Saharsh sweekara hai kavita ki vyakhya |class-12|आरोह भाग- 2

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सहर्ष स्वीकार है -
(गजानन माधव मुक्तिबोध-) 


कविता -सहर्ष स्वीकार है 

लेखक- गजानन माधव मुक्तिबोध 

जन्म - 13 नवंबर ;सन 1917( ग्वालियर) प्रकाशित पुस्तकें-चांद का मुंह टेढ़ा है;भूरी भूरी खाक धूल; वीपात्र सतह से उठता आदमी आदि।

निधन-11 सितंबर सन 1964 नई दिल्ली में 

Saharsh sweekara hai kavita ki vyakhya |class-12|आरोह भाग- 2

प्रसंग- दी गई पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग- 2 की कविता से लिया गया है। जिसका नाम "सहर्ष स्वीकार है "। इसके रचयिता " श्री गजानन माधव मुक्तिबोध" " है। इस पंक्ति में कवि अपने जीवन के सुख-दुख का सहर्ष स्वीकार किया है। उसे वह इस कविता के माध्यम से बताते हैं । 

Saharsh sweekara hai kavita ki vyakhya |class-12|आरोह भाग- 2

व्याख्या- कवि कहते हैं कि मेरे जीवन का हर पल तुम्हें अच्छा लगता है। जिसके कारण में दुख-सुख की परवाह नहीं करता हूं। मुझे अपनी सम्मानित करने वाली दुख- सुख और गरीबी भी से प्यार है ,क्योंकि तुम्हें यह मुझ में अच्छा लगता है।

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मेरे जीवन का उन्मुक्त होना तथा नए विचारों का प्रभावित होना। इस सभी मौलिकता का सारा श्रेय तुम्हें ही जाता है। क्योंकि यह सारे गुण मुझे तुम्हारे ही कारण मिला है । जिससे मैं प्रेरित होता हूं। 

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प्रसंग- " सहर्ष स्वीकार है " कविता के इस पंक्ति में कवि उस ना दिखने वाले सहारे के बारे में बताते हैं ।जो कुछ हद तक कभी भी इस रिश्ते को नहीं समझ पाते हैं । 


व्याख्या- कवि बताते हैं कि मैं उस अनजान रिश्ते को अभी तक समझ नहीं पाया हूं। लेकिन इसके प्रति मेरा स्नेह प्रेम है ।मेरे हृदय में प्रेम के अक्षय स्रोत का रूप ले लिया है। जिस तरह चंद्रमा रात में अपनी मधुर शीतल चांदनी पृथ्वी पर फैलाता है। उसी प्रकार तुम्हारी हंसमुख चेहरा मुझे प्रेम भाव से युक्त करता है। 

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प्रसंग- "सहर्ष स्वीकार है" की इस पंक्ति में कवि ने उस अदृश्य सहारे से वियोग की कामना वक्त है। उसे अनुसार प्रिय को भुला पाना भी प्रकृति का एक अंग है । 


व्याख्या- इस्ट के प्रति स्पृति और विस्पृति में नदी का भाव होना स्वाभाविक ही है। इसलिए मैं अपने इष्ट को भुला देना चाहता हूं। यही नहीं मैं चाहता हूं, कि जिस तरह दक्षिण ध्रुव पर सदैव अंधकार और अमावस्या की स्थिति बनी रहती है। वैसे ही अंधकार मैं तुम्हारी विस्मृति पर हृदय से महसूस करो ।

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कवि को अपनी इस्ट की स्मृति चंद्रमा की शीतलता की तरह अनुभव होती है। ठीक वैसे ही उसकी स्मृति में घने अंधेरे का आभास चाहते है। जीवन में मोह लगाव की तरह नीससंगता भी जरूरी है। तुम्हारे खो जाने का डर मुझे निरंतर आतंकित ना करें । 


इसलिए मैं तुम्हें स्वेच्छा से भूल जाना चाहता हूं। यह ममतामई वह बात जो मुझे तुमसे मिला है। मेरे हृदय को पीड़ा पहुंचाता है। इसलिए मैं तुम्हें बुला कर उस पीड़ा का अंत करना चाहता हूं । आखिर कभी ना कभी तो मुझे तुम्हें भूलना ही है। 

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प्रसंग- इस पंक्ति में कवि ने प्रिय को दृढ़ता से भूल जाने का वर्णन किया है । सब कुछ याद रखना माना हृदय द्वारा संभव नहीं है । इसलिए कभी भूलने को ही महत्व देता है। 


व्याख्या- कवि अपने इस्ट को संबोधित करते हुए कहता है, कि मैं वास्तव में ही तुम्हें भूलना चाहता हूं । मेरी हृदय इच्छा है कि मैं तुम्हारी याद रूपी पाताल के गुफाओं में खो जाऊं।


भले ही वह दंड पाकर मुझे कष्ट होगा। फिर मैं तुम्हारे याद रूपी बादलों में खो जाना चाहता हूं। लेकिन ये क्या इन विस्मृति के बादलों में भी मुझे तुम्हारा सारा मिल रहा है।


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Hello guy'sआशा करता हूं कि इस ब्लॉग में मौजूद जानकारियां आपको अच्छी लगी होंगी| आपको यह ब्लॉक कैसा लगा ? 

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                                 धन्यवाद! 

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