग्राम को विकास की इकाई बनाकर आर्थिक क्षमता लाने का प्रयास करना चाहिए ।

3.राजनीतिक क्रांति - राजनीतिक भ्रष्टाचार को समाप्त करना तथा राजनीतिक विकेंद्रीकरण करना एवं जनता को अधिक अधिकार सौंप कर सहभागी बनाना।

4.सांस्कृतिक क्रांति -भारतीय संस्कृति की रक्षा करना तथा सांस्कृतिक मूल्यों का लोगों में फिर से विकास करना।

5.शैक्षणिक क्रांति - शिक्षा को रोजगार उन्मुख बनाना तथा शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन करना।

6.आध्यात्मिक क्रांति - नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करना तथा भौतिकवाद से अध्यात्म की ओर ले जाना।

7.वैचारिक क्रांति - मनुष्यो उनके विचारों में  जागृति उत्पन्न करना ।


जयप्रकाश नारायण समग्र क्रांति का विचार का निष्कर्ष -
इस क्रांति को सफल बनाने के लिए छात्रों को उत्तरदायित्व सौंपा गया तथा 1 वर्ष के लिए पढ़ाई बंद करने को कहा गया। यह आंदोलन बड़े जोश के साथ उत्तर भारत में आरंभ हुआ। लेकिन कुछ कारण कार्यक्रम की खामियों तथा भारत के दमन पूर्ण रवैया तथा जयप्रकाश जी के खराब स्वास्थ्य  के कारण सफल नहीं हो पाया। जयप्रकाश जी की मृत्यु के पश्चात या क्रांति भी सदैव के लिए शांत हो गई ।


सारांश | जयप्रकाश नारायण का सारांश इन हिंदी | Jaiprakash narayan saransh in hindi


जयप्रकाश नारायण का सारांश इन हिंदी - जयप्रकाश नारायण (जेपी) का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को छोटानागपुर के सीताबदियारा गाँव में हुआ था।  उनका असली नाम नारायण श्रीवास्तव था।  वह एक स्कूल मास्टर, दिनकर श्रीवास्तव के पुत्र थे, और आठ बच्चों में से सातवें थे।  जब नारायण दो साल के थे तब परिवार कानपुर चला गया और वे एक राजनीतिक परिवार में पले-बढ़े।


जयप्रकाश नारायण एक भारतीय राजनीतिज्ञ और लेखक थे।  उन्होंने 18.11.1950 से 18.11.1962 तक भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। जब कार्यालय काफी हद तक औपचारिक था।  उन्हें 1948 में भारत के पहले प्रधान मंत्री होने के लिए भी याद किया जाता है। जब देश को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिली थी।  वे संस्कृत, मराठी और हिंदी के विद्वान थे।


Jaiprakash narayan saransh in hindi

उनकी रचनाओं में प्रार्थना संग्रह (मराठी और अंग्रेजी में), ''महापाठक'' (मराठी में) और ''चयनित कृतियां'' शामिल हैं।  उनके लेखन को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि वे राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता पर उनके विचारों को दर्शाते हैं।  उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी।  वह स्वतंत्र भारत में भारत के राष्ट्रपति के रूप में सेवा करने वाले पहले व्यक्ति थे, लोकसभा के लिए चुने जाने वाले पहले और भारत के राष्ट्रपति का पद संभालने वाले पहले व्यक्ति थे।


नारायण एक प्रमुख कांग्रेस पार्टी के राजनेता थे जो राज्यसभा और भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा के सदस्य थे।  वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेता थे और 1922 में अंग्रेजों द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। उनकी पार्टी 1935 से 1952 तक और फिर 1957 से 1967 तक सत्ता में रही। उन्होंने भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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