लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट (क्राइसिस ऑफ द डेमोक्रेटिक ऑर्डर)
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लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट (क्राइसिस ऑफ द डेमोक्रेटिक ऑर्डर)
Introduction- 1917 के चुनाव के बाद इंदिरा गांधी ना केवल कांग्रेस की बल्कि देश की बहुत शक्तिशाली नेता के रूप में उभर कर आई । क्योंकि 1971 में संसद चुनाव में कांग्रेस को अप्रत्याशित सफलता प्राप्त हुआ। 4.4 परसेंट वोट प्राप्त करके कांग्रेस ने लोकसभा की 375 सीटों पर कब्जा किया। विरोधी दल के विशाल गठबंधन की हार का मुंह देखना पड़ा। इस सफलता के उपरांत भी श्रीमती इंदिरा गांधी के लिए प्रशासन की राह आसान ना थी। क्योंकि देश के सामने आर्थिक संकट आधार बनाकर विरोधी दलों ने अनेक राज्यों में आंदोलन छेड़ रखा था।
सरकारों का चुनाव -
चुनी हुई सरकारों को हटाने की मांग कर रहे थे ।क्योंकि संकट के प्रमुख कारण थे-
- 1971 में बांग्लादेश युद्ध का आर्थिक भार था ।
- 8 मिलियन बांग्लादेशियों का भार जो बांग्लादेश की सीमा पर करके भारत में प्रवेश कर गए थे ।
- 1971 के पाक युद्ध में पकड़े गए 1 मिलियन कैदी सैनिक जिन्होंने भारतीय फौजियों जिन्होंने भारतीय फौजियों सैनिक जिन्होंने भारतीय फौजियों के आगे आत्मसमर्पण कर दिया था।
- इन सभी के कारण आर्थिक संकट देश में मंडरा रहे थे।
आर्थिक संकट-
उपरोक्त परिस्थितियों के कारण देश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था। पूरे देश में बढ़ती हुई कीमतों तथा बेरोजगारी के विरुद्ध आंदोलन आरंभ हो गए थे।
बिहार व गुजरात में इस आंदोलन का नेतृत्व समाजवादी नेता "श्री जयप्रकाश नारायण" जी कर रहे थे । यहां तक कि उनकी प्रेरणा पर इन आंदोलनों में विद्यार्थी भी शामिल हो गए थे । विभिन्न स्थानों पर हड़ताल हो रही थी ।
हिंदी में लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट-
- संसदीय राजनीति में विश्वास न रखने वाले कुछ मार्क्सवादी सक्रियता भी इस अवधि में बढ़ी । कई स्थानों पर उन्होंने हिंसात्मक कार्य भी किए गुजरात के आंदोलन का नेतृत्व स्वयं "मोरारजी देसाई "ने किया जो कभी "श्रीमती इंदिरा गांधी" के मंत्रिमंडल में मंत्री थे ।
- विद्यार्थी इस आंदोलन में गुजरात में चुनाव की मांग कर रहे थे। 1975 में गुजरात में चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस हार गई बिहार का आंदोलन विद्यार्थियों के हाथों में आ गया।
- श्री जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया । जिसका अर्थ संपूर्ण व्यवस्था यानी सामाजिक ,आर्थिक, राजनीतिक प्रशासनिक यहां तक कि सैनिक प्रणाली को बदलता था।
- इसमें आमूल परिवर्तन करना था। में हुई रेल कर्मचारियों की हड़ताल इसी आंदोलन व सोच का परिणाम था। अतः इस प्रांतीय आंदोलन का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ना स्वाभाविक था।
- जिससे देश के अनेक देशों में काम काज ठप हो गए इसी दौर में देश के कुछ राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल व आंध्र प्रदेश प्रदेश में नक्सलवादी आंदोलन प्रारंभ हो गए जिसमें कुछ लोगों के एक निश्चित सोच के तहत धनी भू स्वामियों से जमीन बलपूर्वक छिनना आरंभ कर दिया।
- उस भूमि को भूमिहीन लोगों में बांट दिया।
निष्कर्ष- इस प्रकार से कानून व्यवस्था लगभग समाप्त हो रही थी। लोग कानून को अपने हाथों में ले रहे थे। जब सरकार ने इस नक्सलवादियों के खिलाफ कार्रवाई की तो अनेक मानव अधिकारियों से जुड़ी संस्थाओं ने इनका एक कार्यवाही यों का विरोध किया।
आपातकाल की घोषणा इसी बीच एक और महत्वपूर्ण घटना घटी की 12 जून 1975 के दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश "जगमोहन लाल सिन्हा "ने एक फैसला सुनाया।
जिसमें राज नारायण की चुनाव याचिका पर लोकसभा के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध करार दे दिया।
राजनारायण के लोकसभा के लिए रायबरेली संसदीय चुनाव से निर्वाचित इंदिरा गांधी पर आरोप लगाया कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव में सरकारी कर्मचारियों व सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया 24 जून 1975 को सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के इस फैसले पर आंशिक स्थगन आदेश सुनाते हुए कहा कि जब तक इस फैसले को लेकर की गई। अपील की सुनवाई नहीं होती तब तक इंदिरा गांधी सांसद बनी रहेगी। लेकिन वे लोकसभा की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकती।
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