प्राचीन bharat ka itihas for upsc नोटेस् and short समारीज़

प्राचीन bharat ka itihas for upsc नोटेस् and short समारीज़

  1. prachin bharat ka itihas for upsc प्राचीन भारत का इतिहास

प्रागैतिहासिक काल (prachin bharat ka itihas)

जिस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण नहीं किया उसे प्रागैतिहासिक काल कहते हैं। मानव विकास के उस काल को इतिहास का जाता है। जिसका विवरण लिखित रूप में मिलता है। आज ऐतिहासिक काल उस काल को कहते हैं।

जिस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं । ज्ञानी मानव का प्रवेश इस धरती पर आग से लगभग 30 या 40 हजार वर्ष पूर्व हुआ पूर्व पाषाण युग के मानव की जीविका का मुख्य आधार था ।


bharat ka itihas

शिकार आग का आविष्कार पुरापाषाण काल में एवं पहिए का नवपाषाण काल में हुआ। मनुष्य में स्थाई निवास की प्रगति नवपाषाण काल में हुए ।मनुष्य ने सर्वप्रथम तांबा धातु का प्रयोग किया।


मानव द्वारा बनाया जाने वाला प्रथम औजार था। कुल्हाड़ी कृषि का आविष्कार नवपाषाण काल में हुआ। भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहनजोदड़ो था। हिंदी भाषा में जिसका अर्थ है मृतकों का टीला ।


रेडियो कार्बन जैसी नवीन विश्लेषण के द्वारा सिंधु सभ्यता के सर्वमान्य तिथि 2350 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व मानी गई है। सिंधु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की।

सिंधु सभ्यता की प्रागैतिहासिक अथवा कांस्य युग में रखा जा सकता है । इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ एवं भूमध्यसागरीय थे ।


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सिंधु सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल शुद्ध कांगो डोर बलूचिस्तान पूर्वी पुरस्थल आलमगीरपुर उत्तरीपुरा स्थल मांदा तथा दक्षिणी पुरास्थल दायमाबाद ।

सिंधु सभ्यता नगरी सभ्यता थी। सेंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही बड़े नगर की संज्ञा दी गई है । यह है-  मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, बनावली ,धोलावीरा, राखीगढ़ी एवं कालीबंगा स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हड़प्पा सभ्यता के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए हैं ।

लोथल एवं सूत कांगे डोर  सिंधु सभ्यता का बंदरगाह था। जूते हुए खेत और नकाशी डारेटो के प्रयोग का प्रमाण कालीबंगा से प्राप्त हुआ है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्नागार संभवत सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है।


prachin bharat ka itihas in hindi
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मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है । जिस के मध्य स्थित स्नानकुंड 11.8 मीटर लंबा ,7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.3 मीटर गहरा है ।

अग्निकुंड लोथल एव कालीबंगा से प्राप्त हुआ है । मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सीट पर तीन मुख वाले देवता पशुपतिनाथ की मूर्ति मिली है । उनके चारों और हाथी गैंडा चीता एवं (bharat ka itihas in hindi) ) बेल विराजमान है । मोहनजोदड़ो से नर्तकी की अकाशीय मूर्ति मिली है । हड़प्पा की वीरों पर सबसे अधिक एक श्रेणी पशुका अंकन मिलता है।

मनके बनाने के कारखाने लोथल एवं चन्हूदरो में मिले हैं । सिंधु सभ्यता की लिपि भाव चित्रात्मक है । यह लिपि दाएं से बाएं और लिखी जाती थी । जब अभिलेख एक से अधिक पंक्तियों का होता था । तो पहली पंक्ति दाएं से बाएं और दूसरी बाएं से दाएं और लिखी जाती थी ।


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सिंधु सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई । घरों के दरवाजे और खिड़कियां सड़क की और ना खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलते थे । केवल लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे । सिंधु सभ्यता में मुख्य फसल थी गेहूँ और जो सेंधव वासी मिठास के लिए सहद का प्रयोग करते थे।


रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं । जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है । चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए हैं । तोलने की इकाई संभवत 16 के अनुपात में थी। सिंधु सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहिए एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैंसा गाड़ी का प्रयोग करते थे।


मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा शब्द का अभिप्राय सिंधु सभ्यता से ही है । संभवत हड़प्पा संस्कृति का शासन वर्णिक वर्ग के हाथों में था । सिंधु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा किया करते थे।


वृक्ष पूजा एवं शिव पूजा के प्रचलन के साक्षी सिंधु सभ्यता से मिलते हैं स्वास्तिक चिन्ह संभवत हड़प्पा सभ्यता की देन है इस चीन से सूर्य उपासना का अनुमान लगाया जाता है । सिंधु धारी के नगरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं ।


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सिंधु सभ्यता में मातृ देवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी। पशुओं में कूबड़ वाला बेल इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था ।  मिट्टी की मूर्तियां अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है , कि सेंधव समाज मातृसत्तात्मक था।


सेंधव वासी सूची एवं उन्हीं वस्तुओं का प्रयोग करते थे। मनोरंजन के लिए सेंधवासी मछली पकड़ना शिकार करना पशु पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़ और पासा खेलना आदि  साधनों का प्रयोग करते थे।


सिंधु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे । कालीबंगा एकमात्र हड़प्पा कालीन स्थल था। जिसका निकला शहर भी किले से गिरा हुआ था। पर्दा प्रथा एवं वेश्यावृत्ति सेंधव सभ्यता में प्रचलित थी ।


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शवों को जलाने एवं गढ़ानी यानी दोनों प्रथा प्रचलित थी। हड़प्पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी। लोथल एवं कालीबंगा में युग्म समाधिया मिली है। सिंधु सभ्यता के विनाश का संभवत सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था ।


आग में पक्की हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है


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