NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज



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बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर

लेखक- डॉ भीमराव अंबेडकर। 

कहानी-मेरी कल्पना का आदर्श समाज। 

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जन्म- 14 अप्रैल 1891, महू (मध्य प्रदेश) 

प्रमुख रचनाएं -द कॉस्टस इन इंडिया, 

हु आर द शुद्रास, लेबर एंड पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी आदि। 

निधन- दिसंबर सन् 1956 (दिल्ली में)


        मेरी कल्पना का आदर्श समाज

मेरी कल्पना का आदर्श समाज

लेखक के अनुसार आदर्श समाज उसे कहा जाता है । जिसमें स्वतंत्रता ,मित्रता , समानता हो । इसके साथ-साथ एक आदर्श समाज में सभी व्यक्ति के हित सुरक्षित होते हैं। सभी सामाजिक कार्य सभी व्यक्तियों तक पहुंचते हैं ।  जो भी कार्य समाज के लिए हो उससे समाज के लोगों का भला हो । यह सभी चीजें लोकतंत्र का आधार है ।
एक आदर्श समाज में सभी को आने-जाने।,जीवन को जीने, रहने तथा घूमने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। संपत्ति रखने तथा समाज में उसे निवेश करने की स्वतंत्रता भी होनी चाहिए।

मेरी कल्पना का आदर्श समाज

जाति प्रथा शारीरिक सुरक्षा तथा संपत्ति के अधिकार को तो भले ही स्वीकार कर ले । परंतु लोगों के लक्षण एवं प्रभावशाली प्रयोग को स्वीकार नहीं किया जाएगा अर्थात मनुष्य के लक्षण तथा कार्यों से ही समाज बनता और बिगड़ता है। जिसके कारण जाति प्रथा तथा संपत्ति को स्वीकार कर लेंगे परंतु मनुष्य के लक्षण को नहीं। यह सभी मनुष्य के लक्षण समाज को दास्तां की ओर अग्रसर करते हैं।

मेरी कल्पना का आदर्श समाज

(डॉक्टर अंबेडकर के अनुसार दासता शब्द से अभिप्राय मात्र कानूनी पराधीनता से नहीं है , बल्कि उस स्थिति से है , जिसमें कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है । लेखक के अनुसार ऐसी स्थिति कानूनी दासता से भी अधिक कष्टदायक होती है।)

एक आदर्श समाज में समानता होनी चाहिए सभी व्यक्ति को बराबर का अधिकार मिलना चाहिए।

लेखक बताते हैं, कि एक विशेष व्यक्ति के दृष्टि के आधार पर कहे शब्द समाज के जाति प्रथा तथा उसके राय सर्वथा समाज के लिए अनुचित  कहीं जाती है। मात्र हम व्यक्ति के धन-संपत्ति और व्यावसायिक प्रतिष्ठा के आधार पर समाज के लोगों को तोल नहीं सकते हैं। अतः व्यक्ति के व्यक्तिगत प्रयासों जो उसके वश में है ,उससे उसके योग्यता को हम तोल सकते हैं । यही कारण है कि "समानता "को एक आदर्श समाज में बढ़ावा दिया जाता है। क्योंकि समानता एक राजनीतिक ज्ञान है।


इस भागदौड़ वाले जीवन में समय के अभाव के कारण समाज को बाट देना। यह न्याय संगत व्यवहार नहीं है ।
अतः एक सफल राजनीतिक को परिस्थितियों को देखते हुए ही निर्णय लेना चाहिए ।
जिससे हमारा समाज एक" आदर्श समाज " बने।

मेरी कल्पना का आदर्श समाज

         प्रश्न अभ्यास (part 1 and 2) 

Part 2 link- श्रम विभाजन और जाति प्रथा


1.जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही रूप ना मानने के पीछे अंबेडकर के क्या तर्क हैं?

2.जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती जा रही है ?क्या यह स्थिति आज भी है ?

3. लेखक के मत से "दास्ता "की व्यापक परिभाषा क्या है?

4.अंबेडकर ने जाति प्रथा के भीतर पैसे के मामले में लचीलापन ना होने की जो बात की है । उस संदर्भ में "शेखर जोशी" की कहानी "गलता लोहा " पर पुनर्विचार कीजिए।

मेरी कल्पना का आदर्श समाज
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