Dr bheemraw ambedkar 65th Death Anniversary |
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के शब्द-
मैं अछूत हूं या पाप है। लोग दूसरों को पशुओं से भी गया बीता समझते हैं । वह कुत्ते बिल्ली को तो छू सकते हैं। परंतु महार जाति के आदमी को नहीं। किसने बनाई है छुआछूत की व्यवस्था किसने बनाया है । किसी को नीच, किसी को उच्च। भगवान ने ऐसा नहीं किया है। वह सब को समान रूप से जन्म देता है। यह बुराई तो मनुष्य ने पैदा की है। मैं इसे समाप्त करके ही रहूंगा।
-------------डॉक्टर भीमराव अंबेडकर
65वीं पुण्यतिथि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के जन्म से मृत्यु तक की जानकारियाँ
बाबासाहेब अम्बेडकर के नाम से लोकप्रिय भीमराव रामजी अम्बेडकर का 6 दिसंबर, 1956 को निधन हो गया। मध्य प्रदेश के महू में जन्मे, अम्बेडकर अपने माता-पिता की 14 वीं और अंतिम संतान थे। वे मुख्य रूप से एक अर्थशास्त्री और शिक्षाविद थे। बाबासाहेब भारत की दलित सक्रियता के ध्वजवाहक भी थे, जिन्हें भारतीय संविधान का मुख्य शिल्पकार कहा जाता है।65वीं पुण्यतिथि, महापरिनिर्वाण दिन, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर
6 दिसंबर महापरिनिर्वाण दिन डॉ भीमराव अंबेडकर डॉ भीमराव अंबेडकर एक भारतीय वकील, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे। वह भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार और इसके पहले कानून मंत्री थे। वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, और बौद्ध आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति थे। वह भारतीय उपमहाद्वीप में बौद्ध धर्म के मुख्य प्रस्तावक थे, और महार समुदाय के बौद्ध धर्म में रूपांतरण में एक प्रमुख शक्ति थे।
महापरिनिर्वाण दीन क्या है? कहाँ से इसकी उत्पति हुई?What is mahaparinirvan?
5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, सिद्धार्थ गौतम नामक एक भारतीय राजकुमार मानव पीड़ा की समस्या का समाधान खोजने के लिए निकल पड़े। इस खोज ने अंततः एक दर्शन और जीवन शैली का निर्माण किया जिसे बौद्ध धर्म के रूप में जाना जाने लगा। बौद्ध धर्म सिखाता है कि जीवन दुक्ख से भरा है, जिसे "पीड़ा" या "दुख" भी कहा जाता है। दुख हमारी इच्छाओं और द्वेष के कारण होता है, जो हमें लगातार सुखद अनुभवों का पीछा करने और अप्रिय से बचने के लिए प्रेरित करता है।
बौद्ध धर्म के संस्थापक, एक धर्म और दर्शन जो दुख के कारणों और उपचारों से संबंधित है। बुद्ध का मूल नाम सिद्धार्थ गौतम था। उनका जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व लुंबिनी, नेपाल में हुआ था। एक शासक के पुत्र, उन्होंने अपनी युवावस्था में विलासिता का जीवन जिया, लेकिन एक वयस्क के रूप में वे मानव पीड़ा को समाप्त करने के तरीके की तलाश में एक तपस्वी बन गए।
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डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय | Dr b r ambedkar short biography in hindi
अपने मन में इस निश्चय का अर्थ करने वाले डॉक्टर भीमराव अंबेडकर मध्यप्रदेश के महू नगर की धरती पर 14 अप्रैल 1891 को एक महार परिवार में जन्म लिये। पिता रामजी सकपाल कि आप चौदहवीं संतान के रूप में मां भीमाबाई के दुलार वह प्यार के ममता रूपी आंगन में मात्र 5 वर्ष तक ही खेल पाए । बदले में मिला चाची मीराबाई का उद्धार प्यार अंबेडकर को चाची प्यार में भी़वा नाम से पुकारा करती थी।कालांतर में यही बालक भीमराव रामजी आंबेडकर कहलाया
भीमराव रामजी आंबेडकर का बचपन और छुआछूत
बचपन और छुआछूत उस समय भारत गोरी सरकार की रफ्तार में था और भारत पर उसका अधिकार था। अंग्रेजी दोनों में छुआछूत रुपए बीज को फूट डालो और शासन करो की फसल काट रहे थे और हिंदू फंसे थे। ऊंच-नीच, छोटा बड़ा, ब्राह्मण, ठाकुर ,चमार इन भेदभाव के निचली भावनाओं के बदले में भीमराव संस्कृतिक शिक्षा ग्रहण करना चाहते थे। परंतु संस्कृति के शिक्षण ने उन्हें से स्वरूप में स्वीकार नहीं किया। क्योंकि वह अछूत थे विवश होकर उन को फारसी भाषा का अध्ययन करना पड़ा। अध्यापक उनकी अभ्यास पुस्तिका तथा कलम तक भी नहीं छू सकते थे। उन्हें पूरे दिन स्कूल में प्याशे से रहना पड़ता था। क्योंकि अछूत होने के कारण वे वहाँ पानी भी नहीं पी सकते थे। सन् 1905 में रामाबाई नाम की कन्या से शादी कर पिताजी के साथ मुंबई पहुंच कर एलफिंस्टन स्कूलल में प्रवेश लिया । यहां छुआछूत की भावना नहीं थी । सन 1960 में मैट्रिक परीक्षा सफर करने पर बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड ने प्रसन्न होकर ₹25 मासिक छात्रवृत्ति देना आरंभ किया ।
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भीमराव रामजी आंबेडकर का शिक्षा
सन 1912 में b.a. करने पर बड़ौदा महाराजा ने अपनी फौज में लेफ्टिनेंट पद पर नियुक्त किया। पिता की अचानक मृत्यु हो जाने पर बड़ौदा महाराजा के यहां से नौकरी से त्यागपत्र देकर तथा बाद में बड़ौदा महाराजा की छात्रवृत्ति पर अमेरिका चले गए । जहां 1915 में m.a. तथा 1916 में पीएचडी की उपाधि पाने में सफलता हासिल की । बाद में 1923 में लंदन पहुंचकर डीएससी तथा लॉ की उपाधि प्राप्त की । लंदन में रहकर डॉक्टर अंबेडकर ने ब्रिटिश के संस्थापक जनतंत्र स्वतंत्रता तथा उदार वादियों के मूल्यों का गहन अध्ययन किया । पुस्तकें पत्रिका प्रकाशक तथा स्थापना अमेरिका ब्रिटेन और जर्मनी के यात्रा के बाद डॉ भीमराव भारत लौटे । यहां पर भी वही अतीत के जीवन की मार झेलनी पड़ी । उन्हें होटलों तक में रहने के स्थान ना मिला। कर्मचारी वर्ग भी उनसे कूड़े के समान नफरत करने लगा। पूरे हिंदू समाज के इस कलंक छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष का बीड़ा उठाया ।महाराजा कोल्हापुर की सहायता से डॉक्टर साहब ने 1920 में मुख्य नायक नामक पत्रिका का प्रकाशन कर। अपने समाज की सोचनीय दशा का वर्णन किया।उन्होंने हिंदू समाज व्यवस्था पर तीखे शब्दो के गोले छोड़े क्योंकि वह अंग्रेजों के पराधीनता रूपी पिंजरे में कैद पक्षी की तरह फड़फड़ा रहे थे। डॉक्टर साहब ने हिंदुओं को जागते हुए। उनमें चेतना प्रकाश भरकर कहा स्वतंत्रता दान में मिलने वाले वस्तु नहीं है। इसके लिए हमें संघर्ष करना पड़ेगा। 1927 में डॉ भीमराव ने बहिष्कृत भारत नामक मराठी पत्रिका का प्रकाशन किया। सामाजिक आछुआछूत कार्यक्रम के अंतर्गत बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना भी की तथा मुंबई में सिद्धार्थ कॉलेज का श्रीगणेश भी किया । बाद में औरंगाबाद में मिलिंद कॉलेज का स्थापना किया तथा विपुल एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना भी की।
जिसके अंतर्गत आई लगभग 15-20 छोटे-बड़े कॉलेज कार्य करत है । 1942 में आपको गवर्नर जनरल के कार्यकारिणी में श्रमिकों के प्रतिनिधि के रूप में चुना गया। इस गौरवपूर्ण पद पर रखकर 1946 तक सेवा करते रहे । बंगाल विधानसभा हेतु 1946 में ही आपको चुना गया। जहां भारत एक हो का नारा दिया । संविधान सभा के प्रारूप को देखकर करने वाली समिति का 1947 में आपको अध्ययन अध्यक्ष चुना गया।
भारत के संविधान निर्माण में भीमराव रामजी आंबेडकर का योगदान
भारत के संविधान निर्माण में आपको योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। अतः आपको भारत संविधान का निर्माता कहा जाने लगा । यह डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के कुछ कार्य थे। स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री के रूप में 15 अगस्त 1947 को भारत के स्वतंत्र होते ही पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में बनी सरकार में स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री का पद संभाला । उन्होंने अपने समय में भारत के पुराने कानूनों में संशोधन करना चाहा। परंतु पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस संबंध में मतभेद हो जाने के परिणाम स्वरुप सन 1991 नहीं अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा । डॉ भीमराव से अछूतों की सेवा में जुट गए । दलित समाज के मसीहा पुकार जाने लगे। जहां भी सम्मेलन हो और सभाओं को संबोधित करते हैं। जय भीम के नारों से गूंज उठा था । पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार से त्यागपत्र तो क्या दिया ? उन अभागे हिंदुओं को एक सबक दिया । जिनकी रग रग में छुआछूत व नफरत का वेश समाया हुआ था । उनकी मान्यता थी कि इस धरती पर ना कोई उच्च है और ना कोई नीचे तक छुआछूत और नफरत यह सब कहां से आए। 5 जून 1952 को कोलंबिया विश्वविद्यालय ने एक विशेष समारोह में विधि ज्ञान के सम्मानित होने एल एल बी की उपाधि देकर भी सुबूत किया था । इन शब्दों में उनके प्रति सम्मान व्यक्त किया गया।
डॉ भीमराव अंबेडकर विश्व के महान नागरिक के रूप में
डॉ भीमराव अंबेडकर के ही नहीं विश्व के महान नागरिक हैं । वह एक महान समाज सुधारक होने के साथ-साथ महान मानवतावादी तथा मानव अधिकारों के सब अंदर भी है और आछुतो का इतिहास शुद्र कौन थे? नामक पुस्तक में वर्णित है भाषाई राज्य पर विचार उनकी दूसरी पुस्तक सन 1955 में प्रकाशित हुई ।
बौद्ध धर्म की ओर |महापरिनिर्वाण दिन
डॉक्टर अंबेडकर हिंदू धर्म ही नहीं वह किसी भी धर्म के विरोधी नहीं थे । धर्म में मनुष्य के लिए आवश्यक है या स्वयं मानते थे। उनकी लड़ाई हिंदू धर्म से नहीं लड़ाई तो छुआछूत और नफरत से थी। जिनसे स्वयं मनुष्य ने अन्य वर्गों की तुलना में अपने ऊंचा सदा श्रेष्ठ होने का दावा किया है। डॉक्टर अंबेडकर द्वारा निर्धारित धर्म के लक्षण व स्तुति सर्वधर्म समभाव का स्वरूप प्रस्तुत करते हैं।धर्म नैतिकता की दृष्टि से प्रत्येक धर्म का मान सिद्धांत है
धर्म बौद्धिकता पर टिका होना चाहिए ,जिससे दूसरे शब्द में विज्ञान कहा जा सकता है ।
इसके नैतिक नियमों में स्वतंत्रता समानता और भ्रातृत्व भाव का समावेश हो। जब तक सामाजिक स्तर पर धर्म में यह 3 गुण विद्यमान नहीं होंगे, धर्म का विनाश हो जाएगा ।
धर्म को दरिद्रता को प्रोत्साहित करना चाहिए । उनका स्पष्ट मत था , कि नियम व धर्म के स्थान पर सिद्धांतों का धर्म होना चाहिए ।