हरिवंश राय बच्चन (आत्म परिचय )
जन्म=सन्1960,इलाहाबाद
प्रमुखरचनाएं=मधुशाला,मधुबाला, मधुकलश,सतरंगीनी आदि ।
निधन=सन् 2003,मुंबई में।
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लेखक का परिचय= इस आत्मपरिचय के माध्यम से कवि दुनिया की सच्चाई को बताना चाहते हैं । वह बताते हैं कि अपने आप को जाना दुनिया को जाने से ज्यादा कठिन है। इस राह में कवि ने बताया है कि मैंने संसार में कई सफलताओं को प्राप्त किया परंतु संसार का एक ही नियम है ,वह द्वंदात्मक है।
1.मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूं,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूं,
कर दिया किसी ने झंकृत जिन को छूकर,
मैं सांसों के दो तार लिए फिरता हूं।
प्रसंग= दी गई कविता हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग-2' के काव्य खंड में आत्म परिचय नामक कविता से लिया गया है।इसके कवि"श्री हरिवंश राय बच्चन" है।उन्होंने इस कविता में संसार की खट्टे मीठे संबंधों को बताया है।
व्याख्या- कवि कहते हैं कि मेरे इन कंधों पर संसार का भार है। फिर भी मेरे जीवन में संसार का प्यार है,और दुनिया से प्यार की उम्मीद रखता हूं । जब मेरे हृदय को कोई प्रेरित करता है । तो यह गुनगुनाने लगता है।अर्थ या है कि जीवन का भार उठाकर भी प्यार वाला जीवन जीना चाहता है ।
2.मैं स्नेह सुरा का पान किया करता हूं,
मैं कभी ना जग का ध्यान किया करता हूं ,
जग पूछ रहा उनको जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूं।
प्रसंग= दी गई कविता में कवि ने बताया है,कि वह संसार में रहते हुए किस तरह अपने कर्तव्यों का पालन करता है।
व्याख्या- कभी कहते हैं कि इस संसार ने भले ही मुझे कितनी भी दुख दिए हो। परंतु मैं अपने प्रेम रहित मार्ग को नहीं छोडूंगा । यह संसार के नियम कानून उन्हीं पर लागू होते हैं। जो इस संसार के लिए जीते हैं । मैं तो एक स्वतंत्र प्राणी हूं मेरे लिए नियम मायने नहीं रखता है। इतना सब होने के बाद भी मैं संसार से अलग नहीं रहता ।
3.मैं नीज पुर के उद्गार लिए फिरता हूं,
मैं नीज पुर के उपहार लिए फिरता हूं,
यह अपूर्ण संसार ना मुझको भाता,
मैं सपनों का संसार लिए फिरता हूं।
प्रसंग= इस पंक्ति में कवि ने संसार के संबंधों में अपने विचार प्रकट किए हैं।
व्याख्या -कवि कहते हैं कि ,एक कवि होने के कारण उनकी जिंदगी अलग है। मैं दुनिया के सामान्य व्यवहार के विपरीत अपने हृदय में उठने वाले प्रेम पर चलता हूं । मैं लोक कल्याण के लिए गीत गाता हूं। प्रेम भाव के अभाव से संसारा आपूर्ण ज्ञान जैसा लगता है। इसलिए लोगों के लिए मैं मंगल विचार किया करता हूं ।
4.मैं जला हृदय में अग्नि दहा करता हूं,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूं,
जग भव सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मोजो पर मस्त बहा करता हूं।
प्रसंग= इस पंक्ति में कवि ने सुख और दुख के बारे में बताया है। कवि कहते हैं कि मैं जीवन के दुख से विचलित नहीं होता और न ही जीवन के सुख से रोमांचित होता हूं ।
व्याख्या- में जीवन में आने वाली सभी पीड़ा को अपने हृदय में दबा कर रखता हूं । मेरी स्थिति ऐसी है कि मैं ना तो दुख में ज्यादा दुखी हो सकता हूं, और ना सुख में सुखी जहां लोग अपने जीवन में एक सहारे के लिए नाव ढूंढता फिरता है। वही में इस जीवन की दुख और सुख की चिंता नहीं करता हूं ।
5.मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूं
उनमादो में अवसाद लिए फिरता हूं ।
जो मुझको बाहर हंसा रुलाती भीतर
मैं हाय किसी की याद लिए फिरता हूं।
प्रसंग= इस पंक्ति में कवि ने अपने युवावस्था में आने वाली दुख और सुख की बात कही है ।
व्याख्या- कवि कहते हैं कि मैं यौवन के सुख में चूर हूं। परंतु वे अपने प्रिय की याद में घूमते फिरता है।तब भी वह अपनी होठों पर मधुर मुस्कान बनाए रखता हूं । मैं अपने हृदय की पीड़ा को व्यक्त नहीं करता हूं।
6.कर यतन मिटे सब,सत्य किसी ने जाना?
नादान वही है ,हाय, जहां पर दाना!
फिर मूढ न क्या जग,तो जो इस पर भी सीखें?
मैं सीख रहा हूं, सीखा ज्ञान भूलाया!
प्रसंग= इस पंक्ति में कवि ने सत्य के प्रति अपने दृष्टिकोण संसार से जुदा बताया है ।
व्याख्या -कवि कहते हैं कि जीवन के सत्य को जानने के लिए सभी प्रयास करते हैं। परंतु कोई भी उसे जान नहीं पाया । दुनिया में हर लोग एक दूसरे से अलग हैं । जो इस बात को नहीं जानता वह मूर्ख है । हमें इस दुनिया के व्यवहार से सीख लेनी चाहिए। कवि कहते हैं कि मैं अभी भी इस सत्य से सीख ही रहा हूं। जीवन की रहस्य को जानने का प्रयत्न कर रहा हूं।
7.मैं और,और जग और ,कहां का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
में प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
प्रसंग= इस पंक्ति में कवि ने बताया है,कि उनकी दुनिया संसार की इस विचारधारा से अलग है ।
व्याख्या- कवि कहते हैं, मेरी और संसार की विचारधारा अलग है। जिस धन-संपत्ति को पाने में लोग रहते हैं। उस धन संपत्ति को मैं तो ठुकराता फिरता हूं । मैं संसार में रहते हुए भी संसार के दृष्टिकोण से अलग सोचता हूं।
8.मैं नीज रोधन में रात लिए फिरता हूं,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूं,
हो जिस पर भूपो के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूं।
प्रसंग= इस पंक्ति में कवि अपने हृदय के विचारों को प्रकट करते हैं।
व्याख्या- कवि कहते हैं कि सामान्य से दिखने वाले मेरे इस जिंदगी में अजीब तरह का विरोध है । संसार के लोगों को भले ही मेरा सिर्फ रोना ही सुनाई दे। परंतु इस रोने में छिपा " राग " को केवल मैं ही जान सकता हूं। ऊपर से दिखने वाली मधुर शीतल वाणी में मेरा विद्रोह छुपा हुआ है । उन महलो से तो अच्छा मेरा खंडहर है । अर्थात कवि कर्म को किसी भी काम से ज्यादा महत्व देते हैं।
9.मैं रोया ,इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूटा पड़ा ,तुम कहते छंद बनाना ,
क्यों कवि कह कर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूं एक नया दीवाना।
प्रसंग= इस पंक्ति में कवि अपने समाज में अपनी स्थिति का वर्णन करते हैं । वह चाहते हैं कि समाज उनकी वास्तविक स्थिति से परिचित हो।
व्याख्या- कवि कहते हैं कि समाज उनकी वास्तविक स्थिति को नहीं जान पाया है । जब मैं अपनी ह्रदय की पीड़ा को व्यक्त करता हूं। तो संसार उसे गाने का रूप दे देते हैं। जब मैं अपनी छुपी भावनाओं को लिखता हूं। तो उसे संसार कविता का रूप दे देता है। कहने का अर्थ है कि दुनिया उनकी दुख को समझ ना सका वह चाहते हैं,कि दुनिया उन्हें एक दीवाने की तरह चाहे। ना कि एक कवि के रूप में । दुनिया उनसे कोई भी संबंध रखें । वह इस दुनिया के लोगों को प्रेम करते ही रहेंगे।
10. मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूं,
मैं मदकता नि:शेष लिए फिरता हूं,
जिसको सुनकर जग झूमे,झुके,लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूं।
प्रसंग=इस पंक्ति में कवि ने अपने प्रेम को उजागर किया है।वह दूसरों को अब अपनी तरह समाज प्रेमी बनाना चाहते हैं।
व्याख्या-कवि कहते हैं कि भले ही संसार मुझे एक सामान्य व्यक्ति ही समझे। परंतु मैं इस संसार का सच्चा प्रेमी हूं । मेरे पास एक ऐसा मंत्र है। जिसको कोई भी पाकर मेरी तरह मतवाला बन जाएगा । मैं चाहता हूं कि मेरी इस संदेश को सभी लोग फैलाए तथा अपनाएं ।मेरी तरह सभी लोग इस दुनिया से प्रेम करें । इस प्रकार से ही हम जीवन का सच्चा सुख पा सकते हैं,और दुनिया के लोग सुख में जीवन जी सकते हैं।
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