Ncert Class 12 hindi core पहलवान की ढोलक summary in hindi
पहलवान की ढोलक
लेखक - फणीश्वर नाथ रेणुNcert Class 12 hindi core पहलवान की ढोलक summary in hindi
जन्म -4 मार्च 1921,औराही हिंगना, बिहार में ,
प्रमुख रचनाएं- कितने चौराहे, ठुमरी, आदिम रात्रि की महक, रेणु रचनावली आदि ।
निधन- 11 अप्रैल 1977,पटना में।
लेखक के बारे में- पहलवान की ढोलक लेखक की प्रमुख रचनाओं में एक है। यह कहानी रेणु की सभी विशेषताओं को दिखाती है। रेणु की कहानी में गांव, अचल एवं संस्कृति को जीवित करने की अनोखी शक्ति होती है ।ऐसा लगता है मानो सभी पात्र जीवित है।
कहानी -प्रस्तुत कहानी में लेखक ने व्यवस्था परिवर्तन तथा लोक कला पर पड़े पर पड़े दुष्प्रभाव का दुख व्यक्त किया है। नई व्यवस्था के आ जाने से लूटन पहलवान जैसे लोग कलाकार का पेट भरना मुश्किल हो रहा है । तब भी वह भूख तथा महामारी की मार झेलते हुए भी गांव को अपने संगीत से शक्ति प्रदान करता है ।
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गांव के चारों और महामारी फैली हुई है। सभी व्यक्ति इस महामारी के चपेट में है। अमावस्या की इस घनी रात ने महामारी की डर को और बढ़ाता जा रहा है और लोगों को भयभीत करता जा रहा है। ऐसे स्थिति में लूटन पहलवान ही था, जो इस परिस्थिति में अपने ढोलक की संगीत से पूरे गांव को शक्ति प्रदान करता है । इस ढोलक की गूंज लोगों पर संजीवनी की तरह असर करती है।
लूटल अपने क्षेत्र का एक 'पहेलवान' था। वह नौ वर्ष का था था जब उसकी माता-पिता की मृत्यु हो गई । उसकी शादी भी जल्दी हो चुकी थी। सांस ने उसे पाला-पोसा । वह गाय का खूब दूध पीता तथा कुश्ती करता। जिससे उसका शरीर काफी मजबूत हो गया।
लूटन पहलवान एक बार दंगल देखने श्यामनगर गया । वहां एक पहलवान था। जिसका नाम "चांद सिंह" था । वह पंजाब का था था । चांद सिंह ढोलक की ताल पर अपने उम्र के सभी पहलवान को हरा चुका था। उसे "शेर की बच्चे" की उपाधि भी दिया गया।लूटन तभी लूटन को ढोलक की ताल ने उत्तेजित कर दिया और वह चांद सिंह से दंगल करने को तैयार हो गया ।
पूरी दर्शकों की सांस रुक गई । लूटन के इस निर्णय को सुनकर। राजा खुद लूटन को बुलाते हैं और कहते हैं कि चांद सिंह सभी को हरा चुका है । तुमको उससे कुश्ती नहीं करनी चाहिए। तुम उससे हार जाओगे । लेकिन लूटन पहलवान भी जिद्दी था । वह दंगल करना ही चाहता था। अंत में राजा ने भी उसे आज्ञा दे दी। चांद सिंह और लूटन के बीच दंगल आरंभ हो गया भीड़ भी कुश्ती देखने को उत्तेजित थी । ढोल बजने लगा और चांद सिंह ने लूटन को को अपने दाव-पेंच से दबा दिया। तभी लूटन चांद सिंह की इस दांव पेच को समझ गया और उसकी दाव को पलट दिया । चांद सिंह दंगल में हार गया ।
चारों तरफ लूटन की जय-जयकार होने लगी । राजा ने उसे बुलाया तथा उसे पुरस्कृत किया । राजा ने लूटन को राजकीय पहलवान घोषित भी किया। जिससे इनका नाम चारों तरफ फैलने लगा लगा । इसके बाद उन्होंने कई पहलवान को हराया । जिसमें "काला खा" जैसे मशहूर पहलवान भी था। लूटन पहलवान राज दरबार तथा गांव में काफी विशेष दर्जा पा चुका था । वह मतवाले हाथी की तरह मेले में घूमता था। जनता भी उसे चाहती थी । वह मेले से जब लौटता तब वह बच्चे की तरह मुंह में सीटी ,हाथ में खिलौने तथा आंख में चश्मा लगाया रहता था। दंगल में भी वह जाता लेकिन वहां उसके बराबर का पहलवान उसे नहीं मिलता।
अंत में वह अपने देह पर मिट्टी लगाए हुए निराश होकर चला आता । इस तरह 15 वर्षों तक वह अजय रहा । दो पुत्रों को जन्म देकर उसकी पत्नी भी चल बसी । लूटन ने अपने पुत्रों को भी कुश्ती के दांव पेंच सिखा दिए। लूटन के साथ-साथ उसके दोनों पुत्रों का भी राज दरबार में काफी नाम हुआ। वह स्वयं ढोलक बजाता और उनसे कसरत करवाता था । उसने ढोलक का सम्मान करने तथा मालिक से व्यवहार करने की शिक्षा भी अपने पुत्रों को दिया। राजा के मृत्यु के बाद विलायत से लौटे राजकुमार ने राज्य संभाला।
आधुनिक विचारों वाले राजकुमार ने लूटन तथा उसके बेटे को राजदरबार से निकाल दिया । अब वह गांव के बच्चों को कुश्ती के दांवपेच सिखाता तथा गांव वाले उसके लिए भोजन का इंतजाम कर देते थे । धीरे-धीरे कुश्ती का दौर का दौर चला गया ।
अचानक गांव में भुखमरी तथा महामारी फैल गया। दो-तीन लाशें प्रतिदिन गांव से जाने लगे । गांव में हाहाकार मच गया। लाशों को बिना कफन के नदी में बहा दिया गया । ऐसी स्थिति में पहलवान की ढोलक गांव में फैले महामारी महामारी को चुनौती देती। ढोलक की आवाज से गांव के लोगों में शक्ति आ जाती। ढोलक की आवाज में महामारी को रोक नहीं sakहोती है। परंतु उसकी आवाज लोगों में शक्ति का संचार कर देता है था।
एक दिन पहलवान के दोनों बेटे इस महामारी के चपेट में आ गए और उनकी मृत्यु हो गई तब भी वह गांव के लोगों के लिए ढोलक बजाता रहा उसने स्वयं अपने दोनों पुत्रों का शव नदी में बहाया उसकी ढोलक की आवाज दवा के भाटी लोगों में महामारी से लड़ने की हिम्मत जुटा थी रही एक रात पहलवान की ढोलक सुनाई नहीं दी तो उसके बीमार पड़े शिष्य ने देखा कि कभी हार ना मानने वाले उनके गुरु की लाश की लाश वाले उनके गुरु की लाश की लाश आज चित्त पड़ी है और उसे प्रेरित करने वाली ढोलक एक और लुढ़की पड़ी है।
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