Ncert class 12 hindi aaroh chapter 6 usha summary in hindi|| class 12 hindi aaroh chapter 6 usha summary in hindi
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1.'उषा' कविता में किस उपमान से पता चलता है की यह गाँव की सुबह का वर्णन है?
2.उषा' कविता में कवि का क्या संदेश है?
3.उषा का जादू कब टूटता है?
4.उषा कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
5.उषा कविता के कवि कौन है?
6.उषा कविता के कवि हैं?
7.उषा' कविता का शिल्प सौंदर्य लिखिए। class 12 उषा आ रही है कविता के प्रश्न उत्तर।
8.उषा कविता में किस समय का वर्णन किया गया है?
9.उषा' कविता के प्रश्न उत्तर
10.उषा का जादू टूटने का क्या तात्पर्य है
11.उषा' कविता में भोर के नभ की तुलना किससे की गई है और क्यों?
Ncert class 12 hindi aaroh chapter 6 usha summary in hindiउषा कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए
शमशेर बहादुर सिंह का परिचय-
जन्म- 13 जनवरी सन 1911 देहरादून (उत्तराखंड )
प्रकाशित रचनाएं -कुछ कविताएं ,कुछ और कविताएं, चुका भी हूं नहीं मैं ,इतने पास अपने आदि ।
सम्मान -साहित्य अकादमी तथा कबीर सम्मान सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित।
निधन- सन 1993 दिल्ली में ।
शमशेर बहादुर सिंह का जीवन परिचय-
वैचारिक दृष्टि से मार्क्सवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह का जन्म 13 जनवरी सन 1911 को तत्कालीन उत्तर प्रदेश किंतु अब (उत्तराखंड) के देहरादून में हुआ था । उनकी आरंभिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला में हुई। उन्होंने हाई स्कूल तथा इंटर की परीक्षा गोंडा में पूरी की तत्पश्चात वे पढ़ने के लिए इलाहाबाद चले गए । वहां से उन्होंने B.A तथा M.A की परीक्षा पुरी की। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा कबीर सम्मान सहित अनेक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सन् 1993 में वे चिरनिद्रा में लीन हो गए यानी उनका देहांत हो गया।
उषा
प्रस्तुत कविता में सूर्योदय के ठीक पहले उषा के आगमन के कारण छन-छन मैं बदलते पूरे प्रकृति के स्वरूप का वर्णन है। कवि प्रयोगवादी है। जिनके उपमान, बिंब व प्रतीक सब अपने हैं। नए हैं। पुराने उपमान व प्रतीक इनको अपने लिए उपयुक्त नहीं लगते। इस कविता में प्रातः काल के नीले नभ को कवि ने देखा जिसकी तुलना परंपरागत ढंग से सागर से की जाती रही है। किंतु कवि इस आकाश को राख से लिखा हुआ चौका कहता है। उसे इस बात की परवाह भी नहीं है , कि चौका राख से नहीं अपितु गोबर से लीपा जाता है। वह यह भी भूल गया है कि चौका आकार में छोटा होता है । उपमान उपमेय से बढ़ा व श्रेष्ठ होना चाहिए ।
दूसरा रूप प्रस्तुत करते हुए कवि कहता है कि प्रातः काल का नभ उस सिल के समान है । जिस पर लाल केसर पीसी गई हो और वह सील अब्दुल गई है। इसमें आकाश की लालिमा की तुलना है । आकाश के इसी रंग को कभी लेट पर लाल खड़ियां चाक के रूप में देखता है। आकाश के नीले रूप को व्यक्त करते हुए कवि कहता है कि उषा नीले लाल में किसी की गौर झिलमिल शरीर हिलती सी लगती है । अंत में इस निष्कर्ष पर आता है कि सूर्योदय होते ही उषा का जादू समाप्त हो रहा है।
महत्वपूर्ण काव्यांश को पढ़ें तथा सम
1. प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसेभोर का नभराख से लीपा हुआ चौका(अभी गीला पड़ा है )
शब्दार्थउषा-सूर्योदय से पूर्व पूरब दिशा की लालिमा।
प्रसंग- प्रस्तुत कविता हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 के उषा नामक कविता से लिया गया है ।जिसके रचयिता शमशेर बहादुर सिंह है। दी गई प्रथम पंक्ति में कवि सूर्योदय से पहले की महत्वपूर्ण बातें हमें बतलाते हैं ।
व्याख्या- उषा नामक इस कविता में कवि सुबह के वातावरण को बताते हुए कहते हैं कि आकाश का रंग नीला है । वातावरण में नमी का एहसास होता है । ऐसे में नीला आकाश में छुटकी सफेदी ऐसा लगता है। मानो किसी गृहिणी ने राख से चौका लिख रखा हो और जो अभी तक नीला हो।
2.बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
शब्दार्थ
नीला- संघ अत्यधिक नीला ।
प्रसंग-उषा कि इस पंक्ति में कवि कहते हैं कि प्रातः काल का सौंदर्य अद्भुत होता है। प्रकृति अपने सौंदर्य को ग्रामीण परिवर्तन से जोड़ते हुए चलता है तथा इस दूसरे पंक्ति में कवि प्रकृति की सौंदर्य को ग्रामीणों के नजरिए से बताते हैं।
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व्याख्या- सुबह के समय जब पूर्व की दिशा से सूर्य की लाली आकाश में फैलती है तो अकाश काले और लाल रंग के मिश्रण से भर जाता है । मानो किसी गृहिणी कालीसिल को लाल केसर से अभी-अभी धोया हो । दूसरे ही पल आकाश ऐसा दिखता है । मानो स्लेट की कालीमा पर लाल खड़ियां चाक मल दी हो। कहने का अर्थ है कि अगले ही पल में आकाश में उषा की लालिमा दिखाई देती है।
3.नील जल मै या किसी की
गौर श्लिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और…..
जादू टूटता हैं इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा हैं।
शब्दार्थ
भोर- प्रातः काल सील रसोई का पत्थर का एक टुकड़ा जिस पर मसाले या चटनी पीसी जाती है।
देह - शरीर।
प्रसंग- उषा के तृतीय पंक्ति में कवि ने सूर्य उदय के ठीक पहले की घटना को अपने शब्दों में बताया है।
व्याख्या- कवि ने उषा में सूर्य उदय की खूबसूरती का वर्णन किया है। सूर्य के उगने से पहले ही आकाश में सफेदी फैल जाती है। ऐसा लगता है मानो नीले जल में किसी की गोरी शरीर झिलमिला रही हो । इसके साथ ही सूर्य उग जाती है और उषा का संपूर्ण सौंदर्य भी समाप्त होने लगता है ।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न उत्तर
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1.कविता के किन उपमानो को देखकर यह कहा जा सकता है , कि उषा कविता गांव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र है ?
उत्तर- कविता में नीले नभ को राख से लीपे चौका के समान बताया है। दूसरे दिन में काली सिल से तुलना की गई है । तीसरी में स्लेट पर लाल खड़िया चाक को उपमान बताया है। लीपा आंगन कालीसिल गांव के परिवेश में ही परिचित शब्द है। महानगर के बालकों ने कवि लिखा हुआ चौका देखा भी नहीं होगा। मिक्सी वाले दिल से अपरिचित ही रहते हैं। महंगे स्कूल में पढ़ने वालों ने तो स्लेट का परिचय पाया नहीं है । शब्द चित्र गांव की सुबह के हैं। जहां तक गतिशीलता का प्रश्न है । वह भी सही है। पहले चौका लीपा जाता है । तभी सील का प्रयोग होगा और उसके बाद ही बालक के हाथ में स्लेट दी जाएगी ।
2. ग्रामीण परिवेश के उषाकाल का संक्षेप में वर्णन कीजिए ।
उत्तर- अभी सूर्योदय के आगमन में देरी है। पूर्व दिशा में आकाश में लालिमा दिखाई दे रही है। जिसने पहले आकर बता दिया है कि भुवनभास्कर अपने रथ पर बैठकर आ रहे हैं। किसान जल्दी से उठकर अपने पशुओं को चारा डालता है । गोबर पानी की व्यवस्था करता है । नारियां गाय भैंस का दूध निकाल रही है । अब दूध का मक्खन निकालने की तैयारी है । चौका लिप कर तैयार कर दिया। घर आंगन साफ किया जा रहे हैं। परिवार के सभी सदस्य कार्य में लगे हैं। बच्चे स्कूल की तैयारी कर रहे हैं । सूर्य के आगमन से पूर्व किसान बैलों को लेकर खेत पर चला गया है। देवियां बालकों का लंच बॉक्स तथा किसान का कलेवा तैयार कर रही है।
3.कविता क्या संदेश देती है ?
उत्तर - इस कविता के माध्यम से कवि ग्रामीण समाज की प्रभात कालीन गतिशीलता को बताना चाहता है । उषा काल में ही नारियां घर आंगन साफ करती है और चौके को प्रतिदिन लिपटी है । भले ही लिपाई गोबर व मिट्टी से होती है। रसोई में सील का प्रयोग होने लगता है। बच्चे अपनी स्लेट व चाक लेकर पढ़ने लिखने में लग जाते हैं। समस्त ग्रामीण समाज बताया जा रहा है। किंतु कवि की दृष्टि से खेत की ओर जाता किसान मजदूर गायब ही रहा है ।
4.क्या उषा कविता प्रकृति चित्रण के अंतर्गत आती है ?
उत्तर - कविगन प्रकृति का विभिन्न रूपों में वर्णन करते आए हैं । प्रकृति का शुद्ध रूप आलंबन में प्रकृति चित्रण कहलाता है। ऐसा वर्णन छायावादी कवियों ने खूब किया है। प्रकृति का उद्दीपन रूप में वर्णन हिंदी साहित्य में बहुत हुआ है। प्रकृति का अलंकृत रूप इस प्रकृति में कविता में वर्णित हुआ है। प्रकृति में उषा बहुत ही रमणीय होती है। इस उषाकाल में उषा नील जल में अपनी गोरी झिलमिलाते शरीर को हिला रही है।
Short answer type question🙋
1.कवि ने सुबह के आकाश की तुलना राख से लीपे गिले चौके से क्यों की है?
उत्तर - राख से लीपे गिले चौके में पानी की मात्रा होती है। उसमें नीलिमा और श्वेत वर्ण का मिश्रण होता है। सुबह के नभ में भी नमी की मात्रा होती है । उसमें भी श्वेतवर्ण नीलिमा होती है। इसी कारण कवि ने सुबह के आकाश की तुलना लीपे गिले चौके से की है।
2.सील से क्या अभिप्राय है ? कवि ने भोर के नभ को कालीसिल को लाल केसर से धुले हुए के समान क्यों माना है ?
उत्तर - सील से अभिप्राय शीला या चट्टान से हैं । यह प्रया: श्याम वर्णी होती है। इस पर लाल रंग वाली केसर रगड़ देने से लाल और काले रंग का मिश्रण हो जाता है । उसी प्रकार उषाकाल में आकाश अंधकार युक्त होता है। उसमें सूर्योदय से पहले की लालिमा के मिश्रण का रंग भी लाल केसर से धुली हुई शीला के समान दिखाई देता है।