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स्वामी विवेकानंद का लेख - swami vivekananda biography in hindi

सुधारक गण असफल हुए हैं इसका क्या कारण है ? यही कि उनमें से केवल कुछ गिने-चुने लोगों ने ही अपने धर्म का भली-भांति अध्ययन और चिंतन किया है ! समस्त धर्म  को समझने के लिए जिस साधना की आवश्यकता होती है । उसमें से कोई भी उस आत्मा में से होकर नहीं गया है। ईश्वर की कृपा से मैं दावे से कहता हूं कि मैंने इस समस्या को हल कर लिया है।
                                            --------स्वामी विवेकानंद


भूमिका |स्वामी विवेकानंद का जीवनी | swami vivekananda biography in hindi


"बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" महापुरुष जन्म लेते हैं। उनका आविभव समाज के हित के लिए होता है। वह समाज की रूढ़ीवादी परंपरा का अनुसरण नहीं करते । अपितु समाज को बदल डालते हैं । वीर , सन्यासी, स्वामी विवेकानंद ऐसे ही एक जन जन में ऐतिहासिक पुरुष थे। जिन्होंने वर्तमान भारत की नींव डाली । 


प्राण हीन अचार के कंकाल मात्र भारतीय समाज में प्राण डाला और भारत की प्राचीन वेदांतिय परंपरा को आधुनिक उपयोगी रूप प्रदान किया । मात्र 39 वर्ष 5 माह की आयु में उन्होंने चीर समाधि प्राप्त की ।  परंतु इस अल्पकाल में ही उन्होंने वर्तमान भारत की एक सिद्ध आधारशिला रखी ।


 स्वामी विवेकानंद ने अपने देहांत के कुछ दिन पूर्व एक महत्वपूर्ण युक्ति कही थी। जिसे उनके गुरु भ्राता स्वामी प्रेमानंद ने सुना था । यदि इस समय कोई दूसरा विवेकानंद होता तो वह समझ सकता कि विवेकानंद ने क्या किया है ?


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जीवन परिचय | swami vivekananda biography in hindi


कोलकाता की सिमुलिया नामक पल्ली में 12 जनवरी सन 1663 को मकर संक्रांति के उषाकाल में प्रख्यात अटॉर्नी श्री विश्वनाथ दत्त के घर में इनका जन्म हुआ था । सन्यास पूर्व उनका नाम था नरेंद्रनाथ दत्त नरेंद्र नाथ वास्तव में ही नरकुल के इंद्र थे। कोलकाता विश्वविद्यालय का यह प्रतिभाशाली स्तंभ  दर्शनशास्त्र विशेष रूप से संदेहवाद से प्रभावित हुआ था। 


1881 के नवंबर महीने से भगवान श्री रामकृष्ण देव के साथ नरेंद्र नाथ का प्रथम परिचय हुआ और 15 अगस्त 1886 को श्री राम कृष्ण के मृत्यु तक उन्होंने उनके चरणों के पास बैठकर शिक्षा प्राप्त की ।  उपदेश ग्रहण की और एक समय आया जब यह महान शिष्य अपने गुरु की महती वाणी का प्रचार करने के उद्देश्य से शिकागो महा धर्मसभा में पहुंचा और यह परिचित हिंदू युवक उस दिन उस महती धर्म सभा के सदस्य  का हृदय सम्राट बन गया । 


अन्य सभी धर्मों के प्रतिनिधियों की तुलना में स्वामी जी के व्याख्यान से सभी श्रोता अधिक आकृष्ट हुए वह उत्सुक हो गए भारतीय दर्शन की इस अमूल्य निधि वेदांत रत्नों को प्राप्त करने के लिए और इस प्रकार रामकृष्ण मठ और मिशन की स्थापना संसार के महत्वपूर्ण देशों में हो गई। 19 वी सदी का पराधीन भारत पाश्चात्य जगत की 19वीं शताब्दी का भारत एक अशिक्षित पिछड़ा हुआ , कुसंस्कार ग्रस्त , हद-गौरव ,दास जाति के देश के रूप में परिचित था ।


धर्म के प्रति स्वामी विवेकानंद का योगदान 

हिंदू धर्म के प्राकृतिक स्वरूप से समाज के लोग अपरिचित थे। भारत में आए हुए इस ईसाई मिशनकार्यों ने धर्म विद्वेष का गरल चारों ओर फैलाने में लगे थे तथा अपना धर्म चारों तरफ थोप रहे थे। स्थिति इतनी दयनीय थी कि एक अंग्रेज महिला मिशनरी ने हिंदू धर्म को नींदा करने के लिए योग्य भाषा ना पाकर अंत में अपने मन की ज्वाला को शांत करने के लिए इन्हीं शब्दों को उचित समझा crystallised Immorality and Hinduism are the same things. इसका अर्थ यह है कि ठोस घनीभूत अनैतिकता और हिंदू धर्म एक ही चीज है


19वीं शताब्दी मैं  प्रचंड मार्तंड जैसे प्रखर प्रतिभाशाली राजा राममोहन राय की विचारधारा ने बंगाल की अभ्यस्त जड़ता और रूढ़िवादी समाज के कुछ संस्कार और नीतियों पर कुठाराघात किया । धर्म में ,समाज में और राष्ट्र में ,जाति के भेदभाव को दूर करने  का प्रयास किए। 


राजा राममोहन राय देवेंद्र नाथ ठाकुर और केशव चंद्र सेन ने ब्रह्मधाम  के 3 महान स्तंभ थे ।  साथ ही समाज सुधार के क्षेत्र में पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर का योगदान भी काफी महत्वपूर्ण था। ईश्वर चंद्र ने बाल विधवाओं के दुख से द्रवित होकर संस्कृत श्लोक को और बांग्ला गान गलियों के मिश्रण से उत्पन्न विराट कोलाहल का दमन कर विधवा विवाह को शास्त्र सम्मत प्रमाणित कर दिया। और उनके अथक प्रयास के फलस्वरूप विधवा विवाह सरकार द्वारा कानूनी तौर पर स्वीकृत हो गया ।



भारत के नवजागरण में स्वामी विवेकानंद का योगदान


भारत के नवयुग की साधना और सिद्धि के भूत स्वरूप थे। भगवान श्री रामकृष्ण और उनके  महान शिष्य स्वामी विवेकानंद। विवेकानंद ने हिंदू धर्म और साधना को व्यक्तिवादी, आत्मक प्रचार ,विमुख, एकांत गिरी ,लोक कल्याण हेतु समाज के विकास के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । 



देश की जनता की दयनीय दशा उसके अज्ञान को संस्कार और हताशा ने स्वामी जी के विशाल हृदय को झकझोर दिया। उन्होंने सोचा कि भारत की जनता को आज दंड कमंडल धारी एकांत निवासी योग्य सन्यासी के व्रत की सीख नहीं देनी है । 


नव भारत की स्थपना मे स्वामी विवेकानंद का योगदान

भारतवासी को उच्च शिक्षित स्वावलंबी, स्वाभिमानी अपने संस्कृत संपत्ति से समृद्ध साली एक महान राष्ट्र बनाना है। जिसका अभाव हमारे दुर्भाग्य के लिए स्वयं उत्तरदाई है। इस दुर्बल असहाय वर्ग पर स्वामी विवेकानंद की करुणा थी ।  मानसिक श्रेष्ठता के अभिमान रूपी रोग को निर्मूल करने के लिए इस जाति भेद तथा पर कुठाराघात करते हुए स्वामी जी ने उद्घोषणा कि। यदि वंश परंपरा से भाव संक्रमण के नियम अनुसार ब्राह्मण विद्या सीखने के अधिक योग्य है । तो ब्राह्मणों की शिक्षा के लिए धन व्यय न  करके अस्पृश्य जाति की शिक्षा के लिए सारा धन लगा दो।


दुर्बल के सहायता पहले रो । इन बेचारे गरीबों को भारत के इन  मनुष्यों को इनका वास्तविक स्वरूप समझाना होगा। जाति वर्ण तथा सभ्यता व दुर्बलता के भेदभाव को छोड़कर सभी स्त्री-पुरुष एवं प्रत्येक बालक बालिका को सुना दो तथा सिखा दो कि सबल निर्बल कुछ नहीं ।



 सभी के हृदय में अनंत आत्मा विद्यमान है । अतः सभी व्यक्ति महान बन सकते हैं। स्वामी विवेकानंद के साथ अन्य सुधारकों की पद्धतियों में क्या अंतर रहा ? कि स्वामी जी के संस्कार साधन या जीर्णोद्धार में नहीं अपितु स्वाभाविक विकास में था ।


वेदांत के आदर्श स्वामी जी | swami vivekananda biography in hindi

वेदांत का आदर्श स्वामी जी के द्वारा भारतीय जनजीवन का जो पुनर्गठन हुआ उसका आदर्श वेदांतिय है । उन्होंने वेदांत के महान तत्वों को केवल एकांत में चर्चा का विषय नहीं बनाए रखा ।  वह अरण्य और गुफा  विषय ना होकर हमारी कर्मभूमिओ मैं अवतरित हो गए । सदियों से दासता की श्रृंखला से पीड़ित इस आत्मा विस्मित जाति को उन्होंने झकझोर कर जगाया ।  


उनकी प्राण प्रगति संचारिणी वाणी को नव्य भारत ने नए सिरे से आत्मसात किया। विवेकानंद की प्रेरणा से जागृत भारत वासियों को भविष्य में चलकर लोकमान्य तिलक वा महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन का अमृत में संदेश मिला। भारत में मानव जाति की उन्नति के लिए आज जो अथक श्रम हो रहा है ।

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स्वतंत्र भारत के पांच प्रधानमंत्रियों ने गुटनिरपेक्षता, अहिंसा ,नाभिकीय शस्त्र पर अंकुश और रंगभेद की नीति के विरोध में विश्व मंच पर जो कहा है ।  वह काफी सराहनीय है उन्होंने कहा था कि अब समय आ रहा है। जब भारत सब का नेतृत्व करेगा । स्वामी जी का प्रत्येक भाषण नवभारत का विकास मंत्र था। विवेकानंद ने ही हमारे अंदर स्वदेश प्रेम का बीज अंकुरित किया ।



 उन्होंने एकांत में बैठकर श्रवण मनन और निधि ध्यान का आदेश ना देकर कहा कि किसी अदृश्य देवता की खोज में ना भटक कर अपने सामने उपस्थित विराट देश मातृका का वंदे मातरम की ध्वनि से आह्वान करना चाहिए ।


रामकृष्ण मिशन की स्थापना

स्वामी विवेकानंद ने सन 1899 में कोलकाता के पास बेलूर नामक गंगा तटवर्ती ग्राम में रामकृष्ण मिशन का मुख्य केंद्र स्थापित किया उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा पाकर देश-विदेश के अनेक भक्तों ने आकर उनका शिक्षा ग्रहण किया । उन दोनों द्वारा प्रबंध धनराशि से एक ट्रस्ट की स्थापना हुई और धीरे-धीरे भारत के सभी प्रमुख नगरों में रामकृष्ण मिशन के केंद्र स्थापित हो गए । भारत के प्राचीन पंथी कट्टरवादी वेदांत के पंडितों ने विवेकानंद की कर्म मुखी साधना की समालोचना की उनके अनुसार यदि हम वेदांत का सार इस श्लोक को मानले -

ब्रह्म सत्यम  जग निमित्य जीव ब्रह्मव नापर


तो संसार को माया मानकर हमें निष्क्रिय हो जाना चाहिए और कर्म सन्यास का मार्ग अपनाना चाहिए। ना कि कर्मयोग काम विवेकानंद के समालोचक एक अध्यापक ने उनके साथ कहा था , कि दान और सेवा व्रत भी माइक माया से उत्पन्न है और हमारा प्रयास होना चाहिए । मायातित स्थिति की उपलब्धि करना इसका अर्थ यह है कि मोक्ष ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए । 


इस प्रश्न के उत्तर में स्वामी विवेकानंद ने व्यंग्यात्मक शब्दों में कहा था कि ऐसी स्थिति में तो मोक्ष ही माया है । मोक्ष का प्रयास ही क्यों करें ? वेदांत कहता है कि आत्मा नित्य मुक्त है। तब मुक्ति किसकी होगी ?


विवेकानंद द्वारा लिखी गई नव्य वेदांत

स्वामी जी को पलायनवादी मार्ग कभी भी उचित नहीं लगा था। उन्होंने अपना समग्र जीवन शिव ज्ञान में जीव की सेवा ने समर्पित किया था । उनकी अविश्वसनीय युक्ति यह थी कि एक व्यक्ति की मुक्ति के लिए यदि हमें कोटि जन्म ,कुत्ते का शरीर भी धारण करना पड़े तो मैं प्रस्तुत हूं यह पूर्व उदारता उनके गुरु युगवतार परमहंस श्री राम कृष्ण के अमूल्य उपदेश का ही फल थी। 


श्री राम कृष्ण की जीवित दशा में कभी उन्होंने अपने प्रिय शिष्य को यह कहते हुए सुन लिया था कि वह दिन रात निर्विकल्प (बिना विवाद का) समाधि के परमानंद में लीन रहना चाहते थे । यह सुनकर व परम त्यागी साधक बहुत खिन हुए और अपने प्रिय शिष्य के पास बुला कर कहा था कि  नरेंद्र तू इतना स्वार्थी है । मैंने तो सोचा था कि तेरा जीवन एक विशाल वट वृक्ष सा होगा । 


जिसकी अगणित शाखा प्रशाखा और पत्रों की छाया में असंख्य आदत पीड़ित जीव आश्रय लाभ करेंगे । तू उनको आत्मिक शांति देगा विवेकानंद ने गुरु के इस तिरस्कार पूर्ण उपदेश को आजीवन स्मरण रखा और मुक्ति का प्रयास त्याग कर । लोगों की सेवा में अपने को प्रस्तुत किया।



यह कहा था कि अद्वैत वेदांत ब्रह्म को एक मात्र सत्य घोषित करके मानव मूल्यों का अवमूल्यन किया है । विवेकानंद ने वेदांत की इस व्याख्या का अनुमोदन नहीं किया । उन्होंने कहा कि वेदांत हमारे आत्म बल को जागृत करता है । बल हीन के द्वारा आत्मा की प्राप्ति संभव नहीं है । स्वामी विवेकानंद की शिक्षा मानव केंद्रित कर्म योग है । 


वास्तव में उन्होंने भगवत गीता के निष्काम कर्म के आदर्श का ही हमारे जीवन में अनुसरण करने का उपदेश दिया है। हिंदू धर्म स्वभाव से ही प्रचार विमुख था । स्वामी जी हिंदू धर्म के सर्वप्रथम प्रचार शीला प्रतिनिधि बने स्वामी जी ने वेदांत का प्रचार विश्व कल्याण के लिए किया था । 


उन्होंने समाज के अखंड रूप को लिया था। अंश को नहीं वरन समग्र को लेकर ही विचार करते थे। जिसमें हिंदू विश्वविद्यालय राष्ट्रीय शिक्षा परिषद आदि की कल्पना भी कोई नहीं कर पाया था। उस समय स्वामी जी ने दार्शनिक की भविष्य दृष्टि से प्रेरित होकर एक ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था स्थापित करने की अभिलाषा व्यक्ति की जिस पर विदेशी शासन तंत्र का हस्तक्षेप ना हो।


रामकृष्ण मिशन द्वारा चलित शिक्षा संस्थाएं | स्वामी विवेकानंद का जीवन

आज देश के सभी महत्वपूर्ण नगरों में रामकृष्ण मिशन द्वारा चलित शिक्षा संस्थाएं हैं । पुस्तकालय भी हैं उनकी शिक्षा भारतीय आदर्शों और मर्यादाओं के अनुकूल हैं । विवेकानंद का जीवन तथा आदर्श  स्वदेशी आंदोलन का प्रेरणा स्रोत बना स्वामी विवेकानंद 4 जुलाई 1960 को चीर समाधि(मृत्यु को प्राप्त) मग्न हो गए । 


उनके जीवन और वाणी का अमित प्रभाव 

भारत के युवा वर्ग पर पड़ा 1905 में लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को विभक्त कर दिया ।  यह आघात बंगवासी सहन ना कर सके । हिंदू और मुसलमानों ने एक दूसरे को राखी बांधी सारे बंगाल में उस दिन किसी भी परिवार में भोजन नहीं बनाया गया। देश में एक युगांतकारी अकल्पनीय परिवर्तन आया।


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ब्रिटिश अत्याचार के विरुद्ध बंगाल के नवयुवक एकजुट हो गए। वे  गजर कर उठे बंग माता का अंग विच्छेद हमें सहन नहीं होगा और इस महत्वपूर्ण एकता ने ब्रिटिश शासन को भयभीत कर दिया। बंगाल का विभाजन आगे चलकर रद्द करना पड़ा। विवेकानंद के सर्व कनिष्ठ भ्राता श्री भूपेंद्र नाथ दत्त क्रांतिकारियों की अग्रिम पंक्ति में शामिल होते हैं । उनके अतिरिक्त अरविंद घोष ,वरिंद्र कुमार घोष, कन्हाई लाल, उपेंद्रनाथ इत्यादि । अनुशीलन समिति शिक्षक के सक्रिय सदस्य बने ।


वर्तमान भारत और स्वामी विवेकानंद | swami vivekananda biography in hindi

19वीं सदी के भारतवासी एक परतंत्र, दरिद्र ,हृदयसर्वस्व के रूप में प्रसिद्ध हुए थे । हिंदू धर्म ने एक विकृत रूप ले लिया था और उसका परिमार्जन आवश्यक था । इसके लिए आवश्यक थी हिंदू धर्म के प्रकृति स्वरूप  को पहचानना। स्वामी जी को अपने देश की संस्कृति पर गर्व था। उन्होंने विदेश जाकर घोषित किया था । 


स्वामी जी का मुख्य उद्देश्य अपने गुरुदेव समन्वय आचार्य परमहंस श्री रामकृष्ण के समन्वय का संदेश घोषित करना। उन्होंने इस आदर्श के संबंध में कहा था प्रत्येक जाति या प्रत्येक धर्म दूसरी जाति और दूसरे धर्मों के साथ आपस में भावों का आदान प्रदान करेगा । परंतु प्रत्येक अपने अपने स्वतंत्रता की रक्षा करेगा और अपनी-अपनी अंतर्निहित शक्ति के अनुसार उन्नति की ओर अग्रसर होगा।


स्वामी विवेकानंद वर्तमान भारत के अग्रदूत थे। उन्होंने त्याग और वैराग्य से पहले साधारण व्यक्ति के लिए कर्म पर बल देना आवश्यक समझा अपनी प्रसिद्ध पुस्तक वर्तमान भारत में स्वामी जी कहते हैं कि भारतवासी को पर अनुवाद पर अनुकरण घृणित दास सुलभ मानसिकता को त्यागना है।

स्वामी विवेकानंद का सारांश इन हिंदी | swami vivekananda biography in hindi

स्वामी विवेकानंद का सारांश इन हिंदी | swami Vivekananda sharansh in hindi  - स्वामी विवेकानंद ने भारत की सुप्त आध्यात्मिक महिमा का विदेशों में प्रचार करके सबसे पहले पराधीन भारत की हरित गरिमा को पश्चिमी देशों के सामने उन्नत किया । स्वामी जी ने जब विश्व विजय के पश्चात भारत प्रत्यावर्तन किया । तो समस्त देश की शिरा में एक नई प्राण शक्ति का संचार हुआ । भारतवासी इस तत्व की उपाधि पाए कि हमारा धर्म हमारी संस्कृति को विश्व में सिर्फ स्थान प्राप्त हुए हैं हमारे देश के नवयुवक जो धर्म परिवर्तन करके इसाई बन रहे थे उनको अपनी भारतीय महसूस हुई ।


भारत के युवा वर्ग 

भारत की आजादी के लिए भारत के युवा वर्ग ने देश प्रेम से उद्द्बुद्ध होकर भारत माता की बलिवेदी पर अपने जीवन को समर्पित कर दिया । भारतवासी जो आत्मा विस्मृत हो गए थे । एकाएक जाग उठे और स्वतंत्रता के सपनों को साकार किया स्वामी विवेकानंद यथार्थ में है यह वर्तमान भारत के अग्रदूत थे। 



स्वामी विवेकानंद का सारांश इन हिंदी | swami vivekananda biography in hindi

रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेंट           नवंबर 1881 में विवेकानंद अमेरिका कब                   1983 को शिकागो पिता                                               विश्वनाथ दत्त
विवेकानंद कितने घंटे सोते थे?         1.5 – 2 घंटे ही सोते थे
डेथ                                              मृत्यु दिमाग की नसें फटने   पारिवारिक नाम                               वीरेश्वर
बच्चे                                              छह: संतान
विवेकानंद का मृत्यु                         4 जुलाई 1902
रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु             15 अगस्त 1886
बेलूर मे रामकृष्ण मिशन                1899 मे स्थापित हुआ

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