बाल गंगाधर तिलक का जीवनी पर शॉर्ट सम्मारी | baal gangadhar tilak biography | baal गंगाधर tilak summury
बाल गंगाधर तिलक का शारांश | baal gangadhr tilak ka sharansh
बाल गंगाधर तिलक का जीवन परिचय | बाल गंगाधर तिलक
जिसका उद्देश्य युवक-युवतियों की सस्ती राज्य शिक्षा देना था। इसके अतिरिक्त दकन एजुकेशन सोसायटी तथा फर्गुसन कॉलेज पुना के संस्थापक है । अपने विचारों को सार्वजनिक रंग देने के लिए उन्होंने सप्ताहिक पत्र मराठी भाषा में केसरी तथा अंग्रेजी भाषा में मराठा आकर्षित किया । जिनके माध्यम से उन्होंने 1880 से जीवन पर्यंत प्रकृति अधिकार राजनीतिक स्वतंत्रता व न्याय के सिद्धांतों को जर्मन तक पहुंचाया।
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फ्रांस की क्रांति के बाद बाल गंगाधर तिलक का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रवेश।
महाराष्ट्र में उन्होंने इसी संदर्भ में गौ हत्या विरोधी सोसाइटी,अखाड़े और लाठी क्लब खोलें। जिससे वही के सभी हिंदू अपना जीवन बलिदान करने हेतु। पीछे ना हटे नव युवकों में उत्साह का साहस बढ़ने के लिए उन्होंने गणपति उत्सव संगठित किया । प्रत्येक वर्ष उत्सव दुगने उत्साह से मनाया गया ।
तिलक जी का उदार वादियों की राजनीतिक |बाल गंगाधर तिलक
यही कारण है कि उन्होंने शिवाजी द्वारा अफजल खान की हत्या को नियोजित ठहराया। तिलक बांस के वृक्ष की तरह नहीं थे कि जिस ओर हवा वह उधर ही झुक जाए ,वह अपने उग्र विचारों पर दृढ़ थे । लेकिन इसकी कीमत उन्हें 1897 में चुकानी पड़ी।
जब उन्हें 18 माह का कठोर कारावास मिला। तिलक त्याग की प्रतिमूर्ति थे । उन्होंने विदेशी अधिपति के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया और नए उत्साह के साथ अपने पद पर बढ़ते गए। केसरी में प्रकाशित कुछ लेखों के आधार पर उन्हें पुनः 1908 में 6 वर्ष का कारावास मिला।
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यह सत्य है कि तिलक की अनुपस्थिति में महाराष्ट्र में उग्रवादी आंदोलन ठंडा पड़ गया था। लेकिन जब मार्च 1916 में लोकमान्य तिलक ने महाराष्ट्र होम रूल लीग की स्थापना की तो खोई हुई चेतना फिर से जाग उठी।
6 माह बाद 1 सितंबर में 1916 महिला एनी बेसेंट ने मद्रास में अखिल भारतीय होमरूल लीग की स्थापना की। संपूर्ण भारत में इन दिनों दोनों प्रवर्तक प्रचार यात्राएं ,विजय यात्राएं में परिवर्तित हो गई और देश के वातावरण में बिजली सी दौड़ गई ।
तिलक जी ने समाज सुधारक कार्य का विरोध किया|बाल गंगाधर तिलक
निष्कर्ष | बाल गंगाधर तिलक का निष्कर्ष
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (1856-1920) को भारतीय जनता को सबसे बड़ी देन उनका अवज्ञा का दर्शन है । इसी दृष्टि से उन्हें भारतीय चेतना का जनक कहा जाता है। भारत मंत्री मांटेगु ठीक ही कहा था भारत में केवल एक ही आकृतिम उग्र राष्ट्रवाद था और वह है तिलक।वाह वास्तव में देखा जाए तो वह महात्मा गांधी के अग्रदूत थे। लगाना देने का आंदोलन सरकारी नौकरियों का बहिष्कार शराबबंदी तथा स्वदेशी जैसे आंदोलन जो गांधी जी ने चलाए थे । तिलक जी पहले ही इन पर प्रयोग कर चुके थे। उनका जीवन दिव्य था।
इसी प्रकार से देशवासियों ने उन्हें न केवल लोकमान्य की उपाधि दी । उन्होंने तिलक भगवान का कहकर भी पुकारा। उनकी पुण्यतिथि 1 अगस्त पर उन्हें सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि हम सदैव संप्रदायिक सद्भाव तथा राष्ट्रीय एकता से प्रेरित उनके प्रेम को अपने हृदय में जीवित रखें।