Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 Summary कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप
लक्ष्मण मूर्च्छा राम का विलाप -Summary and Important Q Ans-Class 12 Hindi,
आरोह भाग - 2 (Aroh - 2)काव्य खंड।
Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 Summary कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप
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गोस्वामी तुलसीदास Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 Summary
कवि का परिचय
जन्म= सन 1532,बांदा जिले के राजापुर गांव में प्रमुख।
रचनाएं= रामचरितमानस, विनय पत्रिका, गीतावली, श्री कृष्ण गीतावली, दोहावली आदि।
निधन= सन 1623 काशी में।
जीवन परिचय
- भक्तिकाल की सगुण काव्य धारा में राम भक्ति शाखा के सर्वोपरि कवि गोस्वामी तुलसीदास में भक्ति से कविता बनाने की प्रक्रिया के सहज परिणति है। परंतु उनकी भक्ति इस हद तक लोग उन्मुख है कि वे लोग मंगल की साधना के कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं ।
- इसका सबसे प्रकट प्रमाण यही है कि शास्त्रीय भाषा में सर्जन क्षमता होने के बावजूद उन्होंने लोक भाषा को साहित्य रचना के माध्यम के रूप में चुना और जिस प्रकार उनमें भक्त और रचनाकार का द्वंद है।
- उसी प्रकार शास्त्र वालों का द्वंद है जिसमें संवेदना की दृष्टि से लोग की ओर वे चुके हैं। तो शिल्पगत मर्यादा की दृष्टि से शास्त्र की ओर उनकी एक अन्य विशेषता है कि वह दर्शनिक और अलौकिक स्तर के नाना द्वंदो अंगो के चित्र और उनके समन्वय के कवि हैं।
- तुलसीदास की लोग व शास्त्र दोनों में गहरी रूचि है तथा जीवन व जगत की व्यापक अनुभूति और मार्मिक प्रसंगों की उन्हें अचूक समझ है। यह विशेषताओं उन्हें महाकवि बनाती है, और इसी से प्रकृति व जीवन के विविध भावपूर्ण चित्रों से उनका रचना संसार समृद्ध है।
- विशेषकर "रामचरित्रमानस" इसी से यह हिंदी का अद्वितीय महाकाव्य बनकर उभरा है । इसकी विश्व प्रसिद्ध लोकप्रियता के पीछे सीता राम कथा से अधिक लोग संरचना और समाज की नैतिक बनावट की समस्या उनके सीताराम ईश्वर की अपेक्षा तुलसी के देश काल के आदर्शों के अनुरूप मानवीय धरातल पर पुणे सृष्टि चरित्र है।
कवितावली
Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 Summary
- तुलसीदास जी कवितावली इस कविता में कहते हैं। कि मुझे जीवन के संगठनों और उनके समाधान का अच्छा अनुभव था । वह कहते हैं कि कोई भी कर्म करने वाला किसान परिवार भी कार्य व्यापारी तथा दूसरों को भुगतान करने वाला नौकर, चतुर नर्तक, जासूस आदि व्यक्ति अपने पेट के लिए काम करने में लगे होते हैं।
- तुलसीदास जी कहते हैं कि पेट की भूख की आग सबसे बड़ी आग है। तुलसीदास जी श्री राम को संबोधित करते हुए बताते हैं,कि इस समय समाज के लगभग सभी दरिद्रता पूर्ण जीवन जी रहे हैं । वह अपने रोजी-रोटी के लिए परेशान हैं ।किसानों के पास खेती करने का साधन नहीं है ।
- इसलिए वे खेती नहीं कर पा रहे अथवा कवितावली में तुलसीदास जी यही कहते हैं कि इस गंभीर तथा दरिद्रता के समय श्रीराम जैसे महान पुरुष ही इससे छुटकारा दिला सकते हैं ।
- कवि राम के सच्चे उपासक हैं कवि के राम के प्रति सच्ची भक्ति भाव ने तुलसीदास को इतना बलशाली बना दिया है कि वह अब राम जी को बुरा कहने वालों को भी अब कुछ नहीं कहते हैं ।
- कवितावली में तुलसीदास जी का कहना है कि ईश्वर का कोई जाति नहीं होती कोई धर्म तथा कोई मजहब नहीं होता है। सच्चा प्यार ही धर्म तथा मजहब होता है।
लक्ष्मण मूर्छित और राम का विलाप |
Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 Summary
- इस कविता में तुलसीदास जी ने राम का विलाप बताया है। जब लक्ष्मण को बाण लगने पर वह मूर्छित होकर गिर गए।
- उस समय श्रीराम काफी विलाप की है । उस समय की परिस्थिति को गंभीरता से दर्शाने का काम तुलसीदास जी ने इस कविता में किया है । गोस्वामी जी कहते हैं कि हनुमान से परिचय जानकर भरत उन्हें अपने बान पर बैठाकर जल्दी से लंका पहुंचने का आग्रह करते हैं।
- तो हनुमान कहते हैं कि प्रभु मैं आपका प्रताप ह्रदय में रखकर तुरंत चला जाऊंगा। ऐसा कह कर आज्ञा पागल और भरत के चरणों की वंदना करके हनुमानजी चल पड़ते हैं । हनुमान के आने में विलंब होते देख श्रीराम अत्यंत दुखी हो रहे हैं।
- वे लक्ष्मण की ओर निहार कर अत्यंत साधारण मनुष्य की भांति विलाप करते हुए बोले आधी रात बीत चुकी है। अभी तक हनुमान जी नहीं आए। यह कहकर श्री राम जी ने अनुज लक्ष्मण को उठाकर हृदय से लगा लिया ।
- कविता के कुछ इन पंक्तियों में तुलसीदास जी भरत हनुमान कथा राम की चिंता आपको बता रहे हैं। राम जी कहते हैं कि इस संसार में पुत्र-पत्नी धन और परिवार तो बार-बार आते जाते रहते हैं।
- परंतु सगा भाई इस संसार में बार-बार नहीं मिलता। ऐसा विचार हृदय में करके तुम जाग जाओ हे-भाई! तुम्हारे वियोग में मेरी स्थिति बिना पंख के पक्षी, बिना मनी के सर्व की तरह हो जाएगी।
कवितावली (उत्तर कांड से )
प्रस्तुत काव्यांश को पढ़कर इसका हिंदी अनुवाद करें
1.
किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी,भाट,
चाकर, चपला नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गुढ़त, चढ़त गिरी,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही की पचित, बोचत बेटा-बेटकी।।
‘तुलसी ‘ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,
आग बड़वागितें बड़ी हैं आग पेटकी।।
शब्दार्थ -बनिक-बनिया, व्यापारी । भाट -बड़ाई गाने वाला। चाकर-नौकर । चप्पल नट-चंचल नर्तक । चार-गुप्तचर। चैटकी-जादूगर । आगी-अग्नि । अहन-दिन। किसभी-धंधा।
1.प्रसंग=दी गई कविता हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग -2 से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस कविता का नाम कवितावली है ।
व्याख्या=इस पंक्ति में कवि बताते हैं कि मुझे जीवन के संकटों और उनके सामानों का अच्छा अनुभव था । वह कहते हैं कि कोई भी कर्म करने वाला किसान परिवार ,भिकारी व्यापारी तथा दूसरों को भुगतान करने वाला नौकर, चतुर नर्तक तक जासूस आदि। व्यक्ति अपने पेट के लिए काम करने में लगे रहते हैं।
पेट की खातिर लोग ऊंचे पहाड़ पर चढ़ते हैं। घने जंगलों का भ्रमण करते हैं। इस दुनिया में सभी लोग अपने पेट की भूख खत्म करने के लिए कोई ना कोई ना कोई कार्य करते हैं।
यहां तक कि अपने पेट की भूख को मिटाने के लिए अपने बेटा-बेटियों को भी बेच देते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि पेट की भूख की आग संसार की सबसे बड़ी आग है।
2.खेते न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों ‘ कहाँ जाई, का करी ?’
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे स सबैं पै, राम ! रावरें कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु !
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी।
शब्दार्थ -बनीज-व्यापार। सांकरे-संकटकाल में । दुनी-दुनिया । हहा करी-प्रार्थना । दशानन-रावण । बली-दोस्त । बनीज-व्यापार। सांकरे-संकटकाल में । दुनी-दुनिया । हहा करी-प्रार्थना । दशानन-रावण । बली-दोस्त ।
प्रसंग= कवितावली कहानी में कविता इस पंक्ति से तात्पर्य है कि प्रकृति और शासन की बुराई की वजह से बेरोजगारी तथा गरीबी की पीड़ा का चित्रण किया गया है ।
व्याख्या=तुलसीदास जी श्री राम को संबोधित करते हुए बताते हैं कि इस समय समाज के लगभग सभी दरिद्रता पूर्ण जीवन जी रहे हैं। वह अपनी रोजी-रोटी के लिए परेशान है। किसानों के पास खेती करने का साधन नहीं है ।
इसलिए वे खेती नहीं कर पा रहा है। नौकरी चाहने वालों को नौकरी नहीं मिल रहा है । आजीविका के अभाव के कारण लोग यही सोच रहा है कि अब उनका क्या होगा? वेदों पुराणों में ऐसा कहा गया है कि संकट के समय ही अपने ही सब कृपा की है । इस समय दरिद्रता रावण सभी को अपने वश में कर रहा है ।
तात्पर्य यह है कि कवितावली में तुलसीदास यही कहते हैं कि इस इस गंभीर तथा दरिद्रता के समय श्री राम जैसा महान पुरुष ही इससे छुटकारा दिला सकता है।
3.धूत कहो, अवधूत कहों, रजपूतु कहीं, जोलहा कहों कोऊ।
कहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सौऊ।
तुलसी सरनाम गुलामु हैं राम को, जाको रुच सो कहें कछु आोऊ।
माँग कै खैबो, मसीत को सोइबो, लेबोको एकु न दैबको दोऊ।।
शब्दार्थ -अवधूत-सन्यासी । राजपूतू-राजपूत। जोलहा-जुलाहा । सरनाम-सारे नाम । मासित-मस्जिद । सोईब-सोना। अवधूत-सन्यासी । राजपूतू-राजपूत। जोलहा-जुलाहा । सरनाम-सारे नाम । मासित-मस्जिद । सोईब-सोना।
3.प्रसंग= कवितावली की इस पंक्ति में कवि तुलसीदास का राम के प्रति भक्ति भावना सजीव चित्रण किया गया है। इस प्रकार का भी है इस पंक्ति में रचनात्मक भूमिका का वर्णन किया है।
व्याख्या=कवि राम के सच्चे उपासक हैं। कवि के राम के प्रति सच्ची भक्ति भाव ने तुलसीदास को इतना बलशाली बना दिया है कि वह अब राम जी को बुरा कहने वालों को भी अब कुछ नहीं कहते हैं । वह कहते हैं कि मेरे प्रभु को चाहे जो भी कहे। मैं तो उनसे सच्चा भक्ति भाव ही रखता हूं ।
लोग उन्हें सन्यासी कहे यह राजपूत या जुलाहा। मैं अपनी बेटी का विवाह किसी के बेटे के साथ नहीं कराने जा रहा हूं। जिसके लिए मैं किसी की जाती जानू। सभी जातियां श्री राम जी के गुलाम हैं ।
वह तो मांग कर खाते हैं और मस्जिद में सोते हैं । उन्हें किसी से कोई लेना देना नहीं है । उनका कहना है कि ईश्वर का कोई जाति नहीं होती । कोई धर्म तथा मजहब नहीं होता ।
लक्ष्मण मूर्छित और राम का विलाप
प्रस्तुत काव्यांश को पढ़कर इसका हिंदी अनुवाद करें
1.तव प्रताप उर राखि प्रभु, जैहउँ नाथ तुरंग।
अस कहि आयसु पाह पद, बदि चलेउ हनुमत।
भरत बाहु बल सील गुन, प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुँ जात सराहत, पुनि-पुनि पवनकुमार।।
शब्दार्थ -कपि-बंदर । अनुज-छोटा भाई। हीम -सर्दी। अनुराग-प्रेम । निहारी-देखकर । मनुज-मनुष्य ।कपि-बंदर । अनुज-छोटा भाई। हीम -सर्दी। अनुराग-प्रेम । निहारी-देखकर । मनुज-मनुष्य ।
1.प्रसंग= प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह भाग 2 में संकलित एवं तुलसीदास कृत रामचरितमानस के लक्ष्मण मूर्छित और राम विलाप से लिया गया है ।
लक्ष्मण और मेघनाथ युद्ध में लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं। तो सुषेण वैद्य ने पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा। हनुमान जी जब पूरे पर्वत को ही उखाड़ कर अयोध्या के ऊपर से आ रहे थे । तो भरत के बान से नीचे आ गिरे ।
व्याख्या -गोस्वामी जी कहते हैं कि हनुमान से परिचय जानकर भरत उन्हें अपने बाण पर बैठाकर तुरंत लंका पहुंचाने का आग्रह करते हैं । तो हनुमान कहते हैं कि प्रभु मैं आपका प्रताप हृदय में रख कर तुरंत चला जाऊंगा।
कह कर आज्ञा पाकर और भरत के चरणों की वंदना करके हनुमानजी चल पड़ते हैं । भरत के बाहुबल शील स्वभाव गुण और प्रभु के चरणों में अपार प्रेम की मन ही मन बार-बार सराहना करते हुए पवन पुत्र हनुमान चले जा रहे हैं ।
2.उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसार।।
अप्ध राति गङ्ग कपि नहिं आयउ। राम उठाड़ अनुज उर लायउ ।।
सकडु न दुखित देखि मोहि काऊ। बांधु सदा तव मृदुल सुभाऊ।।
सो अनुराग कहाँ अब भाई । उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।।
जों जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेऊँ नहिं ओहू।।
शब्दार्थ -दीना-दीन । अस-यह । अवध-आयोध्या हैतू- के लिए । बिल-धन। लाल-उनका। दीना-दीन । अस-यह । अवध-आयोध्या हैतू- के लिए । बिल-धन। लाल-उनका।
2. प्रसंग= प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 से लिया गया है । जिसके लेखक तुलसीदास जी हैं। उसका कविता का नाम लक्ष्मण मूर्छित और राम का विलाप है।
इस पंक्ति में कवि गोस्वामी तुलसीदास ने लक्ष्मण मूर्छित पर भगवान राम के करुण पूर्ण संवाद का मार्मिक चित्रण किया गया है।
व्याख्या=हनुमान के आने में विलंब होते देख श्रीराम अत्यंत दुखी हो रहे हैं । वह लक्ष्मण की ओर निहार कर अत्यंत साधारण मनुष्य की भांति विलाप करते हुए बोले। आधी रात बीत चुकी है अभी तक हनुमान जी नहीं आए। यह कहकर श्री राम जी ने अनुज लक्ष्मण को उठाकर हृदय से लगा लिया।
श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के प्रति अपने हृदय के उद्गार व्यक्त करते हुए कहते हैं कि प्रिय तुम मुझे किसी प्रकार भी दुखी नहीं देख सकते थे।
है-भाई तुम्हारा स्वभाव सदा से ही कोमल रहा है। मेरे ही हित के लिए तुमने माता-पिता को भी छोड़ दिया और जंगल में सर्दी गर्मी और तूफान सहन किया है । भाई तुम्हारा वह प्रेम अब कहां है ?
तुम मेरे व्याकुलता पूर्ण वचन सुनकर उड़ते क्यों नहीं? तुम क्यों मुझे इतना तड़पा रहे हो? यदि मैं यह जानता कि जंगल में मुझे भाई का भी वियोग झेलना पड़ेगा। तो मैं भी पिता का वचन जिसका मानना मेरे लिए परम कर्तव्य था को भी ना मानता।
3.सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारह बारा।।
अस बिचारि जिय जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।
जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जों जड़ दैव जिआर्वे मोही।।
जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाड़ गवाई।।
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बुसेष छति नाहीं।।
शब्दार्थ -अधारा -आधार । उमा-पार्वती । पानी-हाथ बिधि-प्रकार । काह-क्या।
3.प्रसंग= लक्ष्मण मूर्छित और राम का विलाप कि इस अगली पंक्ति में कवि शिरोमणी तुलसीदास जी ने भाई के वियोग के दुख और अयोध्या जाने पर होनेवाले कष्टों का वर्णन किया है ।
व्याख्या=हे प्रिय लक्ष्मण इस संसार में पुत्र, पत्नी ,धन और परिवार तो बार-बार आते जाते रहते हैं परंतु सगा भाई इस संसार में बार-बार नहीं मिलता हे । भाई ऐसा विचार हृदय में करके तुम जाग जाओ ।
ए भाई तुम्हारे वियोग में मेरी स्थिति बिना पंख की पक्षी ,बिना मनी के सर्प की तरह हो जाएगी। पत्नी के लिए प्यारे भाई को खोकर में कौन सा मुंह लेकर अयोध्या जाऊंगा?
तुम्हारे साथ होने पर भले ही मुझे बदनामी ही मिलती की राम में कुछ भी वीरता नहीं।
जो अपनी पत्नी को ही खो बैठे । तो भी मैं यह सब सहन कर लेता तुम्हारी दुःख के आगे स्त्री ka दुख कोई विशेष नहीं थी ।
4.अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहहि निठुर कठोर उर मोरा।।
निज जननी के एक कुमारा । तात तासु तुम्ह प्रान अधारा।।
सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी।।
उतरु काह दैहऊँ तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई।।
बहु बिधि सोचत सोचि बुमोचन। स्त्रवत सलिल राजिव दल लोचन।।
उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपालु देखाई।।
शब्दार्थ -प्रताप-पराक्रम । बाहुबल-भुजाओं की शक्ति । उर-ह्रदय । सील- शील। सराहत-सराहना। पवनकुमार-पवनपुत्र हनुमान । अस -यह । प्रीति-प्यार । प्रताप-पराक्रम । बाहुबल-भुजाओं की शक्ति । उर-ह्रदय । सील- शील। सराहत-सराहना। पवनकुमार-पवनपुत्र हनुमान । अस -यह । प्रीति-प्यार ।
जात-जाना ।
4.प्रसंग= लक्ष्मण मूर्छित और राम विलाप की अगली पंक्ति में तुलसीदास ने भाई के वियोग में श्रीराम के प्रलाप का हृदय ग्राही वर्णन किया है ।
व्याख्या=है भाई ! मैं तुम्हें अपने हृदय की व्यथा कैसे सुनाऊं ? मैं अब भाई और पत्नी दोनों को खो चुका हूं । मेरा यह निष्ठुर और कठोर हृदय अब पत्नी की खोने से मिलने वाला अपयश और तुम्हारा शौक दोनों ही सहन करेगा।
हे भाई ! तुम अपनी माता के इकलौते पुत्र और उसके प्राणों के आधार हो। है भाई तुम्हारी माता ने सब प्रकार से सुख देने वाला और परम हितकारी जानकर ही तुम्हारा साथ पकड़ कर मुझे सौंपा था ।
अब तुम ही बताओ मैं अयोध्या जाकर उन्हें क्या जवाब दूंगा? सभी को चिंता मुक्त करने वाले श्री राम बहुत प्रकार के सोच विचार कर रहे हैं । उनकी कमल की पंखुड़ियों के समान आंखों से विषाद के आंसू बह रहे हैं।
Chapter No | Chapter Solution | Mcq |
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2 | Political & Economics History from the Mauryan to Gupta period | Click here |
3 | Social history: with special reference to Mahabharata | Click here |
4 | History of ancient Indian religions with special reference to Buddhism & Sanchi Stupa | Click here |
5 | The Ain-I-Akbari : Agrarian relation | Click here |
6 | The Mughal Court : Reconstructing History through Chronical | Click here |
7 | Architecture of Hampi (vijaynagar) | Click here |
8 | Religious history : the bhakti-sufi-traditional | Click here |
9 | Medieval Society through foreign travellers account | Click here |
10 | Colonialism & rural society : Evidence from official report | Click here |
11 | 1857 A Review | Click here |
12 | Colonial cities- Urbanisation , planning & Architecture | Click here |
13 | Mahatma Gandhi through contemporary eyes & his role in the Indian politics | Click here |
14 | Partition of Indian & Study through oral sources | Click here |
15 | Making of the Indian Constitution | Click here |
1.प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना महं बीर रस।।
शब्दार्थ -बिकल-व्याकुल । निकर-समूह। जिमी-जैसे
1.प्रसंग=प्रस्तुत सोरठा हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह भाग 2 में संकलित एवं तुलसीदास कृत रामचरितमानस के लक्ष्मण मूर्छित और राम विलाप से अवतरित है। प्रस्तुत छोटा गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के लंका कांड से लिया गया है। इस चौथे में कवि ने हनुमान की लंका आगमन पर श्री राम की सेना में उत्पन्न उल्लास का वर्णन किया है।
व्याख्या =गोस्वामी जी कहते हैं कि हनुमान के आने में विलाप होते देख श्री राम विलाप करने लगते हैं। उन्हें देखकर विचारों का समूह भी व्याकुल हो उठता है । इतने में ही हनुमान का लंका में आगमन होता है । तो सभी वानरों में खुशी की लहर दौड़ जाती है। ऐसा लगता है कि जैसे करुण रस के प्रसंग मैं वीर रस का प्रसंग आ गया हो।
2.हरषि राम भेंटेउ हनुमान। अति कृतस्य प्रभु परम सुजाना ।।
तुरत बँद तब कीन्हि उ पाई। उठि बैठे लछिमन हरषाड़।।
हृदयाँ लाइ प्रभु भेटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।।
कपि पुनि बँद तहाँ पहुँचवा। जेहि बिधि तबहेिं ताहि लह आवा।।
शब्दार्थ -हरषि-हर्षित । जतन-यतन । जगावा-जगाया
आवा-आए।
2.प्रसंग=गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस से अवतरित इन पंक्तियों में श्री राम और हनुमान की भेंट का बड़ा ही मनोहारी चित्रण किया है । हनुमान जी के आने से चारों और खुशी का वातावरण है।
व्याख्या=जैसे ही हनुमानजी औषधि युक्त पर्वत को लेकर लंका पहुंचाते हैं । तो श्री राम सहित सभी प्रसन्न हो जाते हैं। श्री राम जी खुश होकर हनुमान जी से गले लग कर मिले। अपने अत्यंत चतुर साथी को पाकर प्रभु राम कृतज्ञ महसूस करते हैं।
तभी वैद्य सुषेण ने तुरंत ही उपाय किया इससे लक्ष्मण हर्षित होकर उठ पड़े । प्रभु जी राम अपने अनुज लक्ष्मण को हृदय से लगाकर मिले।
भालू और वानरों के समूह भी अत्यंत खुश हो गए। हनुमान जी ने वैद्य सुषेण को उसी प्रकार वहां पहुंचा दिया जिस प्रकार वे पहली बार उसे लेकर आए थे।
यह बात जब लंकापति रावण ने सुना तो वह अत्यंत दुख से विचलित हो गया।
3. कथा कही सब तेहिं अभिमानी। कही प्रकार सीता हरि आनी।।
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे महा।।
दुर्मुख सुररुपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी।।
अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा।।
शब्दार्थ -सुखाई-सूखना । समर-रणभूमि । अपर दूसरे । बुझा-पूछा ।
प्रसंग=रामचरितमानस के लंका कांड से अंतिम पंक्तियों में कवि श्रेष्ठ तुलसीदास ने रावण पक्ष की चिंता का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या=रावण के प्रयास से कुंभकरण जाकर उठ बैठा। विशालकाय एवं भरावा शक्ल वाला कुंभकरण । ऐसे लग रहा था मानो स्वयं काल मृत्यु ही शरीर धारण करके बैठा हो। कुंभकर्ण ने भाई रावण से उसे जागने का प्रयोजन पूछा और कहा कि तुम्हारे मुख इस तरह सुख क्यों रहे हैं।
कुंभकरण के पूछने पर उस अभिमानी रावण ने उसे सीता हरण से लेकर अब तक की सारी कथा साविस्तर सुनाएं और उससे कहा भाई राम की वानर सेना ने सब राक्षस मार डाले और बड़े-बड़े योद्धाओं का भी संहार कर डाला।
रावण कुंभकरण को युद्ध में मारे गए योद्धाओं के विषय में सविस्तार बताते हुए कहते हैं कि हे भाई देव शत्रु( देवताओं का अंत करने वाला)मनुष्य भक्षक (मनुष्यों का अंदोहात करने वाला )भारी योद्धा अतिकाय,
अकंपन तथा महोदर आदि। दूसरे रणधीर वीर रणभूमि मारे जा चुके हैं । अब तुम्हें ही युद्ध संभालना है।
वानर सेना सहित राम पर विजय प्राप्त करनी है ।
दोहा - Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 Summary
सुनि दसकंधर बचन तब, कुंभकरन बिलखान।।
जगदबा हरि अनि अब, सठ चाहत कल्यान।।
शब्दार्थ -बिलखान-बिलखकर बोला । जकदंबा-जगजननी ।
5.प्रसंग= प्रस्तुत दोहा हमारी पुस्तक आरोह भाग 2 में संकलित एवं तुलसीदास कृत रामचरितमानस के लक्ष्मण मूर्छित और राम विलाप से अवतरित है । प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास कृत रामचरितमानस के लंका कांड में संकलित लक्ष्मण मूर्छित और राम का विलाप शीर्षक से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने रावण के भाई कुंभकरण के व्यवहार का वर्णन किया है।
व्याख्या=रावण से सारा वृत्तांत सुनकर कुंभकरण दुखी हो गया और बिलखकर अपने भाई से कहने लगे। हे मूर्ख तूने जगजननी सीता को हर लिया है और अब कल्याण की अपेक्षा करते हो । कवि के कहने का आशय है कि रावण के घोर अनैतिक कार्य पर राक्षस वृत्ति का कुंभकरण भी द्रवित होकर नैतिक आचरण करने लगा।
1.कवितावली में लिखित छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है ?
उत्तर-तुलसी युग में नायक है । लोकनायक है। उनको तत्कालीन समाज का ज्ञान है। निरंकुश शासकों के इस युग में किसान श्रमजीवी व्यापारी नौकरी कलाकार सभी पेट की ज्वाला बुझाने में व्यस्त रहते हैं। जो जिस व्यवसाय को चाहता था । उसको अवसर नहीं मिलता था। भयंकर निर्धनता थी सब लाचारी और अनुभव करते थे । जाति प्रथा का जोर था। अतः तुलसी जी ने अपनी युग की आर्थिक विषमता का सजीव चित्रण किया है।
2.पेट की आग का शमन ईश्वर भक्ति का मेघ ही कर सकता है। तुलसी का यह काव्य सत्य क्या इस समय का भी योग सत्य है?तर्कसंगत उत्तर दीजिए ।
उत्तर-तुलसीराम भक्त है वह राम नाम की महिमा का वर्णन कर रहे हैं और उसका ईश्वर भक्ति बता रहे हैं। इस समय का युग सत्य युग नहीं हो सकता । क्योंकि आज का युग धार्मिक नहीं है आर्थिक है । अर्थ के लिए राम कृपा की नहीं अपितु संघर्ष की आवश्यकता है । विज्ञापन के द्वारा नई नई तकनीक से उद्योग धंधे खड़े करना ही आज की आवश्यकता है ।
पाठ के आसपास
3.कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य में पत्नी की मृत्यु शोक पर अज तथा निराला की सरोज-स्मृति में पुत्री के मृत्यु शोक पर पिता के करुण उद्गार निकाले हैं। उनसे भ्रातृ शोक में डूबे रामके विलाप की तुलना करें।
उत्तर- प्रश्न परीक्षा के लिए नहीं है।जानकारी के लिए है । वैसे शोक की स्मृति तीनों स्थानों पर है । अंतर केवल इतना ही है कि इंदुमती व सरोज की मृत्यु हो चुकी थी। वहां क्रमशः पति व पिता के शव का वर्णन है । लक्ष्मण मूर्छित है और मृत्यु की आशंका है।
4.तुलसी के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं ?आज के बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचर्चा करें।
उत्तर-छात्र अपने अध्ययन की उपस्थिति में इस विषय पर कक्षा में चर्चा करें ।
अन्य महत्वपूर्ण परीक्षा उपयोगी प्रश्न उत्तर
Long answer type question| Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 Summary
1.चौपाई का लक्षण तथा उदाहरण दीजिए।
उत्तर-चौपाई सम मात्रिक छंद है । इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएं होती हैं। अंत में लंबा होने चाहिए। उदाहरण-
.सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारह बारा।।
अस बिचारि जिय जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।
2. भरत बाहुबल का उल्लेख क्यों किया हुआ है ?
उत्तर-हनुमान संजीवनी बूटी लेने गए थे । वह पर्वत सहित ही संजीवनी लेकर लौट रहे थे। भरत ने किसी आशंका के डर से हनुमान को पर्वत सहित नीचे उतार लिया था । किंतु हनुमान से यह सुनकर कि यदि मैं सूर्योदय तक लंका नहीं पहुंचा तो लक्ष्मण जीवित नहीं रहेंगे। तब हनुमान को शीघ्र भेजने के उद्देश्य से भारत में पर्वत सहित हनुमान को बान पर उठाकर लंका भेज दिया। इस असाधारण बल की हनुमान सराहना कर रहे हैं।
3.तुलसी ने अपने को" गुलाम है राम की " क्यों कहा है ?
उत्तर-तुलसी मूल्यता भक्त है। कविता जो आराध्य के गुणगान का माध्यम है। भक्ति के नो भेद है । जिनमें से एक दास भाव की भक्ति होती है ।दास से भाव की भक्ति में भक्त अपने को दीन-हीन नीच प्रतीत मानता है और अपने आराध्य के समूह अपनी हीनता का वर्णन करता है।
Short answer of Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 Summary
1.तुरत वैध तब कीन्ह उपाई यह वैध कौन था और कहां से आया था ?
उत्तर- वैध लंका का रहने वाला सुशेन था। लक्ष्मण मूर्छित का उपचार के लिए विभीषण ने इसे लाने का सुझाव दिया था। हनुमान इसे लंका से लेकर आए थे । इस ने बताया था कि यदि संजीवनी बूटी मिल जाए तो लक्ष्मण की मूर्छा टूट जाएगी। किंतु यह औषधि रात-रात में ही सूर्योदय से पूर्व आ जानी चाहिए । हनुमान के आते ही वैध जी ने तुरंत उपचार प्रारंभ कर दिया था ।
2.कुंभकरण ने रावण को सठ क्यों कहा है?
उत्तर-रावण ने कुंभकरण को बताया था कि मैं सीता का अपहरण कर लाया था । जिसके कारण राम ने लंका आक्रमण करके हमारे प्रसिद्ध योद्धा मार दिया है। कुंभकरण को राम व सीता की महत्त्व का ज्ञान है। अतः वह अपने बड़े भाई को सठ तब का डालता है। रावण पक्ष के सभी संबंधी संबंधियों पत्नी मंदोदरी, भाई विभीषण ,मंत्री मालयवान ,पुत्र प्रसन्न आदि सभी ने सीता हरण को अनुचित कहा था।
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